गोरखपुर

लोकसभा चुनाव 2019 में सपा दे सकती है बीजेपी के इस दिग्गज सांसद को टिकट, भाजपा में मची खलबली

भाजपा सांसद के सपा में जाने की इस वजह से लोग लगा रहे कयास

गोरखपुरAug 27, 2018 / 08:18 am

sarveshwari Mishra

अखिलेश यादव और अमित शाह

गोरखपुर. लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को बड़ा झटका मिल सकता है। भाजपा के दो दिग्गज सांसदों का सपा में जाने का संकेत हो रहा है। ताजा ख़बरों की माने तो भाजपा के बीजेपी ने कुछ दिन भाजपा 150 सांसदों का टिकट काट सकती है। इस लिस्ट में कई वरिष्ठ नेताओं के नाम भी शामिल हैं। वहीं जगदम्बिका पाल का भी नाम सुनने में आ रहा है। वहीं भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल की पूर्व सीएम अखिलेश यादव के साथ तस्वीर वायरल होने के बाद लगभग यह तय हो गया है कि जगदम्बिका पाल भी सपा में शामिल हो सकते हैं।
 


सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक तस्वीर यूपी के डुमरियागंज संसदीय सीट पर हलचल मचा दी है। यह तस्वीर भाजपा सांसद जगदंबिका पाल और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के गुफत्गू की है। वैसे किसी पार्टी के सांसद का दूसरे पार्टी के किसी नेता से मिलने की मनाही नहीं है, सभी एक दूसरे से मिलते ही रहते हैं, लेकिन पाल और अखिलेश का मिलन ऐसे समय हुआ जब लोकसभा चुनाव नजदीक है और पाल के टिकट पर ग्रहण की चर्चा है।
 


इससे भी हैरत की बात यह है कि 23 अगस्त को लखनउ में पूर्व सीएम अखिलेश यादव से सिद्धार्थनगर जिले के सपा कार्यकर्ताओं,पदाधिकारियों और बड़े नेताओं की मीटिंग में पूर्व स्पीकर माता प्रसाद पांडेय की शिकायत भी सुनने को मिली थी। जिले के एक कथित सपा नेता ने अखिलेश यादव से माता प्रसाद की जमकर शिकायत की थी। बैठक में माता प्रसाद पांडेय भी मौजूद थे। इस शिकायत के पीछे जिले के एक युवा सपा नेता के हाथ होने की चर्चा है।
 

जगदम्बिका पाल का राजनीतिक सफर
डुमरियागंज सीट से 2009 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए थे। अचानक परिस्थितयिां बदली और उन्हें 2014 का चुनाव भाजपा से लड़ना पड़ा। 1977 की जनता पार्टी सरकार के सत्ता से हटने के बाद जब 1980 लोकसभा का चुनाव हुआ तो बस्ती लोकसभा सीट से पाल कांग्रेस के मजबूत दावेदार थे। इन्हें टिकट नहीं मिला। इसके बाद 1981 में यूपी विधानसभा चुनाव में भी इनका टिकट कट गया। लेकिन इनकी निष्ठा नहीं डिगी। अंततः पार्टी को इन्हें विधानपिरषद में लेना पड़ा और मंत्री भी बनाया। फिर बस्ती विधानसभा सीट से लगातार कई बार विधायक और मंत्री रहे। इस बीच जब तिवारी कांग्रेस का गठन हुआ था तब भी पाल ने पाला बदला था। वह तिवारी कांग्रेस के टिकट पर खलीलाबाद से लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन हार गए। कुछ दिन भटकने के बाद वे फिर कांग्रेस में लौट आए और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तक बने।

2004 में उन्हें डुमरियागंज संसदीय सीट से टिकट तब मिला जब इस सीट से कांग्रेस लगभग समाप्त हो चुकी थी और इसके उम्मीदवार 40 हजार वोट में सिमट गए थे। 2004 में पाल चुनाव हार जरूर गए थे लेकिन कांग्रेस का ग्राफ पौने दो लाख तक पंहुच गया था और वह 2009 में वे चुनाव जीतने में सफल हुए। अब जैसी की चर्चा है तो ऐसा लगता है कि पाल को फिर विपरीत परिस्थिति में राजनीति में अपनी नई राह बनानी पड़ सकती है।

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