मामला यूपी के निकाय चुनाव का है। गाजीपुर के सैदपुर नगर पंचायत सीट पर तब महज चार वार्ड हुआ करते थे। वो ऐसा समय था जब सभासद बनना समाजसेवा करने और अपनी पहचान बनाने के लिये एक शौक की तरह हुआ करता था। उस समय सैदपुर के एक वार्ड में मुकाबला दिलचस्प हो गया। एक तरफ जनसंघ के नेता थे और मजबूत उम्मीदवार थे। उनके सामने थे साइकिल बनाने वाले पंचर बनाने वाले भूवनेश्वर। उन्हें कांग्रेस ने टिकट दिया था। लोगों ने भूनेश्वर की ईमानदारी और उनके व्यक्तित्व को देखते हुए उन पर भरोसा जताया। यही वजह थी कि भूनेश्वर ने 180 वोटों के बड़े अन्तर से हराया।
तब पैसे देकर नहीं बुलानी पड़ती थी भीड़
भूनेश्वर अपने चुनाव के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि उन दिनों हमें चुनाव के लिये बहुत ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता था। तब भीड़ जुटाने के लिये रुपये नहीं खर्च करने पड़ते थे। लोग खुद आते थे। तब नेता को सुनने जो भीड़ आती थी वो उसकी साख पर आती थी। उन्होंने कहा कि जब वह चुनाव लड़े तो लोगों ने उन्हें हाथों हाथ लिया। महज दीवारों पर लिखावट और कुछ हैंडबिल के जरिये ही वह चुनाव जीत गए।
भूनेश्वर अपने चुनाव के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि उन दिनों हमें चुनाव के लिये बहुत ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता था। तब भीड़ जुटाने के लिये रुपये नहीं खर्च करने पड़ते थे। लोग खुद आते थे। तब नेता को सुनने जो भीड़ आती थी वो उसकी साख पर आती थी। उन्होंने कहा कि जब वह चुनाव लड़े तो लोगों ने उन्हें हाथों हाथ लिया। महज दीवारों पर लिखावट और कुछ हैंडबिल के जरिये ही वह चुनाव जीत गए।
by alok tripathi