एक प्रश्न के जवाब में ओझा ने कहा कि हिन्दू धर्म में आमतौर पर लाश को आम की लकड़ी से जलाने की परम्परा है। वैसे भी आम की लकड़ी मांगलिक और गैर मांगलिक कार्यों में भी पवित्र मानी जाती है। ऐसे में लगातार आम के पेड़ों की संख्या दिन प्रतिदिन घटती जा रही है। वह दिन दूर नहीं है जब लोगों को आम की लकड़ी खोजे नहीं मिलेगी। ऐसे में यदि समाज के लोग आगे आकर मांगलिक या गैर मांगलिक कार्यों में दान में सब कुछ देने के साथ-साथ वृक्ष भी दान करें तो हमारा पर्यावरण स्वतः हरा-भरा हो जायेगा। साथ-साथ किसी भी कार्यक्रम में वृक्ष लगाने की परम्परा शुरू हो जाये तो वह वृक्ष उस कार्यक्रम का साक्षी बन जायेगा। न्यायाधीश का मानना है कि समाज के जिम्मेदार लोग ऐसी पहल कर पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने में अपनी महती भूमिका निभा सकते हैं। साथ ही साथ जिन वृक्षों की कमी होने लगी उनकी भरपाई भी हो सकेगी।
कार्यक्रम के इस अवसर पर विजय प्रताप ओझा, भानु प्रताप ओझा, देवेन्द्र प्रताप ओझा, डीएलएसए वसन्त कुमार जाटव, न्यायिक दंडाधिकारी विवेक कुमार सिंह, अपर जिला जज संजय कुमार शुक्ल, अपर जिला जज कृष्ण चन्द्र पाण्डेय, सिविल जज कमरुत्जमा, डीजीसी क्रिमिनल एस.पी. सिंह, क्षेत्राधिकारी गोण्डा भरत लाल यादव, थानाध्यक्ष वजीरगंज सहित भारी संख्या में अधिवक्ता न्यायिक अधिकारी एवं आमजन मौजूद रहे।