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विश्वविद्यालयों में सार्वजनिक मंच को प्रासंगिक करना होगाः प्रो.डीआर साहू

locationगोरखपुरPublished: Oct 18, 2018 01:55:25 am

गोरखपुर विवि के दीक्षांत सप्ताह समारोह के दौरान आयोजित व्याख्यान में बोले भारतीय समाजशास्त्र परिषद के महासचिव

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विश्वविद्यालयों में सार्वजनिक मंच को प्रासंगिक करना होगाः प्रो.डीआर साहू

गोरखपुर विवि के दीक्षांत सप्ताह समारोह में व्याख्यान देते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष एवं भारतीय समाजशास्त्र परिषद के महासचिव प्रो.डीआर साहू ने कहा कि नये एवं बेहतर भारत के निर्माण के लिए संवाद बढ़ाना होगा। संवाद के बिना समाज का निर्माण नही हो सकता। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए विश्वविद्यालय, समाज विज्ञान, जनतंत्र एवं विकास की अवधारणाओं के अंतर्संबंध को बढ़ाना होगा। इनके विमर्श के परिणामस्वरूप ही समाज को मानवीयता की दिशा में रूपान्तरित किया जा सकता है। विश्वविद्यालय इस चतुष्कड़ी का मूल आधार है, जहाँ समाज विज्ञान के माध्यम से जनतंत्र एवं विकास पर परिचर्चा सार्थक होती है। हमें विश्वविद्यालयों में पब्लिक स्फीयर को प्रासंगिक करना होगा।
वे ‘असेसिंग द रोल ऑफ सोशल साइंस एंड डेमोक्रेसी इन इंडियाज डेवलपमेन्ट’ विषय पर आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय परम्परा में ही ज्ञान की उत्पत्ति होती है। ज्ञान का उत्पादन एक सतत प्रक्रिया है, जिसका माध्यम विश्वविद्यालय है। ज्ञान की उत्पत्ति तभी सम्भव है जब विश्वविद्यालय की परम्परा कायम रहे। हालांकि आज मास मीडिया का पब्लिक स्फीयर (सार्वजनिक मंच) में महत्व बहुत तेजी से बढ़ा है और इसका कुछ प्रभाव विश्वविद्यालयों की पब्लिक स्फीयर की स्थिति पर पड़ रहा है। वह अपनी प्रासंगिकता के लिए संघर्ष कर रहा है। इस नजरिये से भारत में विकास को समावेशी एवं कल्याणकारी बनाने हेतु विश्वविद्यालय में संवाद के महत्व को बरकरार रखना होगा।
उन्होंने कहा कि किसी भी समाज में सामाजिक घटना को समझने के लिये जबतक उस समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को नहीं समझा जाता तब तक विकास का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता। विकास के विभिन्न आयामों के समक्ष तरह-तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। समाज विज्ञान इन सभी चुनौतियों से निबटने में सहायक सिद्ध हो सकता है। किसी भी समस्या को जानने एवं समझने के पश्चात ही उसका निवारण किया जा सकता है। आज हम सभी को विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना कर पड़ रहा है।इन चुनातियों को अवसर में बदलने की दिशा में काम करने की जरूरत है। चुनौतियों को अवसर में बदलने में युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। भारत युवाओं का देश है। जनसंख्या लाभांश भारत में उन्नत भविष्य की ओर इंगित करता है। यह जनसंख्या लाभांश भारत के लिए मानवीय पूंजी है। कौशल विकास तथा विश्वविद्यालय जैसे सार्वजनिक क्षेत्र में तर्क शक्ति की उपयोगिता के साथ चुनौती को अवसर में बदल सकते है। चुनौतियों को अवसर में बदलने में सामाजिक विज्ञान की भूमिका सहायक हो सकती है और मनुष्य के थिंकिंग मैन होने के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।
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IMAGE CREDIT: Dheerendra Gopal
कार्यक्रम के संयोजक एवं अध्यक्ष समाजशास्त्र विभाग प्रो. मानवेन्द्र प्रताप सिंह ने स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए कहा की विकास की अवधारणा समय के साथ बदलती रही है। जहां पहले हम विकास को केवल आर्थिक परिप्रेक्ष्य में देखते थे वहीं अब हम विकास को सामाजिक विकास और सतत विकास के परिप्रेक्ष्य में देखते और समझते हैं।
अध्यक्षता कर रहे प्रतिकुलपति प्रो. एस. के. दीक्षित ने कहा कि जो राष्ट्रतत्व है उसका प्रत्येक स्तर पर कियान्वयन होना चाहिए। बिना विचार विमर्श के राष्ट्र का विकास नही हो सकता है। राष्ट्र के विकास में सामाजिक विज्ञानों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
विशिष्ट अतिथि अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. सी. पी. श्रीवास्तव ने कहा कि मानव विकास में समाजविज्ञान की भूमिका की अवहेलना नही की जा सकती है। विज्ञान और तकनीकी से लेकर जितने भी प्रयास होते हैं वास्तव में उसमें मनुष्य के कल्याण और खुशहाली की भावना होती है। इस दिशा में तभी सफलता मिल सकती है जब समाजविज्ञान की भूमिका बढ़ेगी।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए अनुश्रवण समिति के अध्यक्ष प्रो. ओ. पी. पाण्डेय ने कहा कि दीक्षान्त समारोह से ज्ञान परम्परा पुनर्जीवित होगी। संचालन समाजशास्त्र विभाग के असिस्टेन्ट प्रोफेसर डॉ मनीष पाण्डेय ने किया।
इस अवसर पर प्रो. विनोद कुमार सिंह, प्रो. सी.पी. श्रीवास्तव, प्रो. जितेंद्र मिश्र, प्रो. हरिशरण, प्रो. एन.के. भोक्ता, प्रो. राजवंत राव, प्रो. रविशंकर सिंह, प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा, प्रो. विनोद श्रीवास्तव, प्रो. कीर्ति पाण्डेय, प्रो. राम प्रकाश, प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी, प्रो. संगीता पाण्डेय, प्रो. शफीक अहमद, प्रो. उमेश त्रिपाठी, प्रो. आलोक गोयल, प्रो. अंजू, प्रो. शुभी धुसिया, डॉ. अनुराग द्विवेदी, डॉ. राकेश प्रताप सिंह, डॉ. पवन, प्रकाश प्रियदर्शी, दीपेन्द्र मोहन सिंह आदि उपस्थित रहे।

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