जिसके अंतर्गत अब पीड़ित परिवार के 28 अप्रैल को बयान दर्ज किए जाने हैं। बहरहाल, इस पूरे मामले में कहीं ना कहीं अब स्कूल के अलावा इस पूरे मामले की जांच कर रहे पुलिसकर्मी भी घेरे में आते दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि आरोप है कि इस मामले में पुलिस कर्मियों द्वारा फर्जी बयान दिखाकर फाइनल रिपोर्ट लगाई गई थी।
पीड़ित छात्रा के पिता ने बताया कि उनकी पुत्री को 10 अप्रैल 2018 को विजय नगर प्रताप विहार स्थित रेनबो पब्लिक स्कूल में कंप्यूटर के डार्क रूम में फीस जमा ना किए जाने के कारण बंद रखा गया था। जब उसकी शिकायत उसने अपने परिजनों से की तो वह 11 अप्रैल को स्कूल प्रबंधन से मिले तो उनके साथ भी ठीक व्यवहार नहीं किया और बेटी का आठवीं कक्षा में फेल का रिजल्ट सौंपा दिया गया। जिस पर उनके द्वारा प्रतिक्रिया दी गई कि वह अपनी बच्ची की परीक्षा कॉपी की जांच करेंगे।
उसके बाद स्कूल प्रबंधन द्वारा उन्हें दोबारा बुलाया गया और 16 अप्रैल को बच्ची के आठवीं कक्षा का पास होने का रिजल्ट दे दिया गया। जिसके बाद बच्ची के परिजनों के द्वारा विलंब शुल्क के साथ स्कूल फीस भी जमा करा दी गई, लेकिन बच्ची उसी दिन से मानसिक बीमार रहने लगी और उसने पढ़ना लिखना बंद कर दिया। जिसके बाद उन्होंने डॉक्टर को दिखाया तो पता चलता कि बच्ची डिप्रेशन में चली गई है।
इसके बाद छात्रा के पिता ने गाजियाबाद की जिलाधिकारी, एसएसपी, डीआईजी, आईजी, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री के अलावा राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग से इस बारे में शिकायत पत्र देकर शिकायत की। इस पूरे मामले का संज्ञान लेते हुए आईजी के द्वारा 14-08-2018 को पूरे मामले की जानकारी के बाद रिपोर्ट मांगी गई। जिसकी जांच प्रताप विहार स्थित पुलिस चौकी पर तैनात तत्कालीन चौकी इंचार्ज शेषम सिंह को सौंपी गई ।
छात्रा के पिता रियाज अहमद ने बताया कि इस पूरे मामले की जांच कर रहे चौकी इंचार्ज द्वारा भी उनसे कोई बयान नहीं लिया गया और उनके द्वारा स्कूल प्रबंधन की मिलीभगत के बाद इस पूरे मामले में फर्जी तरह से फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई। इसकी शिकायत दोबारा पीड़ित परिवार द्वारा राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग से की गई। जिसका संज्ञान लेते हुए अब दोबारा से राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग द्वारा गाजियाबाद के जिलाधिकारी और एसएसपी से 15 दिन का जवाब मांगा है।