1962 में लोकसभा चुनाव का ऐलान हो चुका था। देश के जाने माने सोशलिस्ट नेता व दिग्गज अर्थशास्त्री अशोक रंजीत राम मेहता को देवरिया लोकसभा से चुनाव लड़ाने का निर्णय हुआ। अर्थशास्त्री अशोक रंजीत राम मेहता प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे। मुंबई से अशोक मेहता देवरिया में डेरा डाल दिए।
उधर, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यह सूचना मिली। उन्होंने इस सीट पर मजबूती से कांग्रेस प्रत्याशी को लड़ाने का विचार किया। यहां के कद्दावर नेता विश्वनाथ राय को लड़ाने का मन बनाया। विश्वनाथ राय सलेमपुर से सांसद थे, देश के जाने माने समाजवादी अशोक मेहता के खिलाफ चुनाव लड़ाने के नेहरू के निर्णय से वह नाराज हो गए। नाराज होकर गांव खुखुंदू चले गए। नेहरू ने किसी तरह उनको तैयार किया, खुद प्रचार में आने का वादा किया। कांग्रेस प्रत्याशी को किसी प्रकार की दिक्कत न हो इसलिए उन्होंने एक चार पहिया वाहन चालक समेत भेजवाया। यह वह दौर था जब गिने चुने लोगों के पास वाहन हुआ करता था।
नेहरू वादा के अनुसार प्रचार में आए। देवरिया की जनता से बाहरी प्रत्याशी को हराने की अपील करने के साथ लोकल कैंडिडेट को जिताने की अहमियत समझाई। जनता में इसका प्रभाव पड़ा। नेहरू द्वारा बाहरी प्रत्याशी का नारा रंग लाया, जनता ने समाजवादी गढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी विश्वनाथ राय को जीत दिला दी। कांग्रेस प्रत्याशी विश्वनाथ राय 80195 वोट पाए तो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के अशोक रंजीत राम मेहता 60954 वोट पाकर पराजित हुए। देश के बड़े-बड़े सोशलिस्टों का प्रचार यहां काम नहीं आया।
हालांकि, अशोक मेहता के चुनाव हारने के बाद जब कांग्रेस की सरकार बनी तो जवाहर लाल नेहरू ने उनको उनकी विशेशज्ञता के अनुरूप पद दिया। विरोधी होने के बावजूद उनको योजना आयोग का अध्यक्ष बनाया। बाद में भी कई अहम पद कांग्रेस ने उनको नवाजे।
लेकिन इस हार के बाद देवरिया में सोशलिस्टों का गढ़ ढह गया। यहां के कद्दावर नेता बाबू गेंदा सिंह, रामजी वर्मा, रामायण राय जैसे दिग्गज समाजवाद का दामन छोड़कर कांग्रेसी हो गए।
उधर, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यह सूचना मिली। उन्होंने इस सीट पर मजबूती से कांग्रेस प्रत्याशी को लड़ाने का विचार किया। यहां के कद्दावर नेता विश्वनाथ राय को लड़ाने का मन बनाया। विश्वनाथ राय सलेमपुर से सांसद थे, देश के जाने माने समाजवादी अशोक मेहता के खिलाफ चुनाव लड़ाने के नेहरू के निर्णय से वह नाराज हो गए। नाराज होकर गांव खुखुंदू चले गए। नेहरू ने किसी तरह उनको तैयार किया, खुद प्रचार में आने का वादा किया। कांग्रेस प्रत्याशी को किसी प्रकार की दिक्कत न हो इसलिए उन्होंने एक चार पहिया वाहन चालक समेत भेजवाया। यह वह दौर था जब गिने चुने लोगों के पास वाहन हुआ करता था।
नेहरू वादा के अनुसार प्रचार में आए। देवरिया की जनता से बाहरी प्रत्याशी को हराने की अपील करने के साथ लोकल कैंडिडेट को जिताने की अहमियत समझाई। जनता में इसका प्रभाव पड़ा। नेहरू द्वारा बाहरी प्रत्याशी का नारा रंग लाया, जनता ने समाजवादी गढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी विश्वनाथ राय को जीत दिला दी। कांग्रेस प्रत्याशी विश्वनाथ राय 80195 वोट पाए तो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के अशोक रंजीत राम मेहता 60954 वोट पाकर पराजित हुए। देश के बड़े-बड़े सोशलिस्टों का प्रचार यहां काम नहीं आया।
हालांकि, अशोक मेहता के चुनाव हारने के बाद जब कांग्रेस की सरकार बनी तो जवाहर लाल नेहरू ने उनको उनकी विशेशज्ञता के अनुरूप पद दिया। विरोधी होने के बावजूद उनको योजना आयोग का अध्यक्ष बनाया। बाद में भी कई अहम पद कांग्रेस ने उनको नवाजे।
लेकिन इस हार के बाद देवरिया में सोशलिस्टों का गढ़ ढह गया। यहां के कद्दावर नेता बाबू गेंदा सिंह, रामजी वर्मा, रामायण राय जैसे दिग्गज समाजवाद का दामन छोड़कर कांग्रेसी हो गए।