धौरहरा के प्राइमरी स्कूल में बच्चों को कम्यूटर की ट्रेनिंग दी जाती है। विद्यालय में डिजिटल लाइब्रेरी है। यहां स्मार्ट क्लास लगती है, जहां बच्चों को प्रोजेक्टर के माध्यम से पढ़ाया जाता है। क्लास रूम वेल फर्निश्ड हैं। बच्चे डायनिंग टेबल पर ही बैठकर खाना खाते हैं। स्कूल में सभी स्टूडेंट्स टाई, बेल्ट और आइडेंटिटी कार्ड के साथ के साथ फुल यूनीफार्म में आते हैं। स्कूल में बच्चों के लिए हाई स्पीड इंटरनेट के साथ वाई-फाई की सुविधा भी उपलब्ध है। स्कूल स्टाफ ऑनलाइन सीसीटीवी से बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखता है। विद्यालय में सोलर पैनल की भी व्यवस्था है, जिससे पंखा, कम्प्यूटर और प्रोजेक्टर चलते हैं। बच्चों के लिये डांस क्लास भी चलती है।
शिक्षक रवि प्रताप सिंह की वजह से ही आज धौरहरा के प्राथमिक स्कूल में बदलाव की बयार बह रही है। पांच साल पहले जब उन्होंने स्कूल ज्वॉइन किया था, यहां चॉक-डस्टर तक नहीं था। स्कूल की हालत खस्ता थी। पीने के पानी से लेकर शौचालय तक नहीं था। बच्चे भी नियमित तौर पर स्कूल नहीं आते थे। इसके बाद रवि प्रताप गांव में जाकर अभिभावकों से मिले और बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया। ग्रामवासियों के सहयोग से स्कूल में हैंडपम्प लगवाया। खुद के पैसों से स्कूल का फर्श बनवाया और टूटा-फूटा प्लास्टर सही कराया। लखनऊ से जाते वक्त यहां से गमले और फूल के पौधे भी वह खरीद कर ले जाते थे। इतना ही नहीं वह स्कूल में पौधे को लगाने के लिये मिट्टी अपनी बाइक पर लादकर लाते थे। स्कूल बंद होने के बाद भी वह पौधों की निराई-गुड़ाई के साथ ही उन्हें पानी देते थे। इस कारण साथी शिक्षक उन्हें ‘सनकी’ टीचर तक कहने लगे। स्कूल में सुविधाओं की धुन में उन्होंने अपनी जेब से करीब 8 लाख रुपये खर्च कर डाले। उनकी मेहनत को देखते हुए जिलाधिकारी से लेकर विधायक तक उन्हें सहयोग किया। आज यह प्राइमरी स्कूल लोगों एक मिसाल बन गया है।