गाज़ियाबाद

सपा नेता के भाई की पुलिस हिरासत में मौत मामले पर आयोग सख्त, डीएम से पूछा- क्यों हुई मौत

ह्यूमन राइट डिफेंडर की याचिका पर आयोग ने आदेश देते हुए डीएम से पूछा है कि स्पष्ट रूप से बताया जाए कि युवक की पुलिस हिरासत में मौत क्यों हुई।

गाज़ियाबादSep 16, 2017 / 05:21 pm

Rajkumar

गाजियाबाद। लोनी में 2014 में समाजवादी पार्टी के नेता के भाई की पुलिस हिरासत में मौत होने के मामले में आयोग ने सख्ती दिखाई है। ह्यूमन राइट डिफेंडर की याचिका पर आयोग ने आदेश देते हुए डीएम से पूछा है कि स्पष्ट रूप से बताया जाए कि युवक की पुलिस हिरासत में मौत क्यों हुई। साढ़े तीन साल में भी मजिस्ट्रेट की जांच पूरी नहीं हुई। 17 अक्टूबर तक गाजियाबाद की जिलाधिकारी को इसमें अपना जवाब दाखिल करना है। आयोग को तय समय पर जवाब न दिए जाने पर डीएम को आयोग में तलब किया जा सकता है।

क्या है पूरा मामला

राजू यादव (42) पुत्र सीताराम यादव परिवार के साथ में लोनी में रहता था। 25 जनवरी 2014 को राजू ने अपने पड़ोस में रहने वाले शौकत के साथ मारपीट करने वाले दबंगों का विरोध किया था। 100 नम्बर पर सूचना देकर पुलिस से कार्रवाई किए जाने की मांग की गई थी। लेकिन पुलिस ने उल्टा राजू यादव को थाने लेकर जाकर उसके साथ मारपीट और प्रताड़ित किया। हालत बिगड़ने पर पुलिस ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया। अस्पताल में युवक की मौत हो गई थी। इस मामले में ह्यूमन राइड डिफेंडर की तरफ से आयोग में दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।

 

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अदालत को नहीं सौंपी गई जांच रिपोर्ट

मानव अधिकार आयोग ने मामले की सुनवाई के दौरान एसएसपी और डीएम से रिपोर्ट सबमिट करने के लिए कहा गया था। लेकिन अभी तक कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई। सिर्फ एडिशन एसपी ट्रैफिक की तरफ से एक रिपोर्ट आयोग को दी गई है।
ह्यूमन राइट डिफेंडर का कहना

राजीव शर्मा ने बताया कि आयोग ने मजिस्ट्रेट जांच और बिसरा रिपोर्ट के आधार पर युवक की मौत का फाइनल कारण पूछा है। चार सप्ताह के भीतर जिलाधिकारी को अपना जवाब दाखिल करना होगा। आयोग ने साफ कहा है कि जवाब न मिलने पर मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 13 के तहत सम्मन भेज कर तलब किया जाएगा। दिसम्बर 2016 में भी डीएम को व्यक्तिगत उपस्थिति के लिए बुलाया गया था। उनकी जगह एडीएम सिटी प्रीति जयसवाल गई थी और एक रिपोर्ट दी थी। इसमें बताया गया था कि मजिस्ट्रेट जांच अभी चल रही है। इसी को आधार बनाते हुए आयोग में दलील रखी गई कि 2014 से अब तक मजिस्ट्रेट की जांच ही चल रही है। इस पर सुनवाई करते हुए आयोग ने ये आदेश डीएम के लिए दिया है।
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