scriptवोट बैंक ने जातीय वैमनस्यता की खाई और चौड़ी कर दी, जाति व छुआछूत खत्म नहीं हुआ तो हिंदू खत्म हो जाएगा | Seminar in memory of Mahant Digvijaynath and Mahant Avedyanath | Patrika News

वोट बैंक ने जातीय वैमनस्यता की खाई और चौड़ी कर दी, जाति व छुआछूत खत्म नहीं हुआ तो हिंदू खत्म हो जाएगा

locationगोरखपुरPublished: Sep 26, 2018 01:53:30 am

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Yogi Adityanath

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गोरखनाथ मन्दिर में ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ महाराज की 49वीं पुण्यतिथि एवं ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ महाराज की चतुर्थ पुण्यतिथि समारोह के तहत चल रहे संगोष्ठी के क्रम में मंगलवार को ‘सामाजिक समरसता भारतीय संस्कृति का प्राण है’ विषय पर वक्ताओं ने अपनी राय रखी।
मुख्य अतिथि कटक उड़ीसा से पधारे महन्त शिवनाथ महाराज ने कहा कि दुनिया की श्रेष्ठतम हिन्दू संस्कृति, श्रेष्ठतम हिन्दू जीवन पद्धति एवं श्रेष्ठतम् सामाजिक व्यवस्था में जाति के आधार पर ऊँच-नीच की भावना और छुआछूत एक कोढ़ है। धार्मिक संकीर्णता भी हमारे समाज को रूढ़िगत बनाता है। देश के सन्त-महात्मा एवं धर्माचार्य तो स्वतंत्रता के बाद से ही सामाजिक समरसता का अभियान छेड़ दिया। ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ एवं ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ ने तो इस विषय पर व्यापक जनजागरण का अभियान चलाया। किन्तु अधिकांशतः राजनीतिज्ञों ने ‘वोट बैंक’ के कारण एक तरफ तुष्टीकरण की नीति अपनायी तो दूसरी तरफ हिन्दू समाज में जातीय वैमनस्यता की खाई और चैड़ी की। हिन्दू समाज में छुआछूत, उॅच-नीच, अमीर-गरीब, नारी-पुरूष जैसे किसी भी विषमता को कोई स्थान नही है और न ही ये शास्त्र सम्मत है।
मुख्य वक्ता जनजाति सुरक्षा मंत्र के राष्ट्रीय संयोजक डाॅ. हर्ष सिंह चैहान ने कहा कि देश की सभी समस्याओं के समाधान का मूल सामाजिक समरसता में निहित है। हम उस आध्यात्मिक संस्कृति के वारिस है जिसने कण-कण में परमात्मा का वास तथा सभी प्राणियों में उसी परमात्मा का अंश माना है। ऐसे में जातिवाद, प्रान्तवाद, भाषावाद सहित नारी-पुरुष, अमीर-गरीब, ऊँचनीच जैसे भेदभाव हमारी संस्कृति का हिस्सा नही हो सकता। हम समरसता की शिक्षा परिवार से ही सीखते है। सामाजिक समरसता में ही हमारी संस्कृति का प्राण बसता है। सामाजिक समरसता के बगैर भारतीय संस्कृति अधूरी एवं मृत प्रायः है। वनवासियों, गृहवासियों से हमें सामाजिक समरसता का मंत्र सीखना होगा, वनवासियों, गिरिवासियों में आज भारत की सांस्कृतिक परम्परा जीवित है और वहाॅ समाज का हर व्यक्ति एक दूसरे का पूरक है।
