दास ने बताया कि महिलाएं मंगलवार को ही गया आ गई थीं।देवघाट में पिंडदान के बाद रूसी महिलाएं विष्णुपद मंदिर पहुंचीं और श्री चरणों के दर्शन पूजन किए।विष्णुपद मंदिर से महिलाओं का जत्था संकीर्तन करता और नृत्य करता चांदचौरा होता हुआ इस्कॉन मंदिर पहुंचा।
रूसी महिलाओं में से एक एरिना ने बताया कि गया आकर बहुत शांति मिली।यह ज्ञान और मोक्ष की धरती है।हमसभी ने भी अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए भगवान की पूजा और विधिवत प्रार्थना की है।
गया धाम में पिंडदान कर पूर्वजों को जन्म मृत्यु के बंधनों से मुक्ति दिलाने का पावन कर्मकांड विश्वभर में प्रसिद्ध है।यहां विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग पिंडदान के लिए पहुंचते हैं।खासकर आश्विन कृष्णपक्ष यानी पितृपक्ष के दौरान विदेशों से बहुतेरे तीर्थयात्री गया आकर पिंड तर्पण करते हैं।पितृपक्ष के दौरान इस बार भी रूसी महिलाओं का एक बड़ा जत्था यहां आकर पिंडदान कर गया था।
विदेशों में मॉरिशस, सूरिनाम, फिजी,इंग्लैंड, अमेरिका, श्रीलंका, जापान, कोरिया आदि देशों में जा बसे भारतवंशी अपने पूर्वजों की तृप्ति के लिए गया आकर हर वर्ष पिंडदान कर जाने वालों में चर्चित हैं।मनुष्यों के मृत्योपरी श्राद्धकर्म के पश्चात कुल के पितरों की प्रेतयोनि और जन्म जन्मांतर से हमेशा से मुक्ति के लिए पवित्र गयातीर्थ में पिंडदान की बड़ी.सनातन महत्ता है।वायु पुराण के गया माहात्म्य के अनुसार विष्णुभक्त गयासुर के ह्रदयस्थल पर भगवान विष्णु के दाहिने चरण के दबाव से उसकी मुक्ति के दौरान यज्ञ में आए कोटिशः देवी देवताओं को यहीं निवास करने और हर दिन एक पिंड और एक मुंड मिलने का वरदान भगवान ने उसे दिया था।तब से यह मान्यता चली आ रही है और आज भी कायम है।इसी लिए गयातीर्थ को सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कहा गया है।