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सैकड़ों साल से पितृपक्ष शुरू होते ही विष्णुपद एवं फल्गु नदी समेत विभिन्न वेदियों पर लाखों देशी-विदेशी तीर्थयात्रियों की भीड़ पिंडदान करनेवालों के लिए जुटती थी, पर इस साल इक्के-दुक्के गया एवं आस-पास के तीर्थयात्री दिखाई पड़ रहे हैं। दरअसल कोरोना की वजह से बिहार सरकार ने इस साल पितृपक्ष मेला स्थगित कर दिया है। सरकार की ओर से यहां के पंडा समाज को भी निर्देश दिए गए हैं कि वे श्रद्धालुओं को आने से मना कर दें। मेला स्थगित होने से पंडा समाज के साथ ही इस मेले से जुड़े व्यवसायियों के समक्ष आर्थिक तंगी की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
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चुनाव हो सकता है तो मेला बैन क्यों?
विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी के सदस्य गजाधर लाल पाठक ने कहा कि कोरोना की वजह से पिछले मार्च माह से ही वे लोग आर्थिक तंगी झेल रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि पितृपक्ष के दौरान उन लोगों की कुछ कमाई हो सकेगी। उन्होंने सरकार के आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि सनातन धर्म में किसी तरह की आफत या महामारी आने पर मंदिरों में विशेष पूजा आराधना और यज्ञ करने की प्राचीन परम्परा रही है, लेकिन उसपर पाबंदी लगा दी गई है। यह सरकार कोरोनाकाल में चुनाव कराने के लिए तो तैयार है, लेकिन पितृपक्ष जैसे धार्मिक आयोजन को स्थगित कर रही है।
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निराश हैं पंडा एवं व्यवसायी
पितरों की आत्मा की शांति कि लिए पिंडदान और तर्पण कराने में यहां के गयवाल पंडा समाज की मुख्य भूमिका होती है। उनके आदेश से ही मेला क्षेत्र में पिंडदान की शुरुआत होती है। अंत में पंडा समाज के आशीर्वाद से ही श्राद्ध कर्म सफल माना जाता है। कहा जाता है कि पितृपक्ष के 17 दिन के दौरान की कमाई से पंडा समाज सालों भर रोजी-रोटी चला लेता है। यही वजह है कि पितृपक्ष के इतिहास में पहली बार मेला पर कोरोना का साया पड़ने से पंडा समाज निराश और हताश हैं। गौरतलब है कि पितृपक्ष मेला स्थगित होने से गया के करीब 200 पंडों के साथ ही हजारों व्यवसायियों की रोजी-रोटी पर भी आफत आ गई है। इससे गयातीर्थ क्षेत्र में दिखने वाली चहल—पहल इस बार सिरे से गायब हो गई है। इसे पशु पक्षी और विचरने वाली गाएं भी अचरज भरी नज़रों से देख रही हैं।