दिगम्बर अखाड़ा, अयोध्या के महन्त सुरेशदास ने कहा कि ‘छुआछूत मिटाओं और देश बचाओ’ का मंत्र फूॅंकना होगा। छुआछूत की भावना और धार्मिक संकीर्णता से हिन्दू समाज कमजोर होता है, राष्ट्र कमजोर होता है। हमारे यहाॅ वर्ण व्यवस्था थी किन्तु छुआछूत नही था। छुआछूत मध्यकाल के मुस्लिम शासन काल की देन है। मुस्लिम काल में हिन्दू समाज में अनेक विकृतियाॅ उत्पन्न हुई और कालान्तर में वे रूढ़िग्रस्त हो गई। किन्तु अब समय आ गया है कि हमें समतायुक्त, शोषणमुक्त समाज की रचना करना चाहिये। भारत में सामाजिक विषमता की विषबेली विकसित हुई तो भगवान बुद्ध से रमणि महर्षि, स्वामी रामानन्द, नाथ पंथ की पूरी परम्परा, बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और ब्रह्मलीन युगपुरूष महन्त दिग्विजयनाथ तथा ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ तक महात्माओं, संतो की ऐसी परम्परा मिलती है जो सदा इसके खिलाफ संघर्ष करते रहे हंै। भारत मे धर्मगुरुओं की एक श्रेष्ठ परम्परा रही है जो संस्कृति मंे आई विकृति के खिलाफ सदा लड़ते रहे है। छुआछूत के खिलाफ भारत में जारी संघर्ष का नेतृत्व आज भी गोरक्षपीठ कर रहा है।
अध्यक्षता कर रहे महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पूर्व कुलपति प्रो. यूपी सिंह ने कहा कि हिन्दू समाज को अपने व्यवहार से यह सिद्ध करना होगा कि हम दुनिया के श्रेष्ठतम समाज की पुनसर््थापना में सक्षम है। दुनिया में भौतिकता और आतंक से कराह रही ‘मानवता’ भारत की ओर अपेक्षा भरी नजरों से देख रही है।
विशिष्ट वक्ता दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के शिक्षाशास्त्र विभाग की प्रो. शोभा गौड़ ने कहा कि राष्ट्रीय एकता-अखंडता और आधुनिक भारत के निर्माण हेतु आवश्यक है समरस अथवा छुआछूत विहीन समाज की रचना। गुरु गोरक्षनाथ ने छुआछूत के खिलाफ हजारो वर्ष पहले सामाजिक क्रान्ति का उद्घोष किया था। आज भी गोरक्षपीठ सामाजिक क्रान्ति की उस परम्परा को आगे बढ़ाने में लगी हुई है। भेदभाव और छुआछूत भारत की संस्कृति नहीं विकृति है। ‘मुझे मत छूओ’ अर्थात् छुआछूत की भावना से भारत का राष्ट्रीय समाज कमजोर हुआ। हमारे धर्माचार्यो ने सामाजिक समरसता के निरन्तर प्रयास किये है। गुरू गोरखनाथ, शंकराचार्य, रामानन्दाचार्य से लेकर ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ और गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ के नेतृत्व में धर्माचार्यो ने हिन्दू समाज की इस सामाजिक कोढ़ के खिलाफ अनवरत शंखनाद फॅूॅका है।
अयोध्या से प्रधारे महन्त राममिलनदास ने कहा कि भगवान श्रीराम सामाजिक समरसता के प्रतीक है। एक चक्रवर्ती सम्राट केवट को सम्मानित करते है और केवट कहता है कि हम और आप एक बिरादरी के हैं। शबरी के जूठे बेर भगवान खाते हैं, जटायु को तारते है। ऐसी सामाजिक समरसता से मुक्त हिन्दू समाज की पुर्नप्रतिष्ठा करके ही हम समृद्ध और समर्थ भारत का निर्माण कर सकते है।
महाराणा प्रताप महिला पीजी कालेज, रामदत्तपुर गोरखपुर की प्राचार्या डाॅ. सरिता सिंह एवं महाराणा प्रताप कन्या इण्टर कालेज, रामदत्तपुर की प्रधानाचार्या अन्नू श्रीवास्तवा एवं महाराणा प्रताप कृषक इण्टर कालेज जंगल धूसड़ के प्रधानाचार्य संदीप कुमार ने माल्यार्पण के साथ अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. श्रीभगवान सिंह ने किया।
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