गोरखपुर

चुनावी मुद्दाः यहां गन्ना किसानों की आय दुगुनी तो नहीं हुई, फसल की लागत दुगुनी जरूर हो गई

पूर्वांचल में सरकार की अनदेखी, मिलों-समितियों की मनमानी से परेशान गन्ना किसान

गोरखपुरApr 18, 2019 / 12:07 pm

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

Farmers are not getting the price of sugarcane crop

माधोपुर गांव के पीके मिश्र की पूरी गृहस्थी किसानी पर निर्भर है। गेंहू-धान वह थोड़ा सा उपजाकर अधिक से अधिक गन्ना उगाते हैं ताकि जीविकोपार्जन में दिक्कत न आए लेकिन इस बार सरकार की अनदेखी और मिलों-समितियों की लापरवाही का खामियाजा उनको भुगतना पड़ रहा। जिस गन्ने की पेराई 15 जनवरी तक हर हाल में हो जाना चाहिए वह अभी तक खेतों में ही खड़ा सूख रहा है। मिल से लेकर समिति तक चक्कर लगा चुके हैं लेकिन पर्ची का अता पता ही नहीं। मिश्र बताते हैं कि ख्ूाटी गन्ना समय से नहीं पेरे जाने पर सूख रहा है, उसके वजन में 20 से 30 प्रतिशत का अंतर आ जाएगा जो किसानों के लिए किसी सदमें से कम नहीं। गुस्से में पीके मिश्र कहते हैं कि सरकार आय दुगुनी करने की बात कह रही, इनकी अनदेखी से किसान की लागत ही दुगुनी हो गई।

क्षेत्र के किसान रविंद्र राय के खेत में अभी भी दस से बारह ट्राली गन्ना खड़ा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्देश दिया है कि किसान के खेत में एक भी गन्ना रहेगा तबतक मिल चलेगी। रविंद्र राय बताते हैं कि नेता लोग किसानी करते तो पता होता कि देर तक गन्ना खेतों में खड़ा रहे और लेट से पेराई होने के बाद किसान पर क्या बीतेगी। वह बताते हैं कि लेट से गन्ना मिलों तक जाएगा तो अगली फसल खराब होगी। जहां 15 कुंतल उपज होनी है वहां सात-आठ कुंतल ही उपजेगा, यह नुकसान क्या सरकार वहन करेगी।
पीके मिश्र और रविंद्र राय ही अकेले किसान नहीं हैं जो गन्ना की फसल को लेकर चिंतित हैं, बल्कि इनके जैसे हजारों किसान उस दिन को कोस रहे जब इन लोगों ने गन्ना बोया। हालांकि, इनके पास गन्ना के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है और गन्ना नीति है कि इनके जीवन में खुशहाली लाने की बजाय दुश्वारियों को बढ़ा रही।
दरअसल, गोरखपुर क्षेत्र के कुशीनगर, देवरिया सहित आसपास के जिले गन्ने की खेती के लिए जाने जाते हैं। यहां के किसानों के लिए गन्ना ही सर्वाेत्तम नकदी फसल है। लेकिन इस बार किसान परेशान है। गन्ना खेतों में खड़ा है और पर्ची का अता पता नहीं है।
औने पौने दाम पर भी बेचने को मजबूर हो रहे किसान

पर्ची नहीं मिलने से परेशान गन्ना किसान को खेत खाली करने की चिंता सता रही है। अगर समय से गन्ना नहीं कटा तो अगली फसल प्रभावित होगी। ऐसे में तमाम गन्ना किसान औने पौने दाम में गन्ना बेचने को मजबूर हो रहे हैं। किसानों के अनुसार ढेर सारे किसान तो तय कीमत से आधी कीमत पर अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं।
बिचैलिए हो रहे मालामाल

गन्ना किसानों की दुश्वारियां तो सरकार की अनदेखी बढ़ा रही है लेकिन बिचैलिए इससे मालामाल हो रहे हैं। कुशीनगर-देवरिया-महराजगंज आदि जिलों में तमाम बिचैलिए सक्रिय हैं जो डेढ़ सौ-दो सौ रुपये कुंतल गन्ना खरीदकर मिलों को सप्लाई दे रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि इसमें मिल प्रबंधन से लेकर तमाम सफेदपोश व अधिकारी भी शामिल हैं।
पड़ताल में मनमानी, भुगत रहे गन्ना किसान

