कमिश्नर डॉ. प्रभात कुमार ने की थी जांच इस मामले की जांच मेरठ (Meerut) के तत्कालीन कमिश्नर डॉ. प्रभात कुमार ने की थी। प्रभात कुमार ने अपनी रिपोर्ट में दोनों पूर्व डीएम निधि केसरवानी और विमल कुमार शर्मा पर कार्रवाई की संस्तुति की थी। 29 सितंबर 2017 को सौंपी गई रिपोर्ट में उन्होंने मामले की जांच सीबीआई से कराने की बात भी कही थी।
2016 में हुई थी शिकायत यह खेल गाजियाबाद के नाहल, डासना, रसूलपुर सिकरोड और कुशलिया की भूमि अधिग्रहण में किया गया था। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के लिए 2011-12 में 71.14 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई की गई थी। 2013 में इसका अवार्ड घोषित किया गया था। वर्ष 2016 में मेरठ कमिश्नर से 23 किसानों ने शिकायत की थी। उन्होंने कमिश्नर से मुआवजा नहीं मिलने की बात कही थी। कमिश्नर की जांच में बड़े घोटाले का खुलासा हुआ था। जांच में पाया गया था कि तत्कालीन डीएम/आर्बिट्रेटर ने मुआवजे की दर को बढ़ा दिया था।
रोक के बाद भी हुई जमीन की खरीद-फरोख्त आरोप है कि धारा 3-डी के बाद भी क्षेत्र में जमीनों की खरीद-फरोख्त हुई, जबकि इसके बाद जमीन नहीं खरीदी जा सकती है। किसानों से सस्ते दाम पर जमीन लेकर अधिकारियों से साठगांठ की और बढ़ा हुआ मुआवजा ले लिया गया। तत्कालीन एडीएम (एलए) के बेटे शिवांग राठौर के नाम पर भी शासन की अनुमति के बिना जमीन खरीदी गई थी। शिवांग राठौर ने नाहल, कुशलिया और हापुड़ के गांव पटना मुरादनगर में सात खसरा नंबरों की जमीन 30 सितंबर 2013 को 1582.19 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से खरीदी थी। यहां 1235.18 के हिसाब से अवार्ड घोषित हुआ था। जमीन एक करोड़ 78 लाख 5 हजार 539 रुपये में खरीदी गई थी। आर्बिट्रेशन के बाद इसका दाम 9 करोड़ 36 लाख 77 हजार 449 रुपये हुआ।
ये हुए थे सस्पेंड इस मामले में तत्कालीन एडीएम (एलए) घनश्याम सिंह और अमीन संतोष को सस्पेंउ कर दिया गया था। अमीन संतोष पर भी अपनी पत्नी व रिश्तेदारों के नाम पर जमीन खरीदकर ज्यादा मुआवजा लेने का आरोप है।