प्रो. शुक्ला विश्वविद्यालय के ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट सेंटर में 117वाँ एवं 118वाँ अभिविन्यास कार्यक्रम के दौरान ‘रिसर्च पब्लिकेशन एंड एथिक्स,एकेडमिक इंटीग्रिटी एंड एन्टी प्लेजरिज्म’ विषय पर आयोजित व्याख्यान दे रहे थे।
उन्होंने बताया कि साहित्यिक चोरी अर्थात प्लेजरिज्म के 4 लेवल हैं, जहां लेवल 0 पर किसी तरह की पेनाल्टी नहीं है, जबकि लेवल 3 पर सबसे कड़ी सज़ा यानी रजिस्ट्रेशन रद्द होना है। डिग्री मिल जाने की स्थिति में शोधार्थी को शोध वापस किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में सुपरवाइजर को भी लगातार दो वार्षिक इन्क्रीमेंट का अधिकार नहीं दिया जाएगा और तीन साल के लिए किसी नए मास्टर्स/एम.फिल/पीएचडी छात्र या स्कॉलर को सुपरवाइज़ करने की अनुमति नहीं होगी।
प्रो. शुक्ला ने कहा कि शोध पत्र प्रकाशन में 10 प्रतिशत तक प्लेजरिज्म पर किसी दंड का प्रावधान नहीं है इससे ऊपर के मामले में दंड का प्रावधान रखा गया है। उरकुंड एवं टर्नइटइन सॉफ़्टवेयर प्लेजरिज़म के लेवल को चेक करते हैं।
प्रो. शुक्ल ने प्लेजरिज्म से बचने के उपाय भी साहित्यिक चोरी से बचने के अनेक तरीक़े हैं। अपनी व्याख्या के अंदर ही स्त्रोत का विवरण दे देना चाहिए। ऐसी उक्तियों, जिनको नक़ल किया हुआ समझा जा सकता है, को उद्धरण चिन्हों में लिखना चाहिए। सोर्सेज को सही ढ़ंग से साइट करने के लिए अपनी साइटेशन स्टाइल के मेन्यूअल के लेटेस्ट एडिशन को रेफर करें। साहित्यिक चोरी न केवल अकादमिक दृष्टि से बुरी है, बल्कि यदि आप कॉपीराइट भंग करते हैं, तो वैधानिक अपराध भी माना जाएगा। स्वागत प्रो हिमांशु पांडेय द्वारा किया गया। आभार ज्ञापन संस्कृत विभाग की डॉ. लक्ष्मी ने किया।
अभिविन्यास कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में प्रो. धनंजय कुमार और तृतीय सत्र में प्रो. अजेय कुमार गुप्ता ने व्याख्यान दिया।
कार्यक्रम में बिहार, सिक्किम, राजस्थान समेत कई विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों के 80 शिक्षकों प्रतिभाग कर रहें हैं ।