प्रकृति एवं संस्कृति रिसर्च सोसाइटी को जानकारी मिली थी कि उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में बाघ का सबूत पैदा करने के लिए बाहर से बाघ का मल और पंजा वन विभाग के द्वारा लाया गया है, जिसे वो उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के बाघ का मल और पंजा होना बता कर शासन और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भेजै है। इसके साथ ही जानकारी मिली थी की उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के जंगल से भालू के मल को एकत्र कर लाया गया है और भालू के मल को बाघ का मल बताकर शासन को प्रस्तुत करने वाले हैं। इसके बाद प्रकृति एवं संस्कृति रिसर्च सोसाईटी ने रिसर्च टीम गठित कर उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के जंगल में जांच पड़ताल की। जिसमें पाया गया है की वन विभाग के कर्मचारियों ने जंगल से भालू के मल को एकत्र कर लाया है और भालू के मल को बाघ का मल बता कर शासन को प्रस्तुत करने वाले हैं।
चर्चा करने पर वहां के निवासियों ने बताया की पूरे जंगल में भारी संख्या में भालू पाए जाते हैं। इस कारण जगह-जगह भालू के मल मिल जाते हैं। वन विभाग के कर्मचारी इन्हीं भालुओं के मल को एकत्र कर ले गए हैं। भालू का मल लाने की बात पता चलने पर वन विभाग को पूछा गया की भालू के मल को क्यों लाया गया है तब उनके द्वारा बताया गया है की कही से भी भालू के मल को नहीं लाया गया है। जंगल से केवल बाघ के मल को ही लाया गया है। इस प्रकार भालू के मल को बाघ का मल बता कर वन विभाग शासन को गुमराह कर रहा है। प्रकृति एवं संस्कृति रिसर्च सोसाइटी के रिसर्च टीम ने इसकी शिकायत शासन से करने की बात कही है वनकर्मियों को भालू के मल और बाघ के मल में अंतर पता ही नहीं है।
इस प्रकार उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में भालू के मल को बाघ का मल बता कर शासन को गुमराह किया जा रहा है। वहीं इस बारे में उदंती टाइगर रिजर्व के अधिकारी एसडीओ आरके रायस्त से पूछने पर बताया की मल कौन से प्राणी का वहां हम इक_ा कराते है और जंगल के शीर्ष प्राणी टाइगर के मल को जबलपुर व हैदराबाद लैब भेजते हैं। रिपोर्ट हम सार्वजनिक नही कर सकते ऐसे भी टाइगर के मल पैंथर और भालू के मल में अंतर होता है, जो रिपोर्ट हम वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया को भेजते है।
प्रकृति एवं संस्कृति रिसर्च सोसाइटी के रिसर्च टीम ने की थी पड़ताल
प्रकृति एवं संस्कृति रिसर्च सोसाइटी के डायरेक्टर व बाघ रिसर्चकर्ता तीव कुमार सोनी की अगुवाई में विशेषज्ञों की रिसर्च टीम उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के जंगलों के अंदर गई थी और बाघ की मौजूदगी के संबंध में गहन जांच पड़ताल की थी। रिसर्च टीम में प्रदेश संयोजक शिवशंकर सोनपीपरे, वन भैसा विशेषज्ञ प्रवीण देवांगन, हाथी विशेषज्ञ संजय त्रिवेदी, ब्लेक पैंथर विशेषज्ञ राधे पटेल, कृषि विशेषज्ञ ढलेन्द्र साहू शामिल थे। रिसर्च टीम ने पूरे जंगल में पड़ताल की। लेकिन उन्हें कही भी बाघ का कोई भी प्रमाण नहीं मिला। पूरे जंगल क्षेत्र में भालू का मल कई स्थानों में पाया गया है।