scriptजमीन जस की तस, केस हुए सैकड़ों | Land remain same, cases increased anormously | Patrika News

जमीन जस की तस, केस हुए सैकड़ों

locationबस्तीPublished: May 17, 2018 02:34:19 pm

सिस्टम के फेल होने की परिणीति है जमीन के लिए जानलेवा संघर्ष

land dispute
टिप्पणी/धीरेंद्र गोपाल
गोरखपुर के गगहा में दो दिन पूर्व दलित वर्ग उत्तेजित हो जाता है। अस्थौला गांव में जमीन पर कब्जे के लिए 11 सालों से दो पक्षों में ठना मामला अचानक से खूनी रंग लेने लगता है। थाने पर हमला होता है, जवाब में पुलिस रबर बुलेट दागती है, लाठियां बरसाती है। जमीन जस की तस है, लेकिन सैकड़ों लोगों पर केस होता है। दर्जनों जेल जाते और फिर कोर्ट-कचहरी। इसी दिन बड़हलगंज में जमीन पर मालिकाना हक के लिए दो पक्षों में विवाद हो जाता है। एक पक्ष के खेत में दूसरे पक्ष का जानवर चला जाता है, दूसरा पक्ष अभी अपने जानवर को हांक रहा होता कि खेत मालिक आकर उग्र हो जाते हैं। नतीजतन दोनों पक्षों में खूनी संघर्ष और एक की हत्या।
दरअसल, यह घटनाएं महज एक जमीन के विवाद की परिणीति नहीं हैं, यह फेल हो चुके सिस्टम की कहानी भी बयां करती हैं। इनकी मूल वजह बनी जमीन। विवाद ने अचानक से खूनी रूप नहीं अख्तियार कर लिया। यह शनैः-शनैः इस ओर बढ़ता गया।
जिन बानगियों पर बात हो रही उनमें कोई मामला नहीं है जो एक लेखपाल से लेकर शासन स्तर, लोकल थाने से लेकर पुलिस के उच्च अधिकारियों तक कई बार न पहुंचा हो। लेकिन हमारे इस महान लोकतांत्रिक व्यवस्था में मामलों को सुलझाने की बजाय प्रार्थना-पत्रों पर नोट लिखने और हर बार निस्तारण के लिए एक नई तारीख की अनोखी परंपरा से एक नई फरियाद यात्रा‘ शुरू होती है। फिर लेखपाल से लेकर तहसील, डीएम-कमिश्नर तक प्रार्थना-पत्र देने का दौर शुरू होता है। तहसील दिवस से लेकर थाना दिवस तक में ऐसे लोगों की कतारें लंबी होती जाती हैं, वह भी इस उम्मीद से की इस बार ‘साहब’ उनकी जमीन पर फैसला करा देंगे। लेकिन यह उम्मीद अगला आश्वासन मिलते ही धूमिल होने लगती है।
आंकड़ों पर ही अगर केवल गौर किया जाए तो गोरखपुर जिले में दस हजार से अधिक राजस्व विवाद विभिन्न स्तरों पर लंबित हैं। ये मामले कहीं किसी लेखपाल के बस्ते में तो कहीं किसी साहबान के टेबल पर पेपरवेट के नीचे दबे न्याय का इंतजार कर रहे। गोरखपुर-बस्ती मंडल के परिपेक्ष्य में देखेंगे तो यह स्थिति करीब एक लाख के आसपास पहुंच जाएगी।
राजस्व के ये विवाद आखिर क्यों इतने नासूर बनते जा रहे? हमारे खेत और जमीन अन्नदाता और शरणदाता बनने की बजाय खूनी कहलाने लगे हैं। इसका जवाब भी सिस्टम का फेलियर और भ्रष्ट होना है। …और जबतक तहसील दिवस-थाने दिवस या साहबों की चौखट तक पहुंच रहे फरियाद का हवा-हवाई निस्तारण होता रहेगा तबतक न जाने कितनी बार जमीन के टुकड़े मानवरक्त से लाल होते रहेंगे।
बहरहाल, कवि अदम गोंडवीं की यह चंद लाइनें पूरे सिस्टम की हकीकत बयां करती हैं।
जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में
गाँव तक वो रोशनी आएगी कितने साल में
बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई
रमसुधी की झोंपड़ी सरपंच की चैपाल में
खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में
जिसकी कीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में
ऐसा सिक्का ढालना क्या जिस्म की टकसाल में
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो