गाजीपुर के आलमपट्टी मुहल्ले के लकड़ी व्यवसायी जनार्दन प्रसाद के बेटे अरविंद शर्मा को पिता ने सेहत ठीक करने के लिये स्टेडियम भेजा तो वहां उन्हें पावर लिफ्टिंग का चस्का लग गया। 1994 में इंटरमीडिएट की पढ़ायी के दौरान गाजीपुर स्टेडियम के स्पोर्ट अफसर स्व. एसबी त्यागी की नजर उनपर पड़ी। 1994 से 96 तक अरविंद ने उन्हें गुरू बनाया और खेल की सारी बारीकियां सीख लीं।
गाजीपुर जैसी छोटी जगह पर पावर लिफ्टिंग को जानने वाले बेहद कम थे। अरविंद जब गाजीपुर पीजी कॉलेज पहुंचे तो वहां की टीम में शामिल हो गए। पहली बार पूर्वांचल विश्वविद्यालय में ऑल इंडिया कंपटीशन का हिस्सा बने। इसके बाद 1996 में त्रिवेंद्रम, 97 में रायपुर पावर लिफ्टिंग की चैंपियनशिप खेली और पदक जीते। 1998 में पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में जुनियर नेशनल चैंपियनशिप में न सिर्फ गोल्ड मेडल हासिल किया, बल्कि 15 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया। 1999 में वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिये चेक गणराज्य के न्युम्बर्ग शहर में चौथा स्थान हासिल किया। 2004 में दिल्ली में सीनियर नेशनल में गोल्ड मेडल के बाद आखिरी चैंपियनशिप केरल के अलेप्पी में खेला। परिवार वालों के कहने पर पुलिस की नौकरी भी नहीं की।
इसके बाद वो अपने पारिवारिक लकड़ी का काम संभालने लगे। पर खेल के प्रति रूची कम नहीं हुई और इन्होंने पावर लिफ्टिंग के और खिलाडियों को आगे लाने के लिये खुद स्टेडियम जाकर संसाधन विहीन खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देने लगे। अपना खुद का फिटनेस सेंटर खोला और वहां पावर लिफ्टिंग के संसाधन विहीन खिलाड़ियों के लिये मुफ्त ट्रेनिंग देनी भी शुरू कर दी। वर्तमान समय में 20 खिलड़ियों को वो ट्रेनिंग दे रहे हैं। उनका कहना है कि संसाधन विहीन खिलाड़ियों को अगर मौका मिले तो गाजीपुर से कई अरविंद शर्मा निकल सकते हैं और मैं उसी के लिये काम कर रहे हैं।
By Alok Tripathi