एक पखवारे से ही कुत्तों की बढ़ जाती है पूछ कुकुर तिहार यानी कुत्ते की पूजा दीपावली के अगले दिन की जाती है। इसके लिए पहले से ही कुत्तों की आवभगत की जाने लगती है। उनको लोग मारते-पीटते नहीं है। गली-मोहल्ले में आवारा घूम रहे कुत्तों को भी खाना दिया जाने लगता है। दिवाली के अगले दिन कुत्तों का तिलक कर उनको माला पहनाया जाता है। पूजा करने के बाद उनको तरह-तरह के व्यंजन खिलाए जाते हैं।
बार्डर के इन इलाकों में मनाया जाता है यह त्योहार भारत-नेपाल बार्डर से सटे इलाकों में यह त्योहार पूरे पारंपरिक ढंग से मनाया जाता है। नेपाल के बहादुरगंज, भैरहवा, कृष्णानगर, चंद्रौटा, चाकरचैड़ा, दांग आदि दर्जनों गांव जो बार्डर एरिया के आसपास हैं, में यह त्योहार मनाया जाता है।
महाभारत से प्रेरित है यह त्योहार महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र का युद्ध जीतने के बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने काफी दिनों से राज किया। जब उनके स्वर्ग जाने का समय आया तो उनके भाई उनके साथ जाने लगे। लेकिन एक कुत्ते के अलावा धर्मराज के साथ कोई अन्य उनके साथ नहीं गया। तभी से नेपाली समुदाय हर साल दीवाली के अगले दिन यह त्योहार मनाता है। कुत्ते को मोक्ष प्राप्ति का आधार वे मानते हैं।
नेपाली पुलिस करती है कुत्तों को सम्मानित आम नेपाली ही नहीं नेपाली पुलिस भी इस दिन कुत्तों पर मेहरबान रहती है। वह अपने प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके कुत्तों को इस दिन खास खातिरदारी करती है। नेपाल पुलिस के प्रशिक्षण स्कूल में तो इस पर्व पर कुत्तों को सम्मानित भी किया जाता है।