किस क्षेत्र में कितना गन्ना बोया गया है। किस किसान ने कितने एकड़ या हेक्टेयर या एयर में गन्ना बोया है, इसका बाकायदा पड़ताल किया जाता है। पहले समितियों या मिलों के जिम्मे यह काम होता था। हर सत्र में यह पड़ताल कर किसानों की पर्ची का निर्धारण किया जाता था। पिछले कुछ सालों से मिलों ने जीपीएस सिस्टम से पड़ताल शुरू कर दी। लेकिन इस बार समितियों ने मनमाने तरीके से पड़ताल की है। किसान चंद्रभान सिंह, नरेंद्र सिंह, वीके मिश्र का कहना है कि पड़ताल में लापरवाही हुई है। पूरा गन्ना रकबा पड़ताल नहीं किया गया है। खजुरिया के रामनारायण राय के खेतों में दो दर्जन से अधिक ट्राली भर गन्ना है। पड़ताल करने वाले ने महज आठ ट्राली पर्ची का पड़ताल किया है। आठ पर्ची तक उनको मिल नहीं पाया है। उनको समझ नहीं आ रहा कि आठ पर्ची पर वह 24 ट्राली गन्ना कैसे गिराए। वंशी राय की भी हालत यही है। 10 पर्ची का पड़ताल हुआ है। सात पर्ची गिर चुकी है। अभी भी 12 से अधिक पर्चियों की दरकार है लेकिन उनको महज तीन पर्ची ही मिलनी है। अनुसूचित जाति के लोरिक छोटे किसान हैं। सात गाड़ी गन्ना खेतों में है। दो पर्ची की पड़ताल कर दी गई है, एक पर्ची मिल भी चुकी है।
सरकारी मुलाजिमों ने किसानों को कर दिया बर्बाद

प्रदेश की औसत उपज 72.38 से बढ़कर 79.19 टन प्रति हेक्टेयर पहुंच गई है। 6.82 टन प्रति हेक्टेयर की इस वृद्धि ने किसानों की चिंताएं भी बढ़ा दी है। वजह, किसानों के खेतों की औसत उपज बढ़ाने वाले सरकारी मुलाजिमों ने उत्पादन के हिसाब से पड़ताल करना मुनासिब नहीं समझा है। पड़ताल पुराने ढर्रे पर 62.5 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हुआ है। यह किसानों को प्राप्त होने वाली औसत उपज 73.5 टन प्रति हेक्टेयर से काफी कम है।
सट्टा भी नहीं भरवाया गया

गन्ना किसानों से एक सट्टा भरवाया जाता है। सट्टा में किसान एक अनुबंध करता है कि वह कितने कुंतल गन्ना मिल को देगा। एक औसत के मुताबिक किसान सट्टा भरता है। इसी के मुताबिक पर्ची भी जारी होती है। इसका तकनीकी पक्ष यह है कि अगर किसी किसान ने 100 कुंतल गन्ना देने का अनुबंध भरा तो उसे 100 कुंतल से कम गन्ना दिया तो उससे 2 रुपये प्रति कुंतल के रेट से जितना कुंतल कम गन्ना दिया कटौती की जाती है। इस सट्टा फार्म से किसान को ही फायदा होता है। क्योंकि जितने कुंतल का अनुबंध होता है उतनी पर्ची उसे मिलती ही है। लेकिन इस बार सट्टा फार्म भी किसानों से नहीं लिया गया है।
वर्ष 2017-18 में गोरखपुर-बस्ती मंडल की औसत उपज

गोरखपुर-650 कुंतल प्रति हेक्टेयर, महराजगंज-658 कुंतल प्रति हेक्टेयर, देवरिया-646 कुंतल प्रति हेक्टेयर, कुशीनगर-735 कुंतल प्रति हेक्टेयर, बस्ती-660 कुंतल प्रति हेक्टेयर, गोंडा-700 कुंतल प्रति हेक्टेयर, आजमगढ़-609 कुंतल प्रति हेक्टेयर।

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