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नेताओं ने नहीं सुनी बात, ग्रामीणों ने चंदे से बनाया लकड़ी का पुल, नेताओं और प्रशासन दोनों से निराश है गांव की जनता

locationगोंडाPublished: Dec 05, 2019 04:13:54 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

आजादी के 72 वर्षों के बाद भी जिले के एक गांव में हजारों ग्रामीण एक पुल के लिए तरस रहे हैं।

नेताओं ने नहीं सुनी बात, ग्रामीणों ने चंदे से बनाया लकड़ी का पुल, नेताओं और प्रशासन दोनों से निराश है गांव की जनता

नेताओं ने नहीं सुनी बात, ग्रामीणों ने चंदे से बनाया लकड़ी का पुल, नेताओं और प्रशासन दोनों से निराश है गांव की जनता

गोंडा. देश भर में जहां तेजी से बढ़ रही तकनीक के साथ-साथ व्यवस्था को हाईटेक करने के प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार जहां मेट्रो, इलेक्ट्रिक वाहनों एवं समुंदर के भूतल में बुलेट ट्रेन चलाने की बात करते हैं। वहीं आजादी के 72 वर्षों के बाद भी जिले के एक गांव में हजारों ग्रामीण एक पुल के लिए तरस रहे हैं। नेताओं और अफसरों की चौखट पर फरियाद अनसुनी हुई तो ग्रामीणों ने चंदा एकत्र करके लकड़ी का पुल बना दिया। ग्रामीणों का यह साहसिक कदम लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

ग्रामीणों ने चंदे से बनाया लकड़ी का पुल

जिले के तरबगंज तहसील क्षेत्र के ऐली परसौली ग्राम पंचायत में घोड़हनपुरवा, विशुनपुरवा और माझा बंधा मजरे के लोग गहरे और तकरीबन 200 मीटर चौड़े नाले को पार करने के लिए नाव का सहारा लेते थे। परसौली गांव में इस विशाल नाले को पार करने के लिए गांव वालों को काफी समस्या होती थी। इन मजरों के हजारों लोग नाव के सहारे नवाबगंज बाजार आते-जाते थे और बच्चों का भी स्कूल नाव से ही आना-जाना होता था। जो काफी खतरनाक था। इससे काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था।

ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा करके बांस और बल्ली का पुल बना दिया। गांव के लोग गहरे और चौड़े नाले को आसानी से पार कर आवागमन कर रहे हैं। इस पर राहगीर पैदल के अलावा साइकिल, बाइक से भी जा सकता है। पुल बनने से यहां के लोगों के रास्ते की दूरी काफी कम हो गई है।

कई बार की गई पुल बनाने की मांग

क्षेत्रीय ग्रामीणों द्वारा प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से इस नाले को लेकर की कई बार पुल बनाने की मांग की गई, लेकिन उनकी मांग को अनसुना कर दिया गया। तब ग्रामीणों ने एक जुटता दिखाते हुए चंदा इकट्ठा करके लगभग दो लाख की लागत से लकड़ी के पुल का निर्माण कर लिया। अब ग्रामीणों को नाव से आने जाने और देरी का खतरा नहीं उठाना पड़ता है। ग्रामीण बांस, बल्ली के पुल से पैदल, साइकिल, मोटर साइकिल से आते जाते हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि आयुक्त, डीआईजी, तहसीलदार पूरे अमले के साथ गांव में बाढ़ में समाए हुए स्कूल का निरीक्षण कर चुके हैं लेकिन प्रशासन को ये लकड़ी का पुल नहीं दिखाई पड़ता। दर्जनों ग्रामीणों ने बताया कि प्रशासन और जन प्रतिनिधियों से पुल बनवाने की मांग की गई थी। सभी ने अनसुना कर दिया तब ग्रामीणों ने चंदे से पुल का निर्माण कर लिया।

ग्रामीण नेताओं और प्रशासन दोनों से निराश

यह हाल तब है जब वर्तमान समय में जिले में सत्ताधारी दल के 2 सांसद व सात विधायक को चुनकर जिले की जनता ने सदन तक भेजा है, लेकिन जब ग्रामीण नेताओं और प्रशासन दोनों से निराश हो गए तो उन्होंने बीच का रास्ता निकाला कुछ जुझारू किस्म के व्यक्तियों का एक समूह बनाया गया जो पुल निर्माण के लिए चंदा एकत्रित कर पुल बनाने के लिए ग्रामीणों ने पहले लकड़ी की व्यवस्था की फिर इन्हीं लकड़ियों से पुल का निर्माण किया।

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