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मासूमों की मौत में प्रशासन की लापरवाही, ऑक्सीजन न देने को दस दिन पहले ही पुष्पा कम्पनी ने दी थी चेतावनीपूर्वांचल के बच्चों के लिए काल बन चुके इंसेफेलाइटिस से हो रही मौतों पर सियासतदानों ने वोट तो खब बटोरे लेकिन किसी ने गंभीरता से इसके बारे में नहीं सोचा। बीते चुनाव में इस मुद्दे पर वोट बटोरने की बारी बीजेपी की थी। अच्छे दिन का वादा कर वोट बटोरे भी। पर वादा तो अच्छे दिन का था लेकिन क्या अच्छेेे दिन में ऐसी लापरवाही क्षम्य हो सकती है। 24 घंटे में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेहरू चिकित्सालय में 30 मौतों का आंकड़ा विरले ही किसी ने देखी या सुनी होगी। चलिए मान भी लें कि आक्सीजन की सप्लाई ठप होने से ये मौतें नहीं हुईं तो यह जवाब तो देना ही पड़ेगा कि आखिर ऐसी कौन सी परिस्थिति उत्पन्न हो गई जो इतनी ज्यादा मौतों की वजह बन गई है।
यह सब जानते हैं कि मेडिकल काॅलेज के इंसेफेलाइटिस वार्ड हो या नियोनेटल वार्ड उसमें आक्सीजन की महती आवश्यकता होगी। कुल मिलाकर बच्चों की सांसे इसी पर टिकी होती हैं लेकिन मेडिकल काॅलेज प्रशासन को इसकी तनिक भी चिंता क्यों नहीं हुई कि अगर जीवन को जारी रखने के लिए जरूरी आक्सीजन ही नौनिहालों को नहीं मिलेगा तो उनको जिंदा कैसे रखा जाएगा। क्या आए दिन मेडिकल काॅलेज का दौरा करने वाले साहबानों को इसके बारे में किसी ने नहीं बताई। अगर बताई तो बड़े-बड़े दावे करने वाले इंतजामात करने में चूक कैसे गए। गलतियां किन-किन स्तरों पर हुई है यह भी जांच की एक बिंदू हो तो शायद आने वाले वक्त में फिर किसी बच्चे की सांसे बेवक्त नहीं थमे। अव्वल यह कि यह जिला सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ का जिला है। वह सड़क से सदन तक मरते बच्चों के लिए लगातार लड़ाई लड़े हैं एक बेहतर व्यवस्था के लिए, बेहतर कल के लिए लेकिन जब कमान उनके हाथों में आई तो स्थिति बद से बदतर हो गई।