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यूपी में निषाद मतों के बंटवारे के लिए बीजेपी की यह चाल, कांग्रेस भी डाल रही डोरे

locationगोरखपुरPublished: Mar 23, 2019 12:58:49 pm

लोकसभा 2019

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सपा-बसपा ने गठबंधन कर जहां मतों के धु्रवीकरण की दिशा में एक नई रणनीति को अंजाम दिया है वहीं टिकट नहीं मिलने से नाराज क्षत्रपों की नाराजगी से कई जगह खेल बिगड़ता नजर आ रहा है। करीब तीन दशक बाद लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज करने वाली सपा से निषाद मतों को बांटने के लिए बीजेपी हर संभव प्रयास में है। गोरखपुर में निषाद समाज के कद्दावर राजनैतिक परिवार को अपने पक्ष में कर बीजेपी थोड़ा राहत में है तो सपा का समर्थक दल निषाद पार्टी कत्तई मतों का बंटवारा रोकने में जुटी है। हालांकि, बदले इस राजनीतिक माहौल में जहां सपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं वहीं भाजपा की राह आसान हो सकती है।
गोरखपुर में निषाद समाज के कद्दावर नेता रहे पूर्व मंत्री स्वर्गीय जमुना निषाद के बेटे व सपा के पूर्व विधानसभा प्रत्याशी अमरेंद्र निषाद ने गोरखपुर सदर लोकसभा चुनाव लड़ने की मंशा जताते हुए सपा से नाराजगी जाहिर की थी। इसके बाद कुछ लोगों ने सेतु का काम किया और इस परिवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचा दिया। सीएम से मुलाकात के बाद इस परिवार का भाजपा में आने का रास्ता साफ हो गया। बिना मौका गंवाए बीजेपी ने भी इनको लपक लिया। पूर्व विधायक राजमति निषाद व उनके पुत्र अमरेंद्र निषाद ने भाजपा की सदस्यता ले ली। प्रदेश अध्यक्ष डाॅ.महेंद्र नाथ पांडेय ने इन लोगों को पार्टी में शामिल कराया था। इन लोगों को पार्टी में शामिल करने के पीछे भाजपा की मंशा निषाद मतों में सेंधमारी है। बीजेपी चाहती है कि गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों में निषाद मतों का धु्रवीकरण थमे और इसका लाभ उसे मिले। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि बीजेपी निषाद मतों का धु्रवीकरण महागठबंधन की ओर रोकने और मतों में बिखराव के लिए अधिक से अधिक सजातीय नेताओं को पार्टी में शामिल कराने और उनको पदलाभ देने में लगी है।

निषाद समाज मानता है जमुना निषाद को अपना नेता

स्वर्गीय जमुना निषाद अपने समाज के बडे़ नेता माने जाते रहे हैं। कभी मंदिर के करीबियों में शुमार रहे स्वर्गीय जमुना निषाद ने जब तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ताल ठोकी थी तो बेहद कम अंतर से चुनाव हारे थे। बसपा और सपा में रह चुके पूर्व मंत्री जमुना निषाद की 2010 में एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। 2011 में हुए पिपराइच विधानसभा उप चुनाव में उनकी पत्नी राजमति निषाद को सहानुभूति में लोगों ने चुनाव जीता दिया था। 2012 के विधानसभा चुनाव में जनता ने फिर भरोसा जताया और वह फिर विधायक चुन ली गईं। 2017 में राजमति निषाद ने अपने बेटे अमरेंद्र के लिए यह सीट छोड़ दी। लेकिन सपा प्रत्याशी के रुप में उतरे अमरेंद्र निषाद भाजपा की आंधी में चुनाव हार गए।
निषाद मतों की एकजुटता से हारी थी बीजेपी

गोरखपुर लोकसभा सीट बीजेपी के कब्जे में करीब तीन दशक से थी। इस सीट पर निषाद मत निर्णायक स्थिति में है। चूंकि, मंदिर का निषाद समाज पर प्रभाव रहा है इसलिए चाहे जो भी प्रत्याशी रहा हो निषाद समाज ने मंदिर के प्रत्याशी को वोट किया। लेकिन 1999 में समाजवादी पार्टी ने जमुना निषाद को प्रत्याशी बना दिया। सजातीय प्रत्याशी होने के नाते निषाद समाज ने एकजुटता दिखाई और बीजेपी के तत्कालीन प्रत्याशी योगी आदित्यनाथ जीते तो गए लेकिन महज कुछ हजार का जीत हार का अंतर रहा। 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट पर चुनाव हुए। समाजवादी पार्टी ने इस बार भी मास्टर स्ट्रोक खेला। निषाद समाज में अच्छी खासी पैठ रखने वाले निषाद समाज के नेता डॉ.संजय निषाद के बेटे को सपा के सिम्बल पर चुनाव मैदान में उतार दिया। इस चुनाव में बसपा भी साथ आ गई। समाजवादी पार्टी के पास यादव व मुसलमान का बेस वोट बैंक था तो बसपा के पास दलितों का बेस वोट। निषाद समाज ने एकजुटता दिखाई और उपचुनाव में सत्ताधारी दल बीजेपी का तीन दशक पुराना किला ढह गया। इस बार लोकसभा चुनाव में सपा ने इसी फार्मूले पर काम करते हुए फिर से प्रवीण निषाद को अपना प्रत्याशी बनाया है।
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