गाजीपुर

शहीद मेजर विकास सिंह को नम आंखों से दी गयी विदायी, कश्मीर क माछिल में हुई शहादत

गाजीपुर के ताड़ीघाट स्थित पैतृक आवास पहुंचा पार्थिव शरीर, अंतिम दर्शन को उमड़ी भीड़।
गाजीपुर घाट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ हुआ अन्तिम संस्कार।

गाजीपुरApr 16, 2019 / 09:47 am

रफतउद्दीन फरीद

शहीद मेजर विकास का अंतिम संस्कार

गाजीपुर . जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में शहीद मेजर विकास सिंह का पार्थिव शरीर सोमवार की रात उनके पैतृक गांव ताड़ीघाट पहुंचा तो उनकी शहादत पर सलाम करने वालों का जनसैलाब उमड़ा। जिला प्रशासन के अधिकारियों, जिले की राजनीतिक हस्तियों ने भी शहीद मेजर को पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी। पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ। करीब एक घंटे तक उनका पार्थिव शरीर आवास पर रखने के बाद गाजीपुर के श्मशान घाट लाया गया जहां सेना के जवानों ने उन्हें सैनिक सलामी दी। उनकी चिता को मुखाग्नि चाचा ने दी।
 

मौके पर पहुंचे सिटी मजिस्ट्रेट एसपी सिंह ने बताया कि 14 अप्रैल को शहीद मेजर विकास सिंह कुपवाड़ा डिस्ट्रिक्ट के माछिल सेक्टर में कॉम्बिंग कर रहे थे। इसी दौरान एक सैनिक फिसल गयाख् जिसे बचाने के चक्कर में मेजर असंतुलित होकर खायी में गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गए। सिर में गंभीर चोट आने के बाद उन्हें श्रीनगर बेस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गयी। इसकी सूचना उनके परिजनों को सोमवार को मिली। वाराणसी होते हुए उनका पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव गाजीपुर जिले के ताड़ीघाट पहुंचा। सिटी मजिस्ट्रेट ने जानकारी दी कि मेजर को शहीद का दर्जा दिया गया है। राज्य सरकार की ओर से उनके परिवार को 25 लाख रुपये की मदद की गयी है। इसमें 20 लाख रुपये उनकी पत्नी और पांच लाख उनकी माता जी को मदद की गयी है। इसके अलावा सेना की ओर से जो भी मदद आएगी वह केन्द्र सरकार देगी।
 

शहीद को अंतिम विदायी देने पहुंचे पूर्व मंत्री ओम प्रकाश सिंह ने इस बात पर संतुष्टि जतायी कि मेजर की ऑन ड्यूटी दुर्घटना में हुई मौत के बाद उन्हें शहीद का दर्जा दिया गया है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र के नौजवान इस बात को कत्तई न भूलें कि एक सैनिक की जान बचाते हुए हमारे मेजर विकास सिंह शहीद हो गए, यह एक बड़ी मिसाल है।
 

बता दें कि मेजर गाजीपुर के ताड़ीघाट के रहने वाले मेजर विकास 2010 में सेना में भर्ती हुए और 12वीं इन्फेन्ट्री राज राजफल में बतौर मेजर कश्मीर में पोस्ट थे। करीब डेढ़ साल पहले ही उनकी शादी हुई थी। बताया गया है कि 1993 में शहीद मेजर के पिता की हत्या हो गयी थी और तब वह महज दो-तीन साल के थे। चाचा ने ही उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी उठायी।
By Alok Tripathi
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