किसान खेतों में पराली जलाने के बजाय उसे फैलाकर डीकम्पोजर का छिड़काव कर दें। यह डीकम्पोजर पराली गलाने का काम करता है। करीब एक पखवाड़े के भीतर वह पूरी तरह से सड़कर खाद बन जाएगी।
पराली पर डीकम्पोजर का छिड़काव करते किसान
किसानों को पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने पूसा डीकम्पोजर तैयार किया है। कृषि विभाग के माध्यम से इससे निशुल्क में वितरित किया जा रहा है। किसान इस का घोल बनाकर खेतों में छिड़काव करके पराली जलाने की समस्या से निदान पा सकते हैं।
ऐसे बनाएं डीकम्पोजर का घोल जिला कृषि अधिकारी जेपी यादव ने बताया अब तक जनपद में करीब तीन हजार सीसी डीकम्पोजर का वितरण विभाग के माध्यम से किया जा चुका है। यह मोम की तरह जमा होता है। एक सीसी डीकम्पोजर 200 लीटर पानी का घोल बना लें। इसमें 2 किलो बेसन 2 किलो गुड़ डाल तथा इसी मात्रा में छायादार वृक्ष के नीचे की मिट्टी डाल दे। करीब 10 दिनों बाद इसमें एक विशेष प्रकार के फंगस तैयार होंगे। उसके बाद किसान अपने खेतों में स्प्रे मशीन के द्वारा इसका छिड़काव कर दें। छिड़काव करने के बाद करीब 15 दिनों के भीतर पराली पूरी तरह से गल कर खाद बन जाएगी। इसमें आवश्यकतानुसार पानी बढ़ाते रहें यह घोल कभी समाप्त नहीं होगा।
कार्यालय संयुक्त कृषि निदेशक देवीपाटन मंडल गोंडा IMAGE CREDIT: पराली जलाने से वातावरण प्रदूषित होने के साथ खेत की उर्वरा शक्ति घटती खेतों में पराली जलाने से एक तरफ जहां हमारा वायुमंडल प्रदूषित होता है। वहीं खेतों में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं। जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति घटने लगती है। ऐसे में उपज पर भी काफी असर पड़ता है।
कैसे करें इस्तेमाल खेत में इसके छिड़काव करने वाले किसान बताते हैं कि उन्हें कम से कम 10 दिन में डीकम्पोजर का घोल तैयार होता है और छिड़काव के बाद करीब 15 दिन तक पराली को खाद में बदलने के लिए इंतजार करना पड़ता है। फिर जुताई से पहले कुछ दिनों तक खेत को ऐसी ही अवस्था में छोड़ दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद पराली खाद में तब्दील हो जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो पूसा डीकम्पोजर के इस्तेमाल से मिट्टी में कार्बन और नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे अगली फसल से अधिक पैदावार को लेकर किसानों को इसका लाभ भी मिलता है।
पराली पर डीकम्पोजर का छिड़काव करते किसान IMAGE CREDIT: तीन प्रकार से मिलता है पूसा डीकम्पोजर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के द्वारा विकसित पूसा डिकम्पोजर तीन रूपों में उपलब्ध है। यह द्रव्य, पाउडर और कैप्सूल के रूप में मिलता है। किसान इनका इस्तेमाल कर पराली को जलाने के बजाय उन्हें गलाने का काम कर सकते हैं ताकि खेतों में फसल पैदावार की वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सके।