डा. सदानंद ने बताया कि शीशे का इस्तेमाल सोलर पैनल के रूप में करने के लिए सबसे पहले 20 नैनो मीटर का एक सोलर सेल (पारदर्शी पतली झिल्ली) तैयार किया गया। इस सोलर सेल को लार्ज बैंड गैप मैटेरियल नाम दिया गया। यह सोलर सेल शीशे पर चिपकते ही कंडक्टर का काम करने लगेगा। सोलर सेल सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों को विद्युत ऊर्जा में बदल देगा। डा. सदानंद के मुताबिक सामान्य सोलर पैनल के मुकाबले इसकी उत्पादन क्षमता तो करीब आधी होगी लेकिन इसलिए ज्यादा उपयोगी होगी क्योंकि इसका इस्तेमाल हर उस जगह पर किया जा सकेगा, जहां शीशा लगा हो और उसे सूर्य की रोशनी सीधे मिले रही हो
शीशे को सोलर पैनल बनाने के लिए जिस पारदर्शी झिल्ली को तैयार किया गया है, उसमें ऊपर के हिस्से में निकिल आक्साइड और नीचे के हिस्से में जिंंक आक्साइड है। यह झिल्ली सूर्य की रोशनी से मिलने वाली अल्ट्रा वायलेट किरणों को अवशोषित करेगी। उन अवशोषित किरणों को दो इलेक्ट्रोड के जरिए विद्युत ऊर्जा में बदल देगी। इसके लिए शीशे के किसी हिस्से में इलेक्ट्रोड लगाना होगा।