गोरखपुर

एशियाई खेलों में फुटबाॅल टीम के नहीं भेजने पर महिला फुटबाॅल खिलाड़ी ने लगाए गंभीर आरोप

यह फैसला फुटबाल की पीढ़ियों को खत्म करने वाला है

गोरखपुरJul 03, 2018 / 11:17 am

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

एशियाई खेलों में फुटबाॅल टीम के नहीं भेजने पर महिला फुटबाॅल खिलाड़ी ने लगाए गंभीर आरोप

एक तरफ जहां पूरा विश्व फुटबाल के प्रति अपनी दीवानगी दिखा रहा तो भारतीय प्रशंसक निराश हैं। एशियाई खेलों में इस बार भारतीय फुटबाल टीम खेलने नहीं जा रही है। पुरूष व महिला दोनों टीमों को नहीं भेजने का फैसला लिया गया है। 22 सालों में यह पहला मौका है कि कई बार की पदक विजेता भारतीय फुटबाल टीम खेलने नहीं जा रही है।
भारतीय महिला फुटबाल टीम की पूर्व कप्तान सोना चौधरी इस फैसले से आहत हैं। यूपी, हरियाणा व नेशनल फुटबाॅल टीम की कप्तान रह चुकी सोना चौधरी ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि इससे खिलाड़ियों का माॅरल गिरेगा। जो खिलाड़ी एक साल से केवल खेल रहा उसके लिए यह फैसला दिल टूटने जैसा है। यह फैसला फुटबाल की पीढ़ियों को खत्म करने वाला है।
वह कहती हैं कि सरकार को खेलों से राजनीति को अलग कर देना चाहिए। खिलाड़ी जब खेलना शुरू करता है तो वह विभिन्न स्तरों पर तनाव से गुजरता है। उस पर बढ़िया खेलने का दबाव होता है तो अपनी डाइट की भी चिंता करनी होती। उसे नौकरी के लिए भी चिंता करना होता तो घर परिवार का भी। इन परिस्थितियों से पार पाकर एक खिलाड़ी देश के लिए खेलता है लेकिन जब वह आगे बढ़ता है तो राजनीति का शिकार भी होने लगता है।
यहां प्लेयर्स को दर दर भटकाया जाता

महिला फुटबाल की पूर्व कप्तान सोना चौधरी कहती हैं कि करोड़ों की जनसंख्या वाला देश मेडल के लिए क्यों तरसता है, यह सरकार जानने की कोशिश क्यों नहीं करती है। जड़ में जाकर देखने की कोशिश कोई नहीं करता है। खेल संस्थानों में बड़े बदलाव की जरूरत है। यहां टेलेंट की कमी नहीं है, बस सिस्टम की कमी है। यहां प्लेयर्स नहीं बनाया जाता है, उनको दर-दर भटकाया जाता है। न सही से खिलाड़ियों को डाइट मिलता न कोई सुविधा। क्यों सरकार यह नहीं करती है कि आप केवल मेडल पर ध्यान दो, आपकी डाइट, ब्रेड-बटर-जाॅब की चिंता सब सरकार की। कोई दूसरा प्रेशर नहीं है आप पर, आप पर केवल खेलने का प्रेशर है। हवा में तीर चलाने से मेडल नहीं आता, सुविधा दीजिए तब मेडल मिलेगा। मेडल लाने के पहले खिलाड़ियों को सुविधा मिलनी चाहिए, मेडल लाने के बाद तो उसे सुविधा मिल ही जाती है। उन्होंने कहा कि खिलाड़ी खेलता तो देश के लिए है लेकिन अपने भविष्य की भी चिंता उसे सताती है। खिलाड़ी को खिलाड़ी नहीं बनने दिया जाता है बाकी उसे सब बना दिया जाता है। क्या देश के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों के प्रति हमारी सोसाइटी, सरकार की जवाबदेही नहीं होनी चाहिए।
योगा डे की तरह हर खेल का एक दिन हो

पूर्व कप्तान सोना चौधरी कहती हैं कि योगा डे की तरह खेलों का भी एक-एक दिन होना चाहिए। इससे जनभावनाएं भी जुड़ेंगी खेलों सेे, खिलाड़ियों को उचित सम्मान भी मिल सकेगा। करोड़ों रुपये योगा डे पर खर्च करने से जो हासिल नहीं होगा वह हासिल खेल को बढ़ावा देने से हो जाएगा।
कभी अपने सिस्टम में भी झांके सरकार

श्रीमती चौधरी कहती हैं कि सरकार को अपने सिस्टम को भी दुरूस्त करने की जरूरत है। कभी वह अपने सिस्टम को भी परखे। खिलाड़ियों के हास्टल को देखे। उनको मिलने वाली सुविधाओं के बारे भी जानने की कोशिश करे।
एक खेल को भगवान बना दिया और दूसरे को त्याग दिया

क्रिकेट को भगवान बनाया जा रहा है और दूसरे खेलों को त्याग दिया जा रहा है। यह कैसी विडंबना है इस देश की। सरकार की नीतियों में बदलाव की जरूरत है। सोना चौधरी कहती हैं कि जब क्रिकेट में भारत हारता है तो क्यों उसे खेलने जाने से रोका नहीं जाता है। उसे तो बढ़ावा दिया जाता और फुटबाॅल को आप बर्बाद कर रहे हैं। जब खिलाड़ी खेलेगा नहीं तो परफार्मेंस कैसे देगा।
खत्म हो राजनीतिक नेतृत्व वाले एसोसिएशन

खेलों से राजनीति की समाप्ति होनी चाहिए। राजनीतिज्ञों या ब्यूरोक्रेसी द्वारा संचालित खेल संस्थाओं को भंग कर खिलाड़ियों की अगुवाई में संस्थान को काम करने की छूट होनी चाहिए। ऐसे एसोसिएशनों का क्या फायदा जो कोई रिजल्ट न दे रहे हों।
 

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