बुंदेलखंड की बंजर जमीन पर ‘जादुई फूल’ की खेती से किसान हो रहे मालामाल भारत ने चीन से आने वाले फूजी सेब, नाशपाती और मेरीगोल्ड फ्लॉवर सीड्स पर वर्ष 2017 से अस्थायी तौर पर प्रतिबंध लगा रखा है। लेकिन बेमौसमी यह सेब खूब बिक रहा है। बताया जाता है कि यह सेब कोल्ड स्टोरेज के हैं। बाजार में जहां भारतीय सेब 250 रुपए किलो में है वही चाइनीज सेब 100 से 120 रुपए किलो में उपलब्ध है। सस्ते के चक्कर में खरीदार बिना मोल भाव किए चाइनीज सेब खरीद लेते हैं।
क्यों लगा है प्रतिबंध गोरखपुर में फल कारोबारी विजय कुमार बताते हैं कि, फूजी चीनी सेब में केमिकल मिलाया जाता है। ताकि यह लंबे समय तक सुरक्षित रहे। इसे पकाने के लिए उरबासिड या टूसेट के नामक केमिकल का प्रयोग होता है। इससे त्वचा पर चकते पैदा हो जाते हैं। फूजी सेब पर चीन सरकार ने भी अपने देश में बिक्री पर प्रतिबंधित लगा रखा है। लेकिन नेपाल से लगे चीनी बार्डर के बागवान इस सेब को भारत और अन्य देशों में भेजते हैं।
कई बीमारियों का खतरा डॉ. वीजाहत करीन बताते हैं कि, प्रतिबंधित इंजेक्शन के इस्तेमाल से चाइनीज सेब तैयार होता है। ये केमिकल्स नर्वस सिस्टम के साथ बॉडी के नाजुक अंगों पर सीधे अटैक करते हैं। जिससे कई बीमारियों का खतरा होता है। हालांकि, देखने में यह सेब खूबसूरत और ताजा होते हैं इसलिए यह लुभाते हैं।
इन जगहों से भारत में इंट्री नेपाल, बांग्लादेश से सटी भारतीय सीमाओं से इसकी तस्करी कर देश मे लाया जाता है। बिहार के मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, जनकपुर, दरभंगा, रकसौल, उत्तर प्रदेश के बहराइच, महराजगंज सहित अन्य जगहें इसकी तस्करी का हब बन चुकी हैं। बहराइच से लगाकर काकदभीटा बॉर्डर तक सभी जगहों से माल निकल रहा है। यहां से यह महराजगंज, सिद्धार्थनगर होते हुए गोखपुर, देवरिया, कुशीनगर, बस्ती, खलीलाबाद, मऊ पहुंचता है। एक किलो सेब पर विक्रेता को 25 से 40 रुपए तक मुनाफा होता है। जनवरी से जून तक इसका कारोबार खूब होता है।
पहचानना आसान चाइनीज सेब में काफी शाइनिंग होती है। रंग पिंक होता है। खाने में नरम और भुरभुरा लगता है, जबकि भारतीय सेब में शाइनिंग नहीं होती और थोड़ा खट्टापन लिए होता है।