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छत्तीसगढ़ में गुब्बारा बेचने वाले की बेटी ने यूरोप में जीता वर्ल्ड योग चैंपियनशिप में मैडल

आर्थिक रूप से बेहद ही गरीब परिवार की दामिनी ने पिछले महीने के अंत में यूरोपीय (europe )देश बुल्गारिया में आयोजित विश्व योग चैम्पियनशिप (World Yoga Championships) के एकल व युगल प्रतियोगिता में रजत पदक जीतकर न केवल अपने परिवार बल्कि अपने गांव, प्रदेश और देश का नाम समूचे विश्व में चमकाया है।

गरियाबंदJul 09, 2019 / 02:59 pm

Bhawna Chaudhary

छत्तीसगढ़ में गुब्बारा बेचने वाले की बेटी ने यूरोप में जीता वर्ल्ड योग चैंपियनशिप में मैडल

नवापारा-राजिम. मन में अगर लगन और विश्वास हो तो कोई भी मुकाम हासिल करना मुश्किल नहीं रहता। समीपस्थ ग्राम पटेवा से लगे ग्राम दर्रा की दामिनी साहू ने इसे चरितार्थ कर दिखाया है। आर्थिक रूप से बेहद ही गरीब परिवार की दामिनी ने पिछले महीने के अंत में यूरोपीय (europe )देश बुल्गारिया में आयोजित विश्व योग चैम्पियनशिप (World Yoga Championships) के एकल व युगल प्रतियोगिता में रजत पदक जीतकर न केवल अपने परिवार बल्कि अपने गांव, प्रदेश और देश का नाम समूचे विश्व में चमकाया है।

इसके पहले वर्ष 2017 में भी दामिनी ने नेपाल में आयोजित ऐसी ही प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर अपनी क्षमता से लोगों को अवगत करा दिया था। दामिनी को बुल्गारिया और कनाडा देश से योग प्रशिक्षक बनने का ऑफर भी दिया गया है। विश्व स्तर पर दामिनी को लगातार मिल रही सफलता उसकी तीव्र इच्छाशक्ति और जज्बे का परिणाम है। लेकिन दामिनी की यह सफलता उसे यूं ही नहीं मिली है, बल्कि इसके लिए उसे काफी संघर्ष करना पड़ा है।

दामिनी के पिता परदेशीराम साहू एक हाथ से दिव्यांग हैं। बावजूद इसके उन्होंने 5 सदस्यीय परिवार के भरणपोषण के लिए गोदी खनन, रोजी-मजदूरी करने के साथ-साथ मेले-मड़ई में गुब्बारा तक बेचा है। खुद दामिनी ने परिवार की बदहाल आर्थिक स्थिति को देखते हुए स्कूली जीवन में पढ़ाई के साथ-साथ भवन निर्माण करने वाले ठेकेदार के अधीन ईट ढुलाने वाली रेजा का काम किया है। आज दामिनी एक निजी कॉलेज में योग साइंस में अंतिम वर्ष की छात्रा है। दामिनी के उल्टे हाथ की 3 उंगलियॉं आधी कटी हुई हैं, इसके बाद भी उसने इसे योग सीखने में आड़े नहीं आने दिया और लगातार आगे बढ़ती गई।

दामिनी बताती है कि स्कूल में पढ़ते समय वह मोटी थी। उसने किसी से सुना कि योग करने से न केवल दुबला हुआ जा सकता है बल्कि स्वस्थ भी रह सकते हैं। इसके बाद उसने स्कूल में ही योग करना शुरू किया, जो आज उसकी जिंदगी का अभिन्न और महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। अपनी सफलता का श्रेय दामिनी अपने गुरु राजकुमार साहू को देती हैं। दामिनी के पिता परदेशीराम साहू रोते हुए बताते हैं कि उनकी बेटी लगातार पदक जीतकर न केवल उनके परिवार का बल्कि जिले, राज्य और देश का नाम समूचे विश्व में गौरवान्वित कर रही है। दामिनी के योगदान को देखते हुए राज्य व केन्द्र सरकार को भी चाहिए कि वे आगे पढऩे व बढऩे में दामिनी का सहयोग करे। दामिनी के स्कूल के शिक्षक मनोज साहू बताते हैं कि दामिनी योग के साथ-साथ पढ़ाई में भी काफी होशियार थी। उसका परिवार काफी तंगहाल स्थिति में पहले भी था और आज भी है। लेकिन उसने इन चीजों को अपनी कला के आड़े नहीं आने दिया।

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