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‘अजातशुत्र’ प्रत्याशी खोजने में परेशान बीजेपी, सिटिंग एमपी का टिकट कटने पर बगावत का अंदेशा

locationगोरखपुरPublished: Mar 26, 2019 11:52:47 am

गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ सीटों पर सामाजिक समीकरण साधना आसान नहीं होगा बीजेपी के लिए

Narendra Modi

नरेन्द्र मोदी

लोकसभा सीटों को जीतने के लिए रण प्रारंभ हो चुका है। सेनाएं भी तैयार हैं लेकिन अधिकतर प्रमुख दलों के सेनापतियों का ऐलान होना अभी शेष है। गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ लोकसभा सीटों पर प्रचंड बहुमत से कब्जा जमाने वाली बीजेपी के लिए इस बार प्रत्याशी चयन में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला फिट बिठाना आसान नहीं होगा। वजह यह कि सामाजिक समीकरण को साधने के चक्कर में बीजेपी को अपने कई सिटिंग एमपी का टिकट काटना पड़ेगा। महत्वपूर्ण यह कि टिकट काटकर दूसरे बिरादरी के प्रत्याशी को चुनाव मैदान में लाने से एक बड़े वर्ग की नाराजगी का अंदेशा भी संगठन को सता रहा है।
दोनों मंडलों में अगड़ी जातियों को मिला मौका

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर-बस्ती मंडल की सभी नौ लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। इस लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के साथ उतरी बीजेपी ओबीसी को जोड़ने का अभियान तो चलाई लेकिन मंडल में पिछड़े वर्ग को कोई खास प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका। 2014 में बीजेपी ने दोनों मंडलों के नौ प्रत्याशियों में सबसे अधिक चार ब्राह्मण प्रत्याशियों को मौका दिया। जबकि डुमरियागंज सीट पर ठाकुर बिरादरी के जगदंबिका पाल को प्रत्याशी बनाया। गोरखपुर व महराजगंज सीट पर अपने कद्दावर नेताओं क्रमशः योगी आदित्यनाथ व पंकज चैधरी को उतारा क्योंकि इन दोनों सीटों पर इन नामों के अलावा पार्टी किसी और पर दांव लगाने की स्थिति में नहीं थी। योगी आदित्यनाथ क्षत्रिय हैं तो पंकज चैधरी कुर्मी हैं। जानकार बताते हैं कि सलेमपुर लोकसभा सीट पर कुशवाहा बिरादरी के प्रत्याशी रविंद्र कुशवाहा को मौका पार्टी ने इसलिए दिया क्योंकि इस क्षेत्र में पूर्व सांसद हरिकेवल प्रसाद का एक बड़ा नाम थे और रविंद्र कुशवाहा उनके पुत्र होने की वजह से लड़ाई को आसान बना सकते थे। वहीं, बांसगांव सुरक्षित होने की वजह से यहां से सांसद कमलेश पासवान को बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया था।
अब उठ रही सोशल इंजीनियरिंग की बात

2019 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर-बस्ती मंडल में बीजेपी में सोशल इंजीनियरिंग के तहत टिकट देने का दबाव बनाया जा रहा है। तमाम दावेदार अपनी दावेदारी जताते हुए सामाजिक संतुलन के हिसाब से हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं। चूंकि, नौ लोकसभा क्षेत्रों में पिछड़ों और दलितों के वोट निर्णायक संख्या में हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए ओबीसी की अनदेखी भी काफी मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। राजनीति के जानकार बताते हैं कि बीजेपी ने 2014 का चुनाव मोदी के नाम पर जीता था। लेकिन इस बार परिस्थितियां बिल्कुल अलग है। विपक्षी दल ओबीसी, दलित, अतिपिछड़ा वर्ग को साधने के साथ ही अल्पसंख्यक वोटरों को बटोरने में लगे हैं। अगड़ी जातियों में भी सेंधमारी की फिराक में हैं। ऐसे में भाजपा का केवल अगड़े वोटरों पर ध्यान केंद्रित रखना व ओबीसी को प्रतिनिधित्व न देना मुश्किलों भरा निर्णय हो सकता है।
अब किसका टिकट काटे भाजपा, हो न जाए बगावत

भारतीय जनता पार्टी गोरखपुर-बस्ती मंडल में सामाजिक खांचा दुरूस्त करने के चक्कर में बगावत न झेलने लगे, इस अंदेशे में है। वजह यह कि सामाजिक समीकरणों को अगर साधेगी तो कई सांसदों के टिकट काटने पड़ेगे। टिकट काटने तक तो ठीक है लेकिन टिकट काटने के बाद अगर दूसरे बिरादरी के प्रत्याशी को उतारेगी तो सांसद की बिरादरी का खासा विरोध झेलना पड़ेगा इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में पार्टी के रणनीतिकार थोड़े पशोपेश में भी हैं। पार्टी के लिए सांसदों का टिकट काटकर अजातशत्रु प्रत्याशी खोजना बड़ी टेड़ी खीर नजर आ रही है।
देवरिया संसदीय क्षेत्र में कलराज के हटने से राहत

देवरिया संसदीय क्षेत्र में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र पिछले चुनाव में प्रत्याशी थे। चुनाव जीतकर वह मंत्री बने। लेकिन उम्र का हवाला देकर उनसे मंत्री पद से इस्तीफा ले लिया गया था। लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने चुनाव न लड़ने का निर्णय लेने का दबाव बनाया। आखिरकार केंद्रीय टीम को सफलता मिली और पूर्व मंत्री कलराज मिश्र ने चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया। होली के दिन लिए इस निर्णय से भाजपा को देवरिया सीट पर थोड़ी राहत मिली है। लेकिन अन्य सीटों पर स्थितियां जस की तस हैं।

सांसद/पूर्व प्रत्याशी क्षेत्र

राजेश पांडेय कुशीनगर
कलराज मिश्र (अब नहीं लड़ेंगे) देवरिया
हरीश द्विवेदी बस्ती
शरद त्रिपाठी संतकबीरनगर
उपेंद्रदत्त शुक्ल (पूर्व प्रत्याशी) गोरखपुर
जगदंबिका पाल डुमरियागंज
रविंद्र कुशवाहा सलेमपुर
पंकज चौधरी महराजगंज
कमलेश पासवान बांसगांव सुरक्षित
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