scriptLockdown 2.0: गयाधाम के विष्णुपद मंदिर में खुद पिंडदान कर रहे हैं पंडित, यह है पुरानी परंपरा | Bihar News: Pandit Doing Fulfill Ritual Of Vishnupad Temple Gaya Dham | Patrika News

Lockdown 2.0: गयाधाम के विष्णुपद मंदिर में खुद पिंडदान कर रहे हैं पंडित, यह है पुरानी परंपरा

locationगयाPublished: Apr 25, 2020 04:39:02 pm

Submitted by:

Prateek

Bihar News: आचार्य नवीन चंद्र वैदिक कहते हैं कि गया माहात्म्य में हर दिन गयाधाम (Vishnupad Temple Gaya Dham) में…

Lockdown 2.0: गयाधाम के विष्णुपद मंदिर में खुद पिंडदान कर रहे हैं पंडित, यह है पुरानी परंपरा

Lockdown 2.0: गयाधाम के विष्णुपद मंदिर में खुद पिंडदान कर रहे हैं पंडित, यह है पुरानी परंपरा

प्रियरंजन भारती
गया: पितरों को जन्म जन्मांतर से मुक्ति दिलाने के लिए सनातन धर्मावलंबियों के प्रसिद्ध गयातीर्थ के विष्णुपद मंदिर में इन दिनों यजमानों को सुफल देने वाले गयावाल पंडे ही खुद पिंडदान कर रहे हैं। वायु पुराण, गरूड़ पुराण और गया माहात्म्य के मुताबिक गयाधाम में हर दिन ‘एक पिंड और एक मुंड ज़रूरी है।

 

लॉकडाउन में एक भी पिंडदानी गया नहीं आ रहा

कोरोना वायरस के तेजी से फैलते संक्रमण से बचाव के लिए जारी लॉकडाउन में एक भी पिंडदानी यात्री गया नहीं आ पा रहा है। ऐसी हालत में पिंडदानियों को सुफल देने वाले गयावाल पंडे ही खुद विष्णुवेदी पर पिंड तर्पण कर सदियों से चली आ रही सनातन परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।तीर्थ पुरोहित विष्णुचरण पर पिंड दान कर विष्णुभक्त गयासुर को भगवान द्वारा दिए गए वरदान को श्रद्धापूर्वक पूरा कर रहे हैं। गया धाम की परंपरा का निर्वहन करते हुए गुरुवार और शुक्रवार को भी विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सचिव और तीर्थ पुरोहित शंभूदयाल विट्ठल ने पिंडदान किया। सुबह की पूजा के बाद विष्णु चरण पर पिंडदान किया गया। विट्ठल ने कहा कि शास्त्रों में गयाधाम में एक पिंड और एक मुंड का विधान ज़रूरी बताया गया है।

 

गयासुर को भगवान विष्णु ने दिया था वरदान

वायु पुराण के अनुसार गयासुर के ह्रदय संयंत्र पर जग कल्याण के लिए हो रहे विष्णुयज्ञ के दौरान सभी देवी देवता वहां पधारे थे। अग्निकुंड की जलधारा से मरणासन्न विष्णुभक्त गयासुर के विशालकाय शरीर पर शिला रखकर भगवान विष्णु ने जब उसे बलपूर्वक दबाया तब प्राणांत से पूर्व उसने तीन वरदान मांगने थे। एक यह कि सभी आगत देवी देवता हमेशा उसके शरीर पर विराजमान रहें। दूसरा यह कि हर दिन भगवान के चरण जहां पड़े हैं वहां एक पिंडदान हो और तीसरा यह कि हर दिन एक मुंड भी चढ़े। इन तीन वरदानों के चलते ही गयातीर्थ सनातनियों का प्रथम तीर्थ माना गया। हर दिन एक पिंडदान की व्यवस्था सुनिश्चित की गई। आम तौर पर तो कोई न कोई यात्री आकर पिंडदान करता ही है पर कभी किसी के नहीं आने पर तीर्थ पुरोहित मंदिर के कपाट बंद होने से पहले विष्णुवेदी पर पिंडदान कर ही देते हैं। विष्णुपद मंदिर के सटे श्रमदान घाट पर आए दिन मृतकों के शवदाह की कतारें लगी रहती हैं। मगर कभी यदि कोई दाह संस्कार नहीं हो पाया तो अर्द्ध रात्रि से पहले पुआल का शव बनाकर दाह संस्कार करते हुए गयासुर के वरदान के क्रम को जारी रखा जाता है।

हर दिन पिंड मुंड ज़रूरी

आचार्य नवीन चंद्र वैदिक कहते हैं कि गया माहात्म्य में हर दिन गयाधाम में एक मुंड और एक पिंड अनिवार्य कहा गया है। विशेष परिस्थितियों में यदि शवदाह नहीं हो पाता तो श्मशानाक्षी काली के निवास श्मशान घाट पर प्रतीक के रूप में पुतला दहन कर दिया जाता है। वैदिक ने बताया कि सारे तीर्थों में गयातीर्थ इसलिए ही महान है कि भगवान विष्णु ने अपने भक्त गयासुर को मरने से पूर्व सभी देवताओं के यहीं निवास करने की अभिलाषा वरदान देकर पूरी कर दी थी।

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