2017 में आक्सीजन कांड ने सबको झकझोर कर रख दिया इंसेफेलाइटिस से हर साल होने वाली मौतों के बीच अगस्त 2017 में बीआरडी मेडिकल काॅलेज की एक घटना से सबको झकझोर कर रख दिया था। आक्सीजन की कमी से यहां तीन दर्जन से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी। पूरे देश में उबाल था, उस समय प्रदेश सरकार के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने ‘अगस्त में तो बच्चे मरते हैं’ का बयान देकर सरकार की काफी किरकिरी कराई थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जिला होने की वजह से सरकार की और फजीहत हुई थी। इस मामले में बाद में कई कार्रवाईयां हुई। तत्कालीन प्राचार्य समेत कई डाॅक्टर्स व स्टाॅफ के खिलाफ केस दर्ज कर गिरफ्तार कराया गया था लेकिन एक के बाद एक सभी आरोपी जमानत पर छूटते चले गए।
मौत के आंकड़ों पर उठ रहे सवाल उधर, आक्सीजन कांड के बाद इंसेफेलाइटिस संबंधी सूचना पर बैन और सरकार द्वारा जारी साल 2018 व 2019 के आंकड़े पर सवाल उठ रहे हैं। वजह यह कि अचानक से कौन सा चमत्कार हो गया कि इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों की संख्या में इतनी कमी हो गई। चिकित्सा क्षेत्र के एक जानकार बताते हैं कि इंसेफेलाइटिस के आंकड़ों में भी अब खेल हो रहे हैं। 2018 से बीआरडी मेडिकल काॅलेज में इंसेफेलाइटिस के मरीजों को एक्यूट वायरल फीवर/एक्यूट फीवरिल इलनेस होना बताकर एडमिट किया गया। इससे इंसेफेलाइटिस के आंकड़ों में व्यापक स्तर पर कमी आना दर्शाना संभव हो सका है। स्वास्थ्य महकमे के इस खेल को उजागर करने के लिए पिछले दो साल से सूचना के अधिकार के तहत एक्यूट वायरल फीवर/एक्यूट फीवरिल इलनेस से भर्ती मरीजों की संख्या मांगी जा रही है लेकिन वह सूचना उपलब्ध नहीं करायी जा रही। हालांकि, इन आरोपों पर स्वास्थ्य विभाग से लेकर कोई भी बड़ा जिम्मेदार कुछ भी बोलने को तैयार नहीं।
इन जिलों के लिए कहर रही इंसेफेलाइटिस गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल काॅलेज में गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्घार्थनगर, संत कबीरनगर, बहराइच, लखीमपुर खीरी और गोंडा आदि जिलों से लोग इलाज के लिए आते हैं। इसके अलावा बिहार प्रांत से भी काफी संख्या में मरीज इसी मेडिकल काॅलेज पर निर्भर हैं।