अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर गोरखनाथ मंदिर में चल रहे साप्ताहिक योग प्रशिक्षण शिविर एवं योग-अध्यात्म-शैक्षिक कार्यशाला का समापन समारोह
योग को दुनिया ने अपनाया है यह भारत का सम्मान हैः योगी आदित्यनाथ
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत की योग परम्परा में भारतीय संस्कृति एवं भारत की ऋषि परम्परा समाहित है। दुनिया में योग की स्वीकार्यरता भारत का सम्मान है। भारत की 130 करोड़ जनता का सम्मान है। भारतीय संस्कृति एवं परम्परा का सम्मान है। अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर मुख्यमंत्री शुक्रवार को गोरखनाथ मंदिर में चल रहे साप्ताहिक योग प्रशिक्षण शिविर एवं योग-अध्यात्म-शैक्षिक कार्यशाला के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे। महायोगी गोरखनाथ योग संस्थान एवं महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् द्वारा आयोजित इस सात दिवसीय कार्यक्रम में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् की सभी शैक्षिक संस्थाओं के संस्थाध्यक्षों एवं शिक्षकों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि श्रीगोरक्षपीठ एक योग पीठ है। महायोगी गोरखनाथ एवं नाथ पंथ के योगियों द्वारा व्यवहारिक योग के प्रतिपालन में आमजन के लिए योग को सर्वसुलभ बनाया। जिस व्यवहारिक योग का प्रतिपादन श्रीगोरक्षपीठ ने किया वह किसी भी व्यक्ति, किसी भी संस्था, किसी भी समाज एवं राष्ट्र के उत्थान एवं उत्कर्ष का मूल मंत्र है। उन्होंने कहा कि योग के सूत्रों को पकड़कर शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन किया जा सकता है। योगी की तरह ही योग के सिद्धान्तों का आत्म-साक्षात्कार करते हुए शिक्षक एवं संस्थाध्यक्ष अपनी-अपनी संस्थाओं में व्यक्ति निर्माण का लक्ष्य पूर्ण कर सकते है। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् की संस्थाओं को मानक शिक्षण संस्थान बनाने में हम अपनी सकारात्मक ऊर्जा का उपयोग करें। उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयत्नों से वैश्विक मंच पर योग की परम्परा प्रतिष्ठित हुई है। शिक्षक एवं संस्थाध्यक्ष योग के सूत्रों को अपनी जीवन में अपनाकर एवं अपनी संस्था की कार्य पद्धति में अपनाकर अपनी शिक्षण संस्थाओं को उत्कृष्ठ संस्था बना सकते है और स्वंय का तथा अपनी संस्था के विद्यार्थियों के बहुआयामी व्यक्तित्व का विकास कर सकते है।
मुख्यमंत्री ने अष्ठांगिक योग के सूत्रों को शिक्षा संस्थाओं से जोड़ते हुए कहा कि यम और नियम हमारे शिक्षा का पहला कार्य है। संस्थाध्यक्ष एवं शिक्षक स्वयं की आतंरिक एवं वाह्य शुद्धता के साथ संस्था के परिसर की वाह्य और आतंरिक शुद्धि की प्रेरणा योग के यम-नियम से प्राप्त कर सकता है और बिना आन्तरिक एवं वाह्य शुद्धि के कोई महत्वपूर्ण कार्य नही हो सकता है। शिक्षण संस्थाओं को अपनी कक्षाओं को उपासना गृह के रूप में विकसित करना होगा। इसी प्रकार आसन एवं समाधि की युगपरक शैक्षिक संस्थाओं के संदर्भ में व्याख्या करते हुए कहा कि स्थिर एवं सुखपूर्वक कार्य करते हुए हम ध्यान को लक्ष्य के प्रति एकाकार कर सिद्धि प्राप्त कर सकते है। अहर्निश प्रयास एवं अभ्यास के द्वारा हम कठिन से कठिन कार्य को आसान बना सकते है।
उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थाओं का परिसर, उनकी प्रयोगशालाएं, पुस्तकालय, कक्षाएं सुव्यवस्थित, स्वच्छ, सुन्दर एवं अत्याधुनिक उपकरणों से युक्त होनी चाहिए। संस्थाध्यक्षों एवं शिक्षकों का संस्था के प्रति समर्पण, श्रद्धा एवं तपपूर्वक चुनौतियों का समाधान खोजने का प्रयत्न उस संस्था की विशिष्टता बन सकती है। हमे मंजिल पर पहुॅचने के लिए अर्थात् अपनी-अपनी संस्थाओं को शिखर तक पहुॅचाने के लिए योग के विभिन्न सूत्रों को जीवन पद्धति एवं कार्यपद्धति की सीढ़िया बनानी होगी। महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती वर्ष में हमे उनके दिये गये चार सूत्रों स्वच्छता, स्वदेशी, स्वरोजगार एवं स्वावलम्बन को अपनी विकास यात्रा का सूत्र बनाना होगा। टीम भावना से संस्थाओं के संस्थाध्यक्ष एवं शिक्षक मिलकर देश के लिए योग्य एवं राष्ट्रभक्त नागरिक तैयार करने हेतु अपनी-अपनी संस्थाओं के लिए समर्पित होकर कार्य करें यहीं युग धर्म है। समारोह में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के अध्यक्ष एवं पूर्व कुलपति प्रो. उदय प्रताप सिंह ने सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। प्रस्तावना महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के वरिष्ठ सदस्य एवं अधिवक्ता प्रमथनाथ मिश्र ने प्रस्तुत किया। श्रीगोरक्षाष्टक पाठ संस्कृत विद्यालय के अनुराग मिश्र एवं विकास मिश्र, एकल गीत ज्योति सिंह राजपूत तथा सरस्वती वन्दना एवं वन्देमातरम् गुरू श्री गोरक्षनाथ कालेज आफ नर्सिंग की छात्राओं ने प्रस्तुत किया। संचालन डाॅ. श्रीभगवान सिंह ने किया।