महन्त अवेद्यनाथ महाराज की स्मृति में आयोजित हुई श्रद्धांजलि सभा
संतों के प्रवचनों में पर्यावरण, जल संरक्षण, प्लास्टिक का उपयोग न करने जैसे विषय शामिल हो
मुख्यमंत्री महन्त योगी आदित्यनाथ ने अपने गुरू को श्रद्धान्जलि देते हुए कहा कि महन्त अवेद्यनाथ महाराज समन्वय, सहनशीलता, संस्कार, प्रखर-राष्ट्रभक्ति, समाज सेवा की प्रतिमूर्ति थे। गोरखनाथ मन्दिर के स्वरूप का जो खाका महन्त दिग्वजयनाथ महाराज ने तैयार किया, महन्त अवेद्यनाथ महाराज ने उसे पूर्ण किया। शिक्षा, स्वास्थ्य को सेवा का साधन बनाकर इस पीठ ने जन सेवा को ही भगवान की सेवा मानकर कार्य किया है। 48 शिक्षण-प्रशिक्षण, स्वास्थ्य एवं सेवा के संस्थान मन्दिर द्वारा संचालित है। मुख्यमंत्री बुधवार को ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 50वीं एवं महन्त अवेद्यनाथ की पांचवीं पुण्यतिथि समारोह में महन्त अवेद्यनाथ महाराज की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि महन्त अवेद्यनाथ महराज ने भारतीय सनातन धर्म एवं संस्कृति में प्रतिष्ठित धर्म-स्थलों की भूमिका को वर्तमान युग में साक्षात् प्रस्तुत किया। उन्होंने आगे कहा कि सांस्कृतिक भारत की पुर्नप्रतिष्ठा का युग प्रारम्भ हो चुका है। उसका पूर्वाभास देश की जनता को हो रहा है। उन्होंने गो- संरक्षण, गो- संवर्धन एवं प्लास्टिक का उपयोग न करने का आहवान करते हुए कहा कि सरकारे अपना प्रयत्न कर रहीं है लेकिन जनता भी को आगे आकर काम करना होगा। संतो के प्रवचन के ये विषय भी पर्यावरण, जल संरक्षण, उर्जा संरक्षण, प्लास्टिक का उपयोग न करने इत्यादि होने चाहिए। उन्होने कहा कि सरकार का प्रयास है कि संस्कृत केवल पुरोहिती का विषय न रहे बल्कि हमारे प्राचीनतम ज्ञान-विज्ञान के शोध का विषय हो। भारत की ऋषि एवं कृषि परम्परा को अपने परम्परागत रूप के साथ कायम रखने के लिए पालीथीन का निषेध होना चाहिए, क्योंकि पालीथीन से कृषि का नुकसान होता ही है साथ ही गायें जो हमारी ऋषि परम्परा की वाहक हैं, के लिए बहुत हानिकारक हैं।
जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती ने कहा कि राष्ट्र-सन्त महन्त अवेद्यनाथ महाराज भारतीय संस्कृति, हिन्दू चिन्तक, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सामाजिक समरसता के अग्रदूत थे। श्रीगोरखनाथ मन्दिर भारत की संस्कृति, संस्कारों और परम्परा का मन्दिर है। उन्होंने कहा यह पीठ धन्य है, जहाँ ऐसे सन्तों ने अपनी कर्मस्थली बनायी। महन्त अवेद्यनाथ महाराज ने एक ऐसे भारत का स्वप्न देखा जहाँ राष्ट्रवाद, सामाजिक समरसता, हिन्दुत्व और विकास दिखायी दे। वर्तमान उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री आज एक युवा सन्यासी है जिसपर भारत के सन्त समाज को गर्व है। वह इसी पीठ की तपस्या का प्रतिफल है। ऐसा हिन्दू सन्यासी जो बिना किसी भेदभाव के सभी के साथ एक समान व्यवहार करते हुए लोककल्याण के भगीरथ पथ पर चल पड़ा है। प्रदेश में परिवर्तन की जो आध्यात्मिक लहर प्रारम्भ हुई है वह निश्चित ही लोक कल्याणकारी एवं लोक मंगल सिद्ध होगी।
