गोरखपुर

जम्मू-कश्मीर को सीरिया बनाने की हो रही थी साजिशः प्रो. हर्ष

Seminar

गोरखपुरJan 11, 2020 / 01:42 am

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

जम्मू-कश्मीर को सीरिया बनाने की हो रही थी साजिशः प्रो. हर्ष

एक गोष्ठी को संबोधित करते हुए डीडीयू के वरिष्ठ आचार्य प्रो.कुमार हर्ष ने कहा कि कुछ समय पहले तक जब हम कहते थे कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है तो ये कहते हुए हमारी आवाज में आत्मविश्वास की कमी झलकती थी। जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को एक राष्ट्र बताने वाले नेतृत्वकर्ताओं से जब पूछा जाता था कि क्या कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक ही प्रकार के कानून और एक प्रकार की व्यवस्थाएं है, तो वे चुप हो जाना बेहतर समझते थे। दरअसल जम्मू-कश्मीर में हम एक नागरिक के तौर पर उपस्थित नहीं थे। भारतीय संविधान के बहुत से हिस्से वहां लागू नहीं होते थे। अनुच्छेद 35 ए से ये तय होता था कि कौन वहां का नागरिक है और कौन नहीं। कहते हैं कि किसी भी फैसले का मूल्यांकन समय के साथ होता है। गुजरते वक्त के साथ देश को ये एहसास हुआ कि हम जैसा जम्मू-कश्मीर चाहते थे, वैसा निर्मित नहीं हो सका। धीरे-धीरे स्थिति यहां तक पहुंच गई कि कश्मीर को सीरिया बनाने की साजिशें की जाने लगीं। सरकार ने हालात को संभालने के लिए कई प्रकार के प्रयोग किये, लेकिन बात नहीं बनी। लिहाजा 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35। इतिहास का हिस्सा बन गए और देश आगे बढ़ गया।
दिग्विजयनाथ पीजी कॉलेज व थिंक टैंक जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर द्वारा आयोजित संगोष्ठी में रक्षा अध्ययन विभाग के आचार्य प्रो.हर्ष कुमार सिन्हा बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।
प्रो. हर्ष ने कहा कि ये एक दिलचस्प तथ्य है कि 5 अगस्त 1952 को ही पहली बार पीएम नेहरू ने जम्मू-कश्मीर को अलग निशान और अलग संविधान देने की घोषणा की थी। इसी तारीख को ये सुविधाएं वापस ली गईं। कई बार चीजों के घटित होने की परिस्थियां निर्मित होने में समय लगता है। कभी-कभी भू राजनीतिक और भू स्ट्रेटेजिक परिस्थितियाँ किसी फैसले के होने में बाधक बन जाती हैं।
उन्होंने कहा कि 21वीं सदी के पहले दशक के बीतने व दुनिया में बढ़ते इस्लामिक कट्टरपंथ के बीच कश्मीर को सीरिया बनाने की कोशिशें शुरू हो गई थीं। इसलिए ये आवश्यक था कि जम्मू-कश्मीर में भारत का संविधान पूरी तरह से लागू किया जाए और उसे केंद्र के सीधे नियंत्रण में लाया जाए।
प्रो. हर्ष ने कहा कि आज सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि कोर्ट अभिव्यक्ति की आजादी पर फैसला देते हुए ये भी देखेगा कि इससे सुरक्षा की समस्या न खड़ी हो जाये। ये एक महत्वपूर्ण निर्णय है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के पश्चात अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया भी कुल मिलाकर भारत के पक्ष में रही है। पहले यूरोपियन यूनियन के सांसदों और अब 16 अन्य देशों के राजनयिकों ने भी जम्मू-कश्मीर का दौरा करने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में स्थिति को संतोषजनक बताया है।
उन्होंने कहा कि भारत के 20 शीर्ष औद्योगिक घरानों ने जम्मू-कश्मीर के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं बनाई हैं। सरकार भी इस दिशा में अच्छे प्रयास कर रही है।फरवरी माह में हम जम्मू-कश्मीर को लेकर कुछ बड़े और सकारात्मक फैसले होते हुए देखेंगे।
जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर गोरक्षप्रान्त के अध्यक्ष डॉ. श्रीभगवान सिंह ने कहा कि यूएनओ ने अपने विवादित मसलों की लिस्ट से जम्मू-कश्मीर को बाहर कर दिया है। ये हमारी बड़ी कूटनीतिक विजय है। बदली परिस्थितियों में जम्मू-कश्मीर में 11 नए एयरपोर्ट और लद्दाख में 2 नए एयरपोर्ट बनेंगे। विश्व पर्यटन को आकर्षित करने का माद्दा जम्मू-कश्मीर में है। अब भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, वहां की आम जनता को विकास योजनाओं का लाभ मिलेगा। आने वाला दौर बेहद खुशनुमा और अच्छा होगा, ये हमारा विश्वास है।
प्रोफेसर डॉ. बलवान सिंह ने कहा कि हर घटना के कुछ तात्कालिक कारण होते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और अफगान तालिबान के बीच वार्ता लंबे समय से हो रही है। भारत सरकार को आशंका थी कि अमेरिका के लौटने के बाद अफगानिस्तान-पाकिस्तान में मौजूद इस्लामिक आतंकवादियों का निशाना कश्मीर हो सकता है। इसलिए हमें किसी भी तरीके से जम्मू-कश्मीर को बचाना था। लिहाजा सरकार ने इसकी शुरुआत अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाकर की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता दिग्विजयनाथ पीजी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. शैलेन्द्र प्रताप सिंह ने की।
संगोष्ठी को डॉ. करुणेंद्र सिंह, डॉ. परमात्मा मिश्र, जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र से जुड़े प्रदीप मिश्र, अमित त्रिपाठी ने भी संबोधित किया।
इस अवसर पर डॉ. आरपी यादव, डॉ. अनूप श्रीवास्तव, डॉ. राम कुमार यादव, डॉ. विजय कुमार, डॉ. प्रवीण सिंह, डॉ. अंशुमान सिंह, डॉ. अभिषेक सिंह, सुजीत भट्ट, राजन साहनी, मनु मिश्रा, कृष्णमोहन, रमाशंकर समेत बड़ी संख्या में छात्र व छात्राएं उपस्थित रहे।
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