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भारत रत्न नानाजी देशमुख ने होली की नरसिंह यात्रा को ऐतिहासिक बना दिया

locationगोरखपुरPublished: Mar 21, 2019 01:01:26 pm

हुड़दंगी-कीचड़-कालिख वाली होली के खिलाफ चलाया अभियान, बढ़ाई त्योहार में सहभागिता
 

Holi in Gorakhpur

भारत रत्न नानाजी देशमुख ने होली की नरसिंह यात्रा को ऐतिहासिक बना दिया

भारत रत्न नानाजी देशमुख ने गोरखपुर में होली मनाने की ऐसी परंपरा की नींव रखी थी जो आज भी मिसाल है। वाकया आजादी के पहले की है। गोरखपुर में होली के नाम पर हुडदंग और कीचड़-कालिख का खूब प्रयोग होता था। इस हुडदंगी होली की वजह से सबकी सहभागिता इस त्योहार में नहीं हो पाती थी। त्योहार में उल्लास के साथ मनाने की परंपरा की बजाय इससे बचने और भागने की तरकीब सामान्यजन खोजते।
यह वह दौर था जब गोरखपुर में नानाजी देशमुख आरएसएस की जड़ें मजबूत करने यहां पहुंचे थे। हिंदुत्व की अलख जगाते हुए सामाजिक समरसता का तानाबाना बुनने 1939 में गोरखपुर पहुंचे नानाजी यहां रहते हुए देखा कि घंटाघर से निकलने वाली भगवान नरसिंह की शोभयात्रा में कीचड़-कालिख, काले रंग का जमकर प्रयोग किया जा रहा है। बेहद गंदे तरीके से इस अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार को मनाया जा रहा है। जहां देखिए कोई सड़क पर दिख जाए तो कपड़े फाड़ देना, कालिख पोत देना आम बात थी। नानाजी ने भगवान नरसिंह की इस यात्रा में परिपाटी बदलने की ठानी ताकि आमजन की अधिक से अधिक हिस्सेदारी हो सके।
संघ से जुड़े डाॅ.राजेश चंद्र विक्रमी बताते हैं कि नानाजी ने युवाओं को जोड़ना शुरू किया और इस परिपाटी को बदलने की बीड़ा उठाया। वह बताते हैं कि पुराने लोगों से सुना हूं कि नानाजी ने एक हाथी का बंदोबस्त किया। फिर महावत को सिखाया कि जहां भी हरे-काले रंग का ड्रम दिखे उसे हाथी से इशारा कर गिरवा दिया जाता। अबीर गुलाल व अन्य रंग से यह टोली होली खेलती, शुभकामनाएं देते हुए साफ सुथरी होली खेलने का संदेश दे आगे बढ़ती। कई साल तक नानाजी और युवाओं की टोली ने यह किया। लोग बताते हैं कि तमाम जगह प्रतिरोध का भी सामना करना पड़ा लेकिन धीरे धीरे लोग इसे समझते गए।
जुबली राजकीय इंटर काॅलेज के शिक्षक डाॅ. राजेश चंद्र बताते हैं कि कई सालों के लगातार प्रयास के बाद भगवान नरसिंह की शोभायात्रा से कीचड़-काले रंग का प्रयोग बंद हो गया। लोग इस शोभायात्रा में खुद ब खुद आकर अब व्यवस्था संभाालने लगे और ऐसे रंगों के प्रयोग से बचने को कहने लगे। नानाजी के प्रयास से गोरखपुर की होली अनोखी होती गई। भगवान नरसिंह की शोभायात्रा एक मिसाल बनती गई। इसमें प्रेम के चटख रंग दिखने लगे, काले रंग-कीचड़ गायब होते गए।
nanaji deshmukh
IMAGE CREDIT: Dheerendra Gopal
1944 से भगवान नरसिंह की शोभायात्रा संघ की देखरेख में निकली

गोरखपुर में रहकर नानाजी देशमुख यहां की होली में प्रेम-भाईचारा और सौहार्द का चटख रंग घोल चुके थे। कई साल के अथक प्रयास के बाद वह हुडदंगी होली मनाने की परंपरा को बदल चुके थे। अधिकारिक रिकार्ड के अनुसार 1948 से आरएसएस के स्वयंसेवकों ने भगवान नरसिंह की शोभायात्रा निकालने की कमान संभाल ली। इसके बाद हर साल संघ अपनी देखरेख में इस भव्य शोभायात्रा को निकलवाने में सहयोग करने लगा।
इस मार्ग से निकलती है शोभायात्रा

भगवान नरसिंह की शोभायात्रा शहर के घंटाघर से निकलकर मदरसा चैक, लालडिग्गी, मिर्जापुर, घासी कटरा, जाफरा बाजार, चरण लाल चैक, आर्यनगर, बक्शीपुर, नखास, रेती चैक होते हुए घंटाघर लौटकर समाप्त होती है।
1996 में योगी आदित्यनाथ पहली बार शामिल हुए

संघ के डाॅ.राजेश चंद्र विक्रमी बताते हैं कि भगवान नरसिंह शोभायात्रा आरएसएस की देखरेख में निकाली जाती है। 1996 में पहली बार सांसद के रूप में योगी आदित्यनाथ इसमें शामिल हुए थे। तब से वह लगातार इस यात्रा में शामिल होते हैं और लोगों से रंग खेलते हैं। डाॅ.राजेश बताते हैं कि होली के दिन निकलने वाली नरसिंह शोभायात्रा के एक दिन पहले पांडेयहाता से होलिका दहन के लिए यात्रा भी निकाला जाता है।
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