scriptपुराने रिति रिवाजों में बदलाव करते हुए दिल्लीवार कुर्मी समाज ने मृत्यु पर कफन और साड़ी पर लगाया प्रतिबंध | Society prohibits the shroud and sari on death in Chhattisgarh | Patrika News

पुराने रिति रिवाजों में बदलाव करते हुए दिल्लीवार कुर्मी समाज ने मृत्यु पर कफन और साड़ी पर लगाया प्रतिबंध

locationगरियाबंदPublished: Mar 29, 2019 03:15:41 pm

Submitted by:

Deepak Sahu

किसी के देहावसान होने पर कफन कपड़ा ओढ़ाने के बजाए दान पेटी में नगद राशि दान की जाए।

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पुराने रिति रिवाजों में बदलाव करते हुए दिल्लीवार कुर्मी समाज ने मृत्यु पर कफन और साड़ी पर लगाया प्रतिबंध

राजिम. पुराने रिति रिवाजों में परिवर्तन करते हुए दिल्लीवार क्षत्रिय कुर्मी समाज राजिम राज ने निर्णय लिया है कि सामाजिक जनों में किसी के देहावसान होने पर कफन कपड़ा ओढ़ाने के बजाए दान पेटी में नगद राशि दान की जाए। इसके लिए बकायदा राजिम राज के सभी गांवों में श्रद्धाजंलि पेटी दी गई है, जिसे किसी के निधन होने पर शव दाह स्थल पर रखा जाता है।
जिसमें लोग अपने श्रद्धानुरूप राशि डालते हैं। दरअसल यह रीति रिवाज बरसों से चली आ रही थी कि निधन होने पर कफन ओढ़ाया जाना चाहिए। लेकिन एक कफन को छोडक़र बाकी को या तो फेंक दिया जाता था या फिर जला दिया जाता था। कई जगह तो इस कपड़ों को जो ले जाता था वह पुन: दुकानदार को बेच देता था और उसी को फिर से लेते थे। पिछले दिनों हुए समाज के वार्षिक अधिवेशन में यह अनुकरणीय व सराहनीय निर्णय लिया गया। जिसका पालन अब राजिम राज के समाजिक जन कर रहे हैं। लोगों ने इसे एक अच्छी पहल बताते हुए हर समाज को इसका अनुकरण करने की बात कही है।
साथ ही एक और निर्णय लिया गया हैं कि समाज के किसी व्यक्ति के निधन होने पर विधवा महिला को दशगात्र के दिन साड़ी देने की प्रथा को भी बंद किया गया हैं। इससे कुरीति पर लगाम लगेगा। पहले होता यह था कि दशगात्र के दिन समाज के विधवा को तालाब में साड़ी दी जाती थी, जिसे बंद कर इसके बदले में नगद राशि देने की रीति की शुरूआत की है।
प्रांतीय प्रतिनिधि गुलाब देशमुख ने चर्चा करते हुए कहा कि कई कुरीति समाज में चल रही थी। कुछ पर वर्तमान परिवेश के हिसाब से बंद करने का निर्णय लिया गया है। कफन और साड़ी देने की प्रथा को इसलिए बंद किया गया है कि एक कफन घर के लोग तो ओढ़ाते ही हैं कुछ आस पड़ोस के लोग या परिवार के लोग भी ओढ़ा देते हैं। ऐसे में ग्रामवासी या सामाजिक लोगों के द्वारा भी कफन और साड़ी ले जाया जाता हैं जो व्यर्थ में ही जाता है।
इसके बदले यदि नगद राशि प्रदान की जाती है तो उक्त परिवार के आर्थिक सहयोग में हम सभी लोग सहभागी बन जाते हैं और ऐसे समय में आर्थिक सहयोग भी सबसे बड़ा मद्द रहता है।
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