योग स्वरूपी अमृतधारा को पूरे विश्व पर बरसाने वाले ऋषि पतंजलि शेषनाग के थे अवतार इस समय पूरी दुनिया ने योग के महत्व को स्वीकार किया है। वहीं योग को पूरे समग्र विश्व में विख्यात करने वाले महर्षि पतंजलि की भूमि त्राहि त्राहि कर रही है। दुनिया के सभी देशों में योग का डंका बजाने वाले कि जन्मस्थली आज भी योग और विकास से महरूम है। यहां पहुंचने के लिए बीहड़ रास्तो को पार कर इस जगह पर आना पड़ता है। सबसे चौकाने वाली बात तो यह है कि जिस योग के नाम पर व पतंजलि ऋषि के नाम पर बाबा रामदेव हजारों करोड़ का व्यापार कर रहे हैं। की जन्मस्थली आज ही उपेक्षित है।
कैसे हुआ जन्म ऋषि पतंजलि की माता का नाम गोणिका था। इनके पिता के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पतंजलि के जन्म के विषय में ऐसा कहा जाता है कि यह स्वयं अपनी माता के अंजुली के जल के सहारे धरती पर नाग से बालक के रूप में प्रकट हुए थे। माता गोणिका के अंजुली से पतन होने के कारण उन्होंने इनका नाम पतंजलि रखा। ऋषि को नाग से बालक होने के कारण शेषनाग का अवतार भी माने जाता है।
गोण्डा के कोडर गांव में जन्मे थे योग के जनक बताते चलें कि महर्षि पतंजलि सिर्फ सनातन धर्म ही नहीं आज हर धर्मो के लिए पूज्य हैं। जिनके बताए योग के सूत्र से आज कितने लोगों ने असाध्य रोगों से मुक्ति पा ली और जिस अमृत को देवताओं ने अपने पास सम्भाल के रखा उस अमृत स्वरूपी योग को पूरी दुनिया में बांटने वाले महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली जनपद के वजीरगंज विकासखंड के कोडर गांव में स्थित है। महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली का साक्ष्य धर्मग्रंथों में भी मौजूद है। इस बात का प्रमाण पाणिनि की अष्टाध्यायी महाभाष्य में मिलता है। जिसमें पतंजलि को गोनर्दीय कहा गया है जिसका अर्थ है गोनर्द का रहने वाला। और गोण्डा जिला गोनर्द का ही अपभ्रंश है। महर्षि पतंजलि का जन्मकाल शुंगवंश के शासनकाल का माना जाता है। जो ईसा से 200 वर्ष पूर्व था। महर्षि पतंजलि योगसूत्र के रचनाकार है इसी रचना से विश्व को योग के महत्व की जानकारियां प्राप्त हुई। ये महर्षि पाणीनी के शिष्य थे।
महर्षि पतंजलि पर्दे के पीछे से अपने शिष्यों को देते थे शिक्षा एक जनश्रुति के अनुसार महर्षि पतंजलि अपने आश्रम पर अपने शिष्यों को पर्दे के पीछे से शिक्षा दे रहे थे । किसी ने ऋषि का मुख नहीं देखा था। लेकिन एक शिष्य ने पर्दा हटा कर उन्हें देखना चाहा तो वह सर्पाकार रूप में गायब हो गये। लोगों का मत है की वह कोडर झील होते हुए विलुप्त हुए। यही कारण है कि आज भी झील का आकार सर्पाकार है। योग विद्या जिसको आज अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिल चुकी है फिर भी योग के प्रेरणा स्त्रोत पतंजलि की जन्मस्थली गुमनाम है। बताया जाता है कि जन्मस्थली के नाम पर सिर्फ एक चबूतरा विद्यमान है। महर्षि पतंजलि अपने तीन प्रमुख कार्यो के लिए आज भी विख्यात हैं व्याकरण की पुस्तक महाभाष्य, पाणिनि अष्टाध्यायी व योगशास्त्र कहा जाता है कि महर्षि पतंजलि ने महाभाष्य की रचना का काशी में नागकुआँ नामक स्थान पर इस ग्रंथ की रचना की थी। आज भी नागपंचमी के दिन इस कुंए के पास अनेक विद्वान व विद्यार्थी एकत्र होकर संस्कृत व्याकरण के संबंध में शास्त्रार्थ करते हैं महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ है परंतु इसमें साहित्य धर्म भूगोल समाज रहन सहन से संबंधित तथ्य मिलते है।
सवा दो बीघा जमीन मंदिर के नाम पर है। इस पर भी कई जगहों पर अतिक्रमण है। यहाँ के पुजारी रमेश दास इस मंदिर की देख रेख व पूजा पाठ करते हैं। उनके मुताबिक इस स्थल की शासन प्रशासन से लेकर किसी भी जनप्रतिनिधियों तक ने इसके लिए कोई आवाज नहीं उठाई। विगत कुछ वर्षों पूर्व वर्तमान के योग गुरु कहे जाने वाले बाबा रामदेव के गोण्डा आगमन पर कुछ विद्वानों ने पतंजलि जन्मस्थली की विषय में बताया था। जबकि उनकी संस्था पतंजलि योगपीठ आज उन्ही के नाम पर विश्वविख्यात है और स्वदेशी के नाम पर अरबो रुपये का व्यापार भी होता है। फिर भी जन्मस्थली का कोई पुरसाहाल लेने वाले नहीं है। पतंजलि जन्मभूमि न्यास के संस्थापक इस स्थली को जागृत रखने के लिए वह प्रति वर्ष अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर इस स्थल पर विभिन्न कार्यक्रम का आयोजन करते है। ताकि महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि हमारी युवा पीढ़ी भूल न जाये। योग शिक्षक रवि शंकर द्विवेदी ने बताया हम यहां प्रतिदिन लोगों को योग की शिक्षा देते हैं। कहां की 40 से 50 लोग प्रतिदिन यहां योग की शिक्षा लेने आते हैं। जैसा कि कहा गया है कि योग करने वाले लोग हमेशा निरोग रहते हैं। उन्हें दवा से बचना चाहिए।