भूख मिटाने तक का ही पैसा इस महिला को मिल पाता है। ऐसे में अन्य जरूरी खर्चे कैसे पूरे हों, यह एक बहुत बड़ा प्रश्न इसके सामने है।
खबरे छपने के बाद श्रम विभाग के अधिकारियों की टीम के साथ तमाम मीडियाकर्मी भी पूनम के घर पहुंचे और उसकी बेबसी की कहानी जानी। कैमरे के सामने पूनम का पूरा परिवार इतना भावुक हो गया कि प्रश्नों का जवाब देने के बजाय सब रोने लगे। आँखों में आंसू भरे पूनम की बड़ी बेटी अंजू ने बताया कि यदि हमारी माँ रिक्शा न चला रही होती तो अब तक हम लोगों की मौत भूख से हो जाती। मेरी माँ सुबह से शाम तक कठिन मेहनत कर हम लोगों का पेट भरती है। उसने रो-रो कर बताया कि पिता जी का साथ छोड़ने के बाद हम लोगों की स्थिति बहुत गम्भीर हो गई। जब मेरी माँ को और कोई रास्ता न दिखा तो वह शहर आकर किराये के मकान में रहकर रिक्शा चलाकर हम लोगों का भरण पोषण करने लगी।
पूनम के बेबसी का प्रकरण जब खबर के माध्यम से उपश्रमायुक्त शमीम अख्तर के संज्ञान में आया तो उन्होंने तत्काल अपने अधीनस्थों को पूनम के घर भेज कर उसका पंजीकरण विभाग में कराने के निर्देश दिए। एक प्रश्न के जवाब में
उन्होंने मीडिया को इस तरह की सकारात्मक खबर खोज कर लिखने के लिए धन्यवाद दिया। और कहा कि अब श्रम विभाग की सोलह योजनाओं से इसे अच्छादित किया जायेगा।