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मथुरा में शाही जामा मस्जिद पर हक जताने वालों को देवबंदी उलेमा ने बताया फिरकापरस्त आमतौर पर मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले फूलों को कचरे में डाल दिया जाता है, जिससे वातावरण दूषित होता है। वहीं, कुछ स्थानों पर मंदिर में चढ़ने वाले फूलों को जमीन में दबा दिया जाता है या फिर नदी में बहा दिया जाता है, जिससे नदी प्रदूषित होती है। साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। लेकिन, गाजियाबाद के इंदिरापुरम स्थित शिप्रा सनसिटी शिव मंदिर की ओर से मिसाल पेश की गई है। यहां चढ़ाए जाने वाली सामग्री को दो भागों में विभाजित किया जाता है। एक रिसाइकल और दूसरा नॉन रिसाइकल। रिसाइकल सामग्री जैसे फूल-पत्ती आदि को एक जगह एकत्रित किया जाता है। इसके बाद उसे इसके बाद उसे मंदिर में लगे बायोगैस प्लांट में भेज दिया जाता है।
पंडित विनय शर्मा ने बताया कि पहले यहां मंदिर में चढ़ने वाले फूलों को एकत्रित कर जमीन में दबाना पड़ता था या फिर उनको नदी में बहाना पड़ता था। जिससे पर्यावरण को नुकसान होने का खतरा बना रहता था। मंदिर समिति की ओर से करीब 2 वर्ष पहले यहां बायोगैस प्लांट लगाया गया, जिसमें करीब ढाई लाख रुपए का खर्च आया। तब से मंदिर में चढ़ाए गए फूल-पत्तों आदि को बायोगैस प्लांट में डाल दिया जाता है, जो कि 24 घंटे में खाद बन जाते हैं।
मंदिर के पुजारी पंडित विनय शर्मा ने बताया कि देवी-देवताओं को अर्पित किए गए फूलों का अनादर न हो और इसके लिए यहां एक बायोगैस प्लांट लगाया गया है। जिसमें रिसाकल होने वाली सामग्री से खाद और गैस बनाई जाती है। उस खाद से मंदिर के बगीचे में लगे पौधों को सींचने में इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, गैस को मंदिर में बनने वाले भंडारे में में इस्तेमाल किया जाता है। बहरहाल मंदिर समिति की इस पहल की यहां आने वाले सभी लोग सराहना करते हैं। वहीं, लोगों की आस्था से जुड़े श्रद्धा सुमन इधर-उधर नहीं फैलते हैं और उनका सही इस्तेमाल हो रहा है।