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दरअसल, मामला मोदीनगर के सिकरी इलाके का है। जहां इस शख्स की 500 एकड़ जमीन है, जिसकी कीमत करीब 900 करोड़ बताई जा रही है। जो आज तक भी तहसीलदार के कारण सरकार में निहित नहीं हो सकी है। इतना ही नहीं, अब इस जमीन पर स्थानीय लोगों का कब्जा है। वहीं मामला सामने आने के बाद गाजियाबाद जिलाधिकारी ने इस जमीन को सरकार में निहित करने के लिए मुंबई स्थित कस्टोडियन को पत्र लिख दिया है। इसके साथ ही तहसीलदार के खिलाफ भी शासन से विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की गई है। यह भी पढ़ें
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बता दें कि पिछले वर्ष जिलाधिकारी को एक शिकायत प्राप्त हुई थी। जिसमें कहा गया था कि सिकरी में रोड किनारे कई सौ करोड़ रुपये की जमीन पर स्थानीय लोगों ने कब्जा किया हुआ है। यह जमीन विभाजन के वक्त पाकिस्तान जा चुके एक व्यक्ति के नाम पर थी। नियमानुसार इस पर सरकार का अधिकार होना चाहिए। इस शिकायत पर जिलाधिकारी ने अगस्त 2018 में तत्कालीन एसडीएम से मामले की जांच कराई। जिसमें यह सामने आया कि आजादी से पहले संपत्ति एक मुस्लिम के नाम पर दर्ज थी। इसके बाद इस मामले में जांच बैठा दी गई। जिसके बाद तहसीलदार ने जनवरी 2019 में इस जमीन को उसी व्यक्ति के नाम पर दर्ज कर दिया जो पाकिस्तान जा चुका था। यह भी पढ़ें
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जिसके बाद जिलाधिकारी ने मामले में घालमेल देखते हुए दो एडीएम की एक कमेटी गठित की। जिसने पूरे मामले की विस्तृत जांच की तो यह संपत्ति भारत छोड़कर जा चुका शख्स के नाम पर दर्ज पाई गई। जबकि यह संपत्ति शत्रु संपत्ति है, जिस पर अब सिर्फ सरकार का अधिकार है। इस जांच में तहसीलदार की भूमिका को भी संदिग्ध माना गया है। कमेटी द्वारा जिलाधिकारी को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि तहसीलदार जानते थे कि यह जमीन शत्रु संपत्ति है, लेकिन उन्होंने किसी वर्ग विशेष को फायदा पहुंचने के लिए मामले को मोड़ने की कोशिश की है और दोबारा से देश छोड़कर जा चुके व्यक्ति के नाम इस संपत्ति को दर्ज कर दिया गया है। इस बारे में जानकारी देते हुए जिलाधिकारी रितु माहेश्वरी ने बताया कि जांच में करीब 900 करोड़ की शत्रु संपत्ति का पता चला है। इसको सरकार में निहित करने के लिए पत्र लिखा गया है। मोदीनगर तहसीलदार पर लगातार गुमराह करने की कोशिश करने के लिए उनके खिलाफ भी शासन से विभागीय कार्रवाई की संस्तुति की गई है।