यह था मामला जिसने पूरे देश को झंकझोर दिया बाबा राघव दास मेडिकल कालेज में 10 व 11 अगस्त को ऑक्सीजन सप्लाई ठप होने व अन्य उपलब्धता नहीं होने से करीब पांच दर्जन मासूमों की मौत हुई थी। मामला पूरे देश में चर्चित हुआ। सरकार की फजीहत होने के बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी गठित की गई। जांच रिपोर्ट आने के बाद डीजीएमई डॉ.केके गुप्ता की तहरीर पर हजरतगंज थाने के केस दर्ज कराया गया। बाद में यह एफआईआर गोरखपुर जिले के गुलरिहा थाने में स्थानांतरित कर दिया गया। इस पूरे प्रकरण में ऑक्सीजन सप्लायर कंपनी पुष्पा सेल्स का मालिक मनीष भंडारी, मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ.राजीव मिश्र, पूर्व प्राचार्य की पत्नी डॉ. पूर्णिमा शुक्ला, एनेस्थिसिया के विभागाध्यक्ष डॉ.सतीश कुमार, डॉ.कफील, सीनियर फार्मसिस्ट गजानन जायसवाल, सहायक लेखाकार संजय त्रिपाठी, उदय शर्मा और सुधीर पाण्डेय को आरोपी बनाया गया। फिर एक एक कर सात आरोपियों की गिरफ्तारी हुई। दो ने न्यायालय में सरेन्डर किया था।
ये हैं आरोपी पुष्पा सेल्स के मनीष भंडारी
इस पर पुष्पा सेल्स में ऑक्सीजन की सप्लाई ठप करने का आरोप है। ऑक्सीजन जीवनरक्षक है। इसकी आपूर्ति बंद करना गुनाह है। इसके लिए आपूर्तिकर्ता मनीष भंडारी के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।
निलंबित प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्रा यह है आरोप: रपट के अनुसार बीआरडी मेडिकल कॉलेज के निलंबित प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्रा का अपने ही स्टाफ व सहयोगी डॉक्टर्स पर कोई प्रभाव नहीं। इनके आदेशों की अनदेखी तक करते रहे। प्राचार्य को सब पता होने के बाद भी ऑक्सीजन सप्लाई सुचारू रहे इसके लिए कोई पहल नहीं की गई। यहां तक कि आपूर्ति बंद होने की चेतावनी सम्बंधित सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं दी। हद तो यह कि मेडिकल कॉलेज में इतने बड़े संकट की आशंका को जानने के बाद भी 9 अप्रैल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दौरे के तत्काल बाद छुट्टी पर चले गए। उनपर खुद मुख्यमंत्री भी आरोप लगा चुके हैं कि वह दो दिन पहले चार घंटे तक मेडिकल कॉलेज में रहे लेकिन एक बार भी इस संभावित संकट पर चर्चा नहीं की। इसलिए इनपर केस दर्ज हुआ। एसटीएफ में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।
डॉ.पूर्णिमा शुक्ला निलंबित प्राचार्य की पत्नी हैं। गोला में तैनाती के बाद खुद को मेडिकल कॉलेज में संबद्ध कराया गया। फ़ोन पर कर्मचारियों से कमीशन की मांग की जाती थी। आरोप है कि पेमेंट में लेटलतीफी में इनका भी योगदान था। ये मेडिकल कॉलेज में हर मामले में अवैध हस्तक्षेप करती थीं। ऑक्सीजन मामले में आरोपी बनाकर एफआईआर दर्ज कराया गया है। एसटीएफ ने गिरफ्तार कर लिया था।
डॉ.कफील खान यह 100 नम्बर के प्रभारी थे। ऑक्सीजन ख़त्म होने की बात अधिकारियों तक समय से नहीं पहुंचाई। इसके अलावा इनपर प्राइवेट प्रैक्टिस का भी आरोप है। इसलिए ये भी इस मामले में आरोपी हैं और इनके खिलाफ भी केस दर्ज है। एसटीएफ ने किया था गिरफ्तार।
