गहमर के रवि प्रताप सुबह-सुबह दंड बैठक करते हुए मिले। पसीने से लथपथ रवि ने बताया मेरी तीन पीढिय़ां फौज में रही हैं। मुझे भी फौज में जाना है। रवि को विश्वास है कि वह इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करते ही फौज में भर्ती हो जाएंगे। गाजीपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर गंगा किनारे बसा गहमर गांव 8 वर्ग मील में फैला है। यह 22 पट्टियों यानी टोलों में बंटा है। हर टोले में रवि की ही तरह दर्जनों युवाओं की आंखों में सुनहरे भविष्य का सपना है। कोई एयरमैन की तैयारी में जुटा है, कोई नाविक तो कोई जवान बनना चाहता है। बहुत सारे युवा एनडीए और सीडीएस की तैयारी में जुटे हैं। इसके लिए गांव के भूतपूर्व सैनिक युवाओं को निशुल्क कोचिंग देते हैं। किताबी ज्ञान से लेकर फिजिकल तैयारी सब कुछ यहां दिनभर चलती रहती है।
दोनों विश्वयुद्ध हो या फिर 1965 व 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग। और बाद में कारगिल की लड़ाई, गहमर के फौजियों ने हर जंग में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। द्वितीय विश्व युद्ध में गांव के 228 सैनिक अंग्रेजी सेना में शामिल थे। 21 को वीरगति मिली। इनकी याद में गहमर मध्य विद्यालय के मुख्य द्वार पर शिलालेख लगा है। गांव की महिलाएं कहती हैं देश सेवा के लिए पुरुषों को भेजना गर्व की बात है।
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गहमर स्टेशन पर छावनी का नजारा
गहमर गांव में डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज, उच्च विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय, प्राथमिक विद्यालय और स्वास्थ्य केंद्र हैं। गहमर रेलवे स्टेशन पर दो दर्जन से अधिक गाडिय़ां रुकती हैं। सैनिकों की इतनी आवाजाही है कि स्टेशन छावनी जैसा लगता है। गांव में राजपूतों की आबादी ज्यादा है।
गांव 80 वर्षीय सेना के रिटायर्ड सूबेदार हरिकेश बताते हैं कि 1530 में सकरा डीह नामक स्थान पर कुसुम देव राव ने गहमर गांव बसाया था। यहां प्रसिद्ध कामाख्या देवी मंदिर भी है। यह पूर्वी यूपी व बिहार के लोगों के आस्था का केन्द्र है। मां कामाख्या गांव की कुलदेवी हैं।