सरकार ने तो सबकुछ ठीक करने का किया था दावा पिछले साल ऑक्सीजन की कमी से तीन दर्जन से अधिक बच्चों की मौत के बाद सरकार ने व्यवस्थागत बदलाव के साथ ही सुविधाएं मुहैया कराने का वायदा किया था, लेकिन स्थितियां अब भी जस की तस हैं। कोई भी जिला ऐसा नहीं है जहां के अस्पताल चिकित्सकों की कमी से न जूझ रहे हों। सीएएचसी के हालात तो सबसे बदतर हैं। स्पेशलिस्टों की बात कौन करे डाॅक्टर्स की ही उपलब्धता सरकार अभी तक सुनिश्चित नहीं कर सकी है। पैरामेडिकल स्टाॅफ की भी कमियां हैं। इंसेफेलाइटिस की रोकथाम को लेकर चाइल्ड स्पेशलिस्टों की तैनाती के लिए कोर्ट तक निर्देश दे चुका है लेकिन हर जगह इनकी कमी हैं। इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिए सीएचसी स्तर पर ईटीसी सेंटर बनाए गए थे लेकिन वह केवल सफेद हाथी साबित हुए। बीआरडी मेडिकल काॅलेज का भी हाल जुदा नहीं है। इंसेफेलाइटिस के मरीज सबसे अधिक यहां आते हैं। लेकिन यह मेडिकल काॅलेज डाॅक्टर से लेकर पैरामेडिकल स्टाॅफ तक की कमी से जूझ रहा। स्पेशलिस्टों की तो यहां भारी कमी है। आलम यह कि जब इंसेफेलाइटिस सीजन आता है और मौतों की संख्या बढ़ने लगती तो दूसरे जगहों के चिकित्सकों को कुछ महीनों के लिए अटैच कर दिया जाता।
शुद्ध पेयजल तक मुहैया कराने में विफल हो रहा प्रशासन इंसेफेलाइटिस की वजह गंदा पानी को भी माना जा रहा। कई सालों से इंसेफेलाइटिस से रोकथाम को लेकर जागरूकता अभियानों के नाम पर लाखों-लाख बहा दिए जाते हैं। लेकिन गांवों में अभी भी इंडियामार्का-2 हैंडपंप खराब हालत में हैं। शुद्धपेयजल के लिए लगाए गए इन हैंडपंपों के देखभाल का अभाव है। कई तो गंदा पानी भी उगल रहे।
अभी तक एनआईवी की रीजनल यूनिट को नहीं मिली जमीन
सरकार गोरखपुर में एनआईवी की क्षेत्रीय यूनिट और सीआरसी बनवाने का दावा कर रही लेकिन अभी तक इसके लिए जमीन खोजने काम पूरा नहीं हो सका है।
सरकार गोरखपुर में एनआईवी की क्षेत्रीय यूनिट और सीआरसी बनवाने का दावा कर रही लेकिन अभी तक इसके लिए जमीन खोजने काम पूरा नहीं हो सका है।
इन जिलों के लिए कहर है
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल काॅलेज में गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्घार्थनगर, संत कबीरनगर, बहराइच, लखीमपुर खीरी और गोंडा आदि जिलों से लोग इलाज के लिए आते हैं। इंसेफेलाइटिस इन क्षेत्रों में कहर बन ही हुई है। अब बीआरडी काॅलेज नवजातों के लिए कब्रगाह बनता जा रहा। पिछले डेढ़ साल में यहां का एनआईसीयू कई हजार नवजातों को लील चुका है।
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल काॅलेज में गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्घार्थनगर, संत कबीरनगर, बहराइच, लखीमपुर खीरी और गोंडा आदि जिलों से लोग इलाज के लिए आते हैं। इंसेफेलाइटिस इन क्षेत्रों में कहर बन ही हुई है। अब बीआरडी काॅलेज नवजातों के लिए कब्रगाह बनता जा रहा। पिछले डेढ़ साल में यहां का एनआईसीयू कई हजार नवजातों को लील चुका है।
2018 में बीआरडी मेडिकल काॅलेज में हुई मौतें महीना एनआईसीयू पीआईसीयू कुल
जनवरी 89 40 129
फरवरी 85 55 140
मार्च 155 80 235
अप्रैल 118 68 186
मई 120 62 182 तीन सालों में बीआरडी मेडिकल काॅलेज में हुई मौतें
जनवरी 89 40 129
फरवरी 85 55 140
मार्च 155 80 235
अप्रैल 118 68 186
मई 120 62 182 तीन सालों में बीआरडी मेडिकल काॅलेज में हुई मौतें
साल एनआईसीयू आईसीयू कुल
2015 935 1271 2206
2016 1513 1475 2988
2017 2032 1207 3239
2015 935 1271 2206
2016 1513 1475 2988
2017 2032 1207 3239