सुधीर पांडेय लेखा विभाग का लिपिक सुधीर पांडेय भी ऑक्सीजन कांड का आरोपी है। घूस के लिए फाइल देर से प्रस्तुत करने का आरोप है। संजय त्रिपाठी
मेडिकल कॉलेज के लेखा विभाग का लिपिक संजय त्रिपाठी भी इस प्रकरण में आरोपी था। त्रिपाठी को को पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
मेडिकल कॉलेज के लेखा विभाग का लिपिक संजय त्रिपाठी भी इस प्रकरण में आरोपी था। त्रिपाठी को को पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
लिपिक उदय प्रताप शर्मा
लिपिक उदय प्रताप शर्मा भी इस कांड में दोषी माना गया था।
स्टॉक प्रभारी व एनेस्थीसिया के हेड डॉ.सतीश कुमार
रपट के अनुसार ऑक्सीजन की सप्लाई की सुनिश्चितता डॉ.सतीश कुमार पर ही थी। डॉ.सतीश ऑक्सीजन की उपलब्धता सम्बंधित व स्टॉक आदि के प्रभारी थे। लेकिन इन्होंने कभी भी स्टॉक रजिस्टर या लॉग बुक चेक करने की जहमत तक नहीं उठाई। कर्मचारियों के भरोसे सब रहा। हद तो यह कि जब ऑक्सीजन के लिए अफरातफरी मची थी, पूरे देश की निगाहें मेडिकल कॉलेज में थी तो वह बिना किसी आधिकारिक सूचना के मुंबई 11 अगस्त को चले गए। 100 बेड वाले एईएस वार्ड में एसी ख़राब होने की लिखित शिकायत के बाद भी इन्होंने कोई सक्रियता नहीं दिखाई। ऐसा आरोप रिपोर्ट में है। बताया जा रहा एसी ख़राब होने पर मासूम बच्चों के गर्मी से बेहाल होने का जिक्र लिखित रूप से हटाए गए प्रभारी डॉ.कफील ने दी थी। इसलिए इनपर केस हुआ।
मेडिकल कॉलेज में तैनात चीफ फार्मासिस्ट गजानन जायसवाल
डॉ.सतीश कुमार के साथ आक्सीजन की उपलब्धता, लॉग बुक और स्टाक बुक का जिम्मा गजानन जायसवाल पर ही था। लॉग बुक व स्टॉक बुक में अनियमित इंट्री है। कई जगह आंकड़ों में बाजीगरी दिखाने के लिए ओवरराइटिंग भी हुई है।
लिपिक उदय प्रताप शर्मा भी इस कांड में दोषी माना गया था।
स्टॉक प्रभारी व एनेस्थीसिया के हेड डॉ.सतीश कुमार
रपट के अनुसार ऑक्सीजन की सप्लाई की सुनिश्चितता डॉ.सतीश कुमार पर ही थी। डॉ.सतीश ऑक्सीजन की उपलब्धता सम्बंधित व स्टॉक आदि के प्रभारी थे। लेकिन इन्होंने कभी भी स्टॉक रजिस्टर या लॉग बुक चेक करने की जहमत तक नहीं उठाई। कर्मचारियों के भरोसे सब रहा। हद तो यह कि जब ऑक्सीजन के लिए अफरातफरी मची थी, पूरे देश की निगाहें मेडिकल कॉलेज में थी तो वह बिना किसी आधिकारिक सूचना के मुंबई 11 अगस्त को चले गए। 100 बेड वाले एईएस वार्ड में एसी ख़राब होने की लिखित शिकायत के बाद भी इन्होंने कोई सक्रियता नहीं दिखाई। ऐसा आरोप रिपोर्ट में है। बताया जा रहा एसी ख़राब होने पर मासूम बच्चों के गर्मी से बेहाल होने का जिक्र लिखित रूप से हटाए गए प्रभारी डॉ.कफील ने दी थी। इसलिए इनपर केस हुआ।
मेडिकल कॉलेज में तैनात चीफ फार्मासिस्ट गजानन जायसवाल
डॉ.सतीश कुमार के साथ आक्सीजन की उपलब्धता, लॉग बुक और स्टाक बुक का जिम्मा गजानन जायसवाल पर ही था। लॉग बुक व स्टॉक बुक में अनियमित इंट्री है। कई जगह आंकड़ों में बाजीगरी दिखाने के लिए ओवरराइटिंग भी हुई है।