डाॅ. रामबिलासदास वेदान्ती ने कहा कि रामजन्म भूमि आन्दोलन का अध्यक्ष बनने के लिए जब कोई संत नहीं तैयार हो रहा था। महन्त अवेद्यनाथ महाराज निर्भीक होकर अध्यक्ष का पद स्वीकर किया। श्रीराम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष मणिराम छावनी, अयोध्या के महन्त नृत्यगोपालदास ने कहा कि देश के सनातन धर्म, हिन्दुत्व, सामाजिक समरसता, रामजन्मभूमि मुक्ति और पूर्वांचल के शैक्षिक प्रगति के नये आयाम दोनों ब्रह्मलीन महन्त जी ने प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज, महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज से लेकर अब महन्त योगी आदित्यनाथ तक, को हिन्दुत्व का संरक्षण विरासत में प्राप्त हुई है। गोरक्षपीठ ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को सजोकर रखने एवं देश को धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक नेतृत्व दिया। महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज हम सभी साधु-सन्त समाज के सर्वमान्य धर्म नेता थे। नाथ पंथ के इस महान तपस्वी के जीवन में सम्पूर्ण सनातन धर्म दिखता था। उन्होंने कहा कि मैं महन्त जी से सन् 1971 से जुड़ा रहा हूँ। महन्त जी जैसा महापुरूष नहीं देखा। महन्त अवेद्यनाथ महाराज जैसी बात करते थे वैसा आचरण करते थे। उनके कथनी और करने मे कोई अन्तर नहीं था।
केंद्रीय पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस एवं इस्पात मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि बचपन से मैं नाथ समप्रदाय योगियों को देखता रहा हूॅ। ये त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति होते हैं। एक बार मैं उड़िसा में योगी आदित्यनाथ जी को लेकर गया और जब उन्हे पता चला कि कुछ मन्दिरो में दलितो का प्रवेश वर्जित है तो उन्होने मुझे कहा कि इसे ठीक करो। योगी जी ने यह बात इस नाते कही क्योंकि उन्हें संस्कार में महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज की विरासत मिली है। सामाजिक समरसता गोरक्षपीठ का संस्कार है। आज देश नई उचाईयों को छू रहा है। नये रूप में उभर रहा है निश्चित रूप से इसका श्रेय ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ महाराज एवं महन्त अवेद्यनाथ महाराज जैसे महापुरूषों को जाता है। आवश्यकता पड़ने पर यह पीठ केवल प्रवचन नहीं करता अपितु निकल कर शौर्य भी दिखाता है।
जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य ने कहा कि राजनीति बिना धर्म के अपंग है। इसलिए जब धार्मिक व्यक्ति राजनीति में आता है तो राजनीति लोक कल्याण कार्य करता है। मण्डल कमीशन के कारण जब देश जातिगत संघर्ष में झुलस रहा था, जातियां आपस मे ंमर कटने को तैयार थी, उसी समय महन्त अवेद्यनाथ जी के नेतृत्व श्रीराम जन्म भूमि का आन्दोलन चला जिसमे भारत के भिन्न-भिन्न हिस्सों से आने वाले हर जाति वर्ग के कार सेवको का चरण धोने का काम अयोध्या के सन्तों ने किया। यह है सामाजिक समरसता जिसके पोषक महन्त अवेद्यनाथ महाराज थे।
अलवर राजस्थान के सांसद महन्त बालकनाथ ने कहा कि मुझे एक महीने तक महन्त अवेद्यनाथ का सेवा करने का अवसर मिला। जितने समय उनके साथ मैं रहता था वे मुझे जीवन जीने की कला सीखाते रहे। उनका स्वअनुशासन, कार्य के प्रति निष्ठा, जन सरोकारों के प्रति जवाबदेही, धर्म की राजनीति में प्रतिष्ठा के प्रयत्न, समाज के असहाय, गरीब, दलित, पीड़ित के प्रति उनकी छटपटाहट हम सबको प्रेरणा देती है। उनको वास्तविक श्रद्धांजलि यहीं होगी कि हम भी स्वयं, परिवार, समाज एवं देश के लिए चलते रहें-चलते रहंे- चलते रहें। महायोगी गोरखनाथ की यह तपःस्थली लोक कल्याण, राष्ट्रीय पुर्ननिर्माण और सांस्कृतिक पुर्नजागरण को समर्पित है। इस पीठ ने एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस पीठ ने देश ही नहीं दुनियां के धार्मिक केन्द्रो को मार्ग दिखाया है।
दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या के महन्त सुरेशदास ने कहा कि गोरखनाथ का भव्य मन्दिर महन्त दिग्विजयनाथ की देन है। महन्त अवेद्यनाथ कुशल राजनीतिक, सामाजिक समरसता के ध्वजवाहक और रूढ़िवादिता के विरूद्ध संघर्ष करने वाले सन्त थे। ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ महाराज सनातन हिन्दू धर्म के पथप्रदर्शक थे। ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ महाराज ने पूर्वान्चल में शिक्षा का जो अभियान महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना कर चलाया था उसे ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ महाराज ने विस्तारित किया। समाज की शक्ति संगठन में है और अवेद्यनाथ महाराज ने समाज को संगठित करके शक्तिशाली बनाया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रान्त प्रचारक सुभाष ने कहा कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के सर्वमान्य धार्मिक नेता महन्त अवेद्यनाथ बनें क्योकि वे पांथिक परम्पराओं से ऊपर राष्ट्रधर्म के सच्चे आराधक थे। वे निर्भय, नीडर, स्पष्टवादी धर्मात्मा थे। सच के साथ दृढ़ता से खड़ा होना उनकी विशेषता थी। वे सहृदय अभिभावक थे। करूणा की वे मूर्ति थे। उनका जीवन संत समाज को सदैव प्रेरणा देता रहेगा।
इस अवसर पर सिद्ध योग पत्रिका के सम्पादक सिद्ध गुफा सवाई आगरा के ब्रह्मचारी दासलाल, नैमिषारण्य से पधारे स्वामी विद्या चैतन्य महाराज, महन्त शिवनाथ, महन्त गंगा दास, कालिका मठ के महन्त सुरेन्द्रनाथ ने भी श्रद्धासुमन अर्पित किए।
दोनों गुरुओं की पावन स्मृति में समर्पित महाराणा प्रताप पी.जी. कालेज, जंगल धूषण की शोध पत्रिका विमर्श 2019 का विमोचन अतिथिगण द्वारा किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ दोनों ब्रह्मलीन महाराज के चित्र पर पुष्पांजलि से हुआ। रंगनाथ त्रिपाठी ने वैदिक मंगलाचरण, गोरक्षाष्ठक पाठ पुनीश पाण्डेय तथा डाॅ. प्रांगेश मिश्र ने महन्त अवेद्यनाथ स्त्रोतपाठ प्रस्तुत किया। महाराणा प्रताप बालिका इण्टर कालेज, सिविल लाइन की छात्राओं द्वारा सरस्वती वन्दना एवं श्रद्धान्जलि गीत प्रस्तुत की गयी। अतिथियों का स्वागत महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो. उदय प्रताप सिंह ने किया। मंत्री रमापति शास्त्री, शिव प्रताप शुक्ल, रवि किशन, महेन्द्र पाल सिंह, संगीता यादव, राजेश त्रिपाठी, राघवेन्द्र प्रताप सिंह, बृजेश दुबे, राकेश सिंह बघेल, मेयर सीताराम जायसवाल, प्रदीप पाण्डेय, डाॅ. धर्मेन्द्र सिंह, आनन्द गौरव, भिखारी प्रजापति, डाॅ.आरपी त्रिपाठी, विष्णु अजीत सरिया, योगेन्द्र नाथ दुबे, सत्यप्रकाश, प्रो. गोपाल प्रसाद, राजेश कुमार, यशवन्त सिंह आदि मौजूद रहे। संचालन श्रीभगवान सिंह ने किया।