भारतीय रेलवे में पूर्वोत्तर रेलवे अपने अस्पतालों में हास्पिटल मैनेजमेंट इंफार्मेशन सिस्टम (एचएमआइएस) लागू करने वाला पहला जोन बन गया है। अब तो रेल लाइनों पर 160 किमी प्रति घंटे की गति से ट्रेन चलाने की तैयारी शुरू हो गई है। इस रेलवे से चलने वाले सभी 40 ट्रेनें अति आधुनिक लिंकहाफमैन बुश (एलएचबी) कोच से संचालित हो रही हैं। सबसे तेज 87 प्रतिशत से अधिक रेलमार्गों का विद्युतीकरण हो चुका है। सबसे अधिक पुराने कोचों का एनएमजी तैयार किया है, जो देशभर की रेल लाइनों पर आटोमोबाइल की ढुलाई कर रही हैं।
अभिलेखों के अनुसार अस्तित्व में आने से पहले पूर्वोत्तर रेलवे तिरहुत, अवध-तिरहुत, असम रेलवे, बांबे-बड़ौदा तथा सेंट्रल इंडिया रेलवे में बंटा हुआ था। तब असम से लगायत बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित देश के कई क्षेत्रों में इसका विस्तार था। इन सभी रेलवे को मिलाकर पूर्वोत्तर रेलवे बना।
गोरखपुर नहीं बन पाया मंडल कार्यालय: पूर्वोत्तर रेलवे 3,472 किमी क्षेत्र में फैला है। लखनऊ, वाराणसी और इज्जतनगर कुल तीन मंडल हैं। गोरखपुर मुख्यालय है। गोरखपुर जंक्शन लखनऊ मंडल के अधीन आता है। लेकिन मुख्यालय गोरखपुर आज तक मंडल कार्यालय नहीं बन पाया। जबकि, इसके लिए लगातार मांगे उठती रहीं। तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बिहार स्थित थावे को पूर्वोत्तर रेलवे का चौथा मंडल बनाने की घोषणा की थी। लेकिन उनकी घोषणा फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई।
14 अप्रैल 1952 को पूर्वोत्तर रेलवे की नींव पड़ी थी। देश में 16 अप्रैल 1853 को मुंबई स्थित बोरीबंदर से ठाणे के बीच 34 किमी रेल लाइन पर पहली ट्रेन चली थी। इनके उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष दस से 20 अप्रैल के बीच रेल सप्ताह समारोह मनाया जाता है। पूर्वोत्तर रेलवे में इस वर्ष 19 अप्रैल को रेल पुरस्कार वितरण समारोह मनाया जाएगा।
पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने बताया कि कभी छोटी लाइन के नाम से मशहूर पूर्वोत्तर रेलवे का 90 प्रतिशत से अधिक मार्ग बड़ी लाइन में परिवर्तित हो चुका है। शेष लाइनों के आमान परिवर्तन का कार्य प्रगति पर है। 87 प्रतिशत से ज्यादा नेटवर्क विद्युतीकृत हो चुका है । पूर्वोत्तर रेलवे संपूर्ण भारतीय रेल स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहा है।