मैनेजमेंट का कहना है कि कोरोना काल में बीते चार माह का वेतन संस्था देने में असमर्थ है। इस माह से जो वेतन दे रहे हैं, उसमें काम करना है तो करें अन्यथा रिजाईन दे देखें इस पर नाराज शिक्षकों ने स्कूल जाना बंद कर दिया और पढ़ाई चौपट हो गई। यही नहीं ऑनलाइन जुड़े छात्रों को चार हजार की पुस्तक लेने बाध्य किया जा रहा है। जो छात्र नहीं खरीद रहे हैं उसे ऑनलाइन पढ़ाई से हटा दिया जाता है। पालकों का आरोप है कि यह स्कूल शिक्षा के साथ साथ व्यापार भी कर रही हैं।
जो पुस्तक कापी बाजार में 50 प्रतिशत कम रेट में मिल जाती है इनकी तानाशाही के चलते मजबूरीवश पालकों को स्कूल से खरीदना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए प्रास्पेक्टस का रेट 300 रुपए है और वह भी लेना अनिवार्य है। जिसकी ऑनलाइन पढ़ाई के समय कोई आवश्यकता नहीं है। बाजार में उक्त बुक को प्रिंट करायेंगे तो 70 रुपए में प्रिंट हो जाएगी। अगर प्रबंधक द्वारा प्रिंट कराकर 300 रुपए में दिया जा रहा है। यही नहीं जो फीस ली जाती उसकी रसीद नहीं दी जाती। जो रसीद दी जाती है इसमें स्कूल का नाम नहीं रहता।