शारदीय नवरात्र को लेकर पश्चिम बंगाल के कारीगर तैयार कर रहे मां दुर्गा की प्रतिमा, जाने कहां की मिट्टी से बनता मां का चेहरा
गोंडाPublished: Jul 04, 2022 02:40:24 pm
प्रदेश के गोंडा जनपद में प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र से करीब 4 माह पूर्व पश्चिम बंगाल से माटी कला के कारीगर मां की प्रतिमा बनाने आते हैं। कोरोना काल में 2 वर्ष प्रतिमा बनाने का काम पूरी तरह से ठप रहा। नवरात्र को लेकर इस बार एक बार फिर कारीगर बड़ी संख्या में मां की प्रतिमा बनाने की तैयारियों में जुट गए हैं।
जिले के प्रसिद्ध नूरामल मंदिर में पश्चिम बंगाल नादिया जनपद से आए करीब एक दर्जन कारीगरों ने मां की प्रतिमा बनाने का काम शुरू कर दिया है। कारीगर प्रभात पाल ने बताया कि उनका यह पैतृक व्यवसाय है। इनके परिवार में लोग पीढ़ी दर पीढ़ी से प्रतिमा बनाने का काम करते हैं। करीब 40 वर्षों से प्रतिवर्ष वह लोग गोंडा में मां दुर्गा की प्रतिमा बनाकर बेचने का काम करते हैं। शारदीय नवरात्र को लेकर जून माह से ही काम शुरू हो जाता है। इसके लिए उन्हें कोई एडवांस आर्डर नहीं लेना पड़ता है। बल्कि प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र के अवसर पर जहां प्रतिमाएं रखी जाती हैं। वह ग्राहक स्वयं संपर्क बनाना शुरू कर देते हैं। वह प्रतिवर्ष यहीं से मूर्ति ले जाते हैं। इसलिए इन्हें मूर्ति बेचने में भी कोई परेशानी नहीं होती है। इनका कहना है की कोरोना काल में 2 वर्ष पूरी तरह से काम बंद रहा। जिससे इन लोगों की आर्थिक हालत काफी खराब हो गई। पर फिर यह लोग नवरात्र की आस में उत्साह के साथ प्रतिमा बनाने में जुट गए हैं। सबसे खास बात यह है कि मां की प्रतिमा बनाने के लिए मिट्टी बॉस धान का पुलाव अन्य सामग्री तो इन्हें यहां पर मिल जाती है। लेकिन कुछ सामान इन्हें पश्चिम बंगाल से ही मंगाना पड़ता है। मुख्य कारीगर हारू पाल ने बताया कि हम लोग जून माह से प्रतिमा बनाने का काम शुरू कर देते हैं जो नवरात्रि तक चलता है। उन्होंने कहा कि फिलहाल हम लोग इस वर्ष से मूर्ति का निर्माण कर रहे हैं। लेकिन अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। कब क्या हो जाए। एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि कोरोना काल में घाटा लग गया था। कहां की पहले से मूर्ति की कोई बुकिंग नहीं होती है लेकिन प्रतिवर्ष जो ग्राहक मूर्ति ले जाते हैं वह आकर यहां पर मूर्ति पसंद करते हैं। बताया की मूर्ति निर्माण में मां का चेहरा बनाने के लिए चिकनी मिट्टी हम लोग पश्चिम बंगाल से लाते हैं। यहां की मिट्टी से चेहरा बनाने पर चिटक जाता है। यहां की मिट्टी और वहां की मिट्टी में बहुत ही फर्क है। यहां से सिर्फ हम लोग बालू वाली मिट्टी लेते हैं। मूर्ति बनाने में बांस सुतली कील मिट्टी रंग पेंट के अलावा इसकी सजावट करने के लिए बाल भी बंगाल से ही आता है।