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मुख्यमंत्रीजी, विकल्प बताइए हम गन्ना बोना छोड़ देंगे

locationगोरखपुरPublished: Sep 15, 2018 12:04:07 pm

चीनी मिलों पर लाखों रुपये अभी भी किसानों का बकाया, दूसरे फसल के लिए बाजार का अभाव क्या करे किसान

sugarcane

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गन्ने की फसल पर पूर्वांचल के किसानों की आत्मनिर्भरता के बारे में क्षेत्र के किसान राजू मिश्र कहते हैं कि गन्ना पूर्वांचल की लाइफलाइन है। यह केवल फसल नहीं बल्कि गरीब किसानों की उम्मीद है। किसी के घर का मांगलिक काम इसके भरोसे होता तो किसी का इलाज। पूर्वांचल में गन्ना की खेती का फिलहाल कोई विकल्प ऐसा नहीं जिसपर किसान पूरी तरह से निर्भर हो सके। वह बताते हैं कि अगर चीनी मिलें चले तो चाहे कितना भी गन्ना बोइए, आपको नुकसान नहीं होगा। लेकिन अगर आलू, केला या कोई अन्य नकदी फसल किसान बोने लगे तो पैदावार बढ़ने और फसल खरीदने-बेचने का कोई बेहतर विकल्प नहीं होने की वजह से कीमतों में गिरावट उसे बर्बादी के कगार पर पहुंचा सकता है।
गन्ना किसान राजू मिश्र की इस चिंता से सरकार और सरकार चलाने वाले भले ही वाकिफ न हो लेकिन किसानी करने वाला हर शख्स इसको समझता है। तभी तो भले ही सरकारी नीतियों की वजह से चीनी मिलें बंद हो रही, गन्ना बकाया भुगतान नहीं हो रहा लेकिन गन्ना किसान को अभी तक गन्ना के अतिरिक्त कोई बेहतर विकल्प नहीं मिल सका है।
क्षेत्र में केले की खेती करने वाले किसान हरी प्रसाद बताते हैं कि गन्ना को बोना छोड़कर केले की खेती की ओर रूख किया। फायदे वाला सौदा तो है लेकिन अधिक पैदावार से अचानक कीमतों में गिरावट से लागत तक निकालना मुश्किल हो जाता है। वह बताते हैं कि अगर पूर्वांचल के किसान गन्ने की खेती को छोड़कर केला, आलू या अन्य इस तरह के फसल उगाना शुरू कर दे तो पैदावार तो बढ़ जाएगा लेकिन सुविधा और मार्केट के अभाव में किसान बर्बाद होने से भी नहीं बच सकेगा। क्षेत्र के एक किसान करीब एक दशक पूर्व का एक वाकया याद करते हुए बताते हैं कि चीनी मिलों के बंद होने से परेशान किसानों ने आलू, केला आदि बहुतायत में बोए थे। उस वक्त स्थिति यह हो गई कि अधिकतर किसानों को लागत तक नहीं मिल सकी। आज की तारीख में भी इन पैदावारों के संरक्षण के लिए कोई सरकारