दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के केंद्रीय ग्रंथालय में नेहरू जयंती पर आयोजित “लोकतन्त्र के लिए ज़रूरी हैं किताबें” विषयक विशेष संवाद
गोरखपुर। आधुनिक परिवेश में पुस्तकों के पठन पाठन हेतु जहां एक ओर अनेकानेक साधन उपलब्ध हैं इन सबके बावजूद भी पुस्तकालय का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। यही कारण है कि पुस्तकालय पाठक के लिए तीर्थ के समतुल्य है। लोकतन्त्र में अपने विचार को व्यक्त करने का सर्वोत्तम साधन है पुस्तक किन्तु यदि वैचारिक स्तर पर विरोध हो या मतभेद हो तो उसका यह उपाय नहीं कि हम प्रतिबन्ध जैसा अलोकतांत्रिक कदम उठायें बल्कि उसका सर्वोत्तम उपाय है प्रतिरोध में भी तार्किक खण्डन के साथ पुस्तक लिखी जाय। क्योंकि अक्षरों से शब्द, शब्द से वाक्य और वाक्यों से पुस्तक बनती है। यदि शब्द मर गया तो हमारी संस्कृति भी मर जायेगी। ये विचार ‘अनभै ‘ पत्रिका के सम्पादक तथा मुंबई विश्वविद्यालय के कृतकार्य आचार्य प्रो.रतन कुमार पांडेय ने व्यक्त किया। प्रो.पांडेय दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के केंद्रीय ग्रंथालय में नेहरू जयंती पर आयोजित “लोकतन्त्र के लिए ज़रूरी हैं किताबें” विषयक विशेष संवाद को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किताबों को जेब में रखे खूबसूरत बगीचे की संज्ञा दी जाती है। पुस्तकें मानव को मनुष्य बनाने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम हैं क्योंकि उनमें लोकतन्त्र को पुष्पित करने वाले समस्त मूल्य एवं विचार निहित होते हैं। आज के समय में आवश्यकता है की हम स्वागत में बुके के स्थान पर बुक देना आरम्भ करें। मदिरालय के स्थान पर पुस्तकालय की मांग करें। यह लोकतन्त्र के लिए चिंता की बात है कि स्वतन्त्रता आंदोलन के समय जहां गाँव गाँव में पुस्तकालय हुआ करते थे वे आज विलुप्त होने के कगार पर हैं। आज यह ज़रूरत है कि पुस्तकालयों की आलमारियों से किताबें निकालीं जाएँ और उन्हें मुक्त कर विचारों को पोषित किया जाय। आगन्तुक अतिथियों का स्वागत करते हुए मानद ग्रन्थालयी प्रो.हर्ष कुमार सिन्हा ने कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और अपने सुख्यात लेखकीय व्यक्तित्व के लिए विरोधियों द्वारा भी प्रशंसित पंडित नेहरू आधुनिक भारत के एक महत्वपूर्ण शिल्पियों में से एक हैं। उन्हें स्मरण करना और उनके विचारों पर चिंतन करना आज के समय में सर्वथा प्रासंगिक है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. विजय कृष्ण सिंह ने कहा कि स्वतन्त्रता के उपरान्त भारतवर्ष के समक्ष अचानक से उत्पन्न नेतृत्व के अंतराल को भरने का कार्य पण्डित नेहरू ने किया। भारत वर्ष के विकास के प्रति आधुनिक प्रगतिशील दृष्टिकोण रखने वाले पण्डित नेहरू ने न केवल घरेलू स्तर पर भारत को आगे बढ़ाने का कार्य किया बल्कि गुट निरपेक्ष आंदोलन को प्रारम्भ कर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में व्याप्त तत्कालीन शक्तिध्रुव संकट से देश को अलग करने का भी भगीरथ कार्य किया। आज का सूचना और प्रौद्योगिकी का युग जिस रूप में हमारे समक्ष है उसका श्रेय पण्डित नेहरू की प्रगतिशील लोकतांत्रिक सोच को जाता है। कार्यक्रम के दौरान लाइब्रेरी में पण्डित जवाहरलाल नेहरू के विशाल तैल चित्र पर पुष्पार्चन कर उन्हें श्रद्धा सुमन भी अर्पित किया गया। कार्यक्रम में पुस्तकालय को विषयों की पाठ्य एवं संग्रहणीय दर्जनों पुस्तकें दान देने हेतु प्रो. शैलजा सिंह, रवि प्रकाश सिंह एवं प्रो. अचलनन्दिनी श्रीवास्तव का मानपत्र देकर सम्मान किया गया। सञ्चालन शोध छात्र अमित त्रिपाठी ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में शिक्षक, कर्मचारी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।