scriptकभी नास्तिकवाद का परचम लहराने वाले रूसी भी अब कर्मकांड की शरण में | Russians who once woke up to the atheism, are now in the Ritual | Patrika News

कभी नास्तिकवाद का परचम लहराने वाले रूसी भी अब कर्मकांड की शरण में

locationगयाPublished: Feb 13, 2020 08:41:15 pm

Submitted by:

Yogendra Yogi

कभी कम्युनिज्म के जरिए पूरे विश्व में नास्तिकवाद के प्रसिद्ध रहे रूस के ( Indian rituals attarcts of Russians ) लोगों का भी आत्मा-परमात्मा और पुर्नजन्म जैसे धार्मिक मामलों में भरोसा होने लगा है। रूस से आई पचास महिलाओं ( Russian women paying rituals for their beloved ) ने गयाधाम के विष्णुपद मंदिर स्थित देवघाट पर पितरों के मोक्ष की कामना लिए सामूहिक पिंडदान किया।

कभी नास्तिकवाद का परचम लहराने वाले रूसी भी अब कर्मकांड की शरण में

कभी नास्तिकवाद का परचम लहराने वाले रूसी भी अब कर्मकांड की शरण में

गया(प्रियरंजन भारती): कभी कम्युनिज्म के जरिए पूरे विश्व में नास्तिकवाद के प्रसिद्ध रहे रूस के ( Indian rituals attarcts of Russians ) लोगों का भी आत्मा-परमात्मा और पुर्नजन्म जैसे धार्मिक मामलों में भरोसा होने लगा है। रूस से आई पचास महिलाओं ( Russian women paying rituals for their beloved ) ने गयाधाम के विष्णुपद मंदिर स्थित देवघाट पर पितरों के मोक्ष की कामना लिए सामूहिक पिंडदान ( After death Hindu ritual ) किया। गयावाल पंडा मुनिलाल कटरियार ने महिलाओं का वैदिक मंत्रोच्चार के साथ कर्मकांड करवाया। रूसी महिलाएं इस्कॉन मंदिर के जगदीश किशोर दास के नेतृत्व में यहां पहुंची थीं। दास ने बताया कि महिलाएं मंगलवार को ही गया आ गई थीं। देवघाट में पिंडदान के बाद रूसी महिलाएं विष्णुपद मंदिर पहुंचीं और श्री चरणों के दर्शन पूजन किए। विष्णुपद मंदिर से महिलाओं का जत्था संकीर्तन करता और नृत्य करता चांदचौरा होता हुआ इस्कॉन मंदिर पहुंचा।

रूसियों ने बताया ज्ञान और मोक्ष की धरती
रूसी महिलाओं में से एक एरिना ने बताया कि गया आकर बहुत शांति मिली। यह ज्ञान और मोक्ष की धरती है। हम सभी ने भी अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए भगवान की पूजा और विधिवत प्रार्थना की है। गया धाम में पिंडदान कर पूर्वजों को जन्म मृत्यु के बंधनों से मुक्ति दिलाने का पावन कर्मकांड विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहां विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग पिंडदान के लिए पहुंचते हैं। खासकर आश्विन कृष्णपक्ष यानी पितृपक्ष के दौरान विदेशों से बहुतेरे तीर्थयात्री गया आकर पिंड तर्पण करते हैं। पितृपक्ष के दौरान इस बार भी रूसी महिलाओं का एक बड़ा जत्था यहां आकर पिंडदान कर गया था।

विदेशों से भारतवंशी भी आते हैं पिंडदान करने
विदेशों में मॉरिशस, सूरिनाम, फिजी, इंग्लैंड, अमेरिका, श्रीलंका, जापान, कोरिया आदि देशों में जा बसे भारतवंशी अपने पूर्वजों की तृप्ति के लिए गया आकर हर वर्ष पिंडदान कर जाने वालों में चर्चित हैं। मनुष्यों के मृत्योपरी श्राद्धकर्म के पश्चात कुल के पितरों की प्रेतयोनि और जन्म जन्मांतर से हमेशा से मुक्ति के लिए पवित्र गया तीर्थ में पिंडदान की बड़ी.सनातन महत्ता है। वायु पुराण के गया माहात्म्य के अनुसार विष्णुभक्त गयासुर के ह्रदयस्थल पर भगवान विष्णु के दाहिने चरण के दबाव से उसकी मुक्ति के दौरान यज्ञ में आए कोटिश: देवी देवताओं को यहीं निवास करने और हर दिन एक पिंड और एक मुंड मिलने का वरदान भगवान ने उसे दिया था। तब से यह मान्यता चली आ रही है और आज भी कायम है। इसी लिए गया तीर्थ को सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कहा गया है।

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