सेना के यह जवान अपने वीरता पदकों को लौटाने पहुंचे सीएम योगी आदित्यनाथ के पास, जानिए क्यों
गोरखपुरPublished: Aug 28, 2018 03:52:01 pm
1971 में मिला था वीरता पदक, अपनी ही जमीन को पाने के लिए दर-दर भटक रहे
सेना के यह जवान अपने वीरता पदकों को लौटाने पहुंचे सीएम योगी आदित्यनाथ के पास, जानिए क्यों
देश की अस्मिता की रक्षा के लिए उन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण साल समर्पित कर दिया। 1971 की लड़ाई में देश की आन-बान-शान के लिए लड़े और राष्ट्रपति वीरता पदक से सम्मानित किए गए। विदेश में भी देश का परचम लहराया और विदेश सेवा मेडल 1984 में पाकर गौरवान्वित किया। लेकिन आज अपने ही देश में न्याय को दर-ब-दर हो रहे हैं। दुश्मन से लोहा लेने वाला यह सिपाही अपने बुढ़ापे में दबंगों और भूमाफियाओं से परेशान हैं। हर जिम्मेदार के दरवाजे पर दस्तक दे चुके हैं लेकिन कहीं कोई न्याय नहीं मिल सका। अब यह बुजुर्ग सैनिक विचलित होकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर अपने पदक लौटाना चाहता है। भ्रष्ट हो चुके सरकारी तंत्र से आहत यह बुजुर्ग सैनिक कहते हैं कि जहां न्याय के लिए भटकना पड़े वहां सम्मान में मिले इन पदकों का क्या काम।
भ्रष्ट व्यवस्था की दंश झेल रहे बुजुर्ग चंद्रभान मल्ल मऊ जिले के लखनौर गांव के रहने वाले हैं। सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने रिटायरमेंट के बाद मिली धनराशि को जोड़कर साल 2006 में गोरखपुर के महादेव झारखंडी मोहल्ले में पांच हजार वर्ग मीटर जमीन ली। यह जमीन उन्होंने अपनी पत्नी कमलावती के नाम से खरीदी। बुजुर्ग सैनिक का कहना है कि जमीन की पूरी रकम चुकाने के बाद रजिस्ट्री भी करा ली। पीड़ित बताते हैं कि उनका परिवार मऊ मेें रहता था। इसी बीच बेचने वाले के मन में लालच जागी और उसने यही जमीन दूसरे के नाम भी फर्जी तरीके से बैनामा कर दिया। कुछ दिनों बाद जब वह बैनामा लिए हुए जमीन पर निर्माण कराने पहुंचे तो बेचने वाले व्यक्ति ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर मारपीट पर उतारू हो गए। जबरिया निर्माण कार्य रोकने के बाद उनको मारपीट कर भगा दिया। जान से मारने की भी धमकी दी गई। बुजुर्ग चंद्रभान मल्ल बताते हैं कि इस प्रकरण में उन्होंने आरोपियों के खिलाफ कैंट थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई थी।
पीड़ित बताते हैं कि केस दर्ज होने के बाद कैंट पुलिस ने कार्रवाई के बजाय विवेचना अधिकारी ने फाइनल रिपोर्ट आरोपी के ही पक्ष में लगा दी। वह बताते हैं कि वह संबंधित अधिकारियों से न्याय की गुहार लगाते रहे लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
थकहारकर वह मुख्यमंत्री के कैंप कार्यालय पहुंच अपनी पीड़ा को साझा करते हुए न्याय की गुहार लगाया। उन्होंने पदक लौटाने की पेशकश करते हुए कहा कि जहां न्याय नहीं मिल रहा, सही बात के लिए दर-ब-दर होना पड़ रहा, वहां ये पदक किस काम के। इन्हें सरकार को लौटा देना ही श्रेयस्कर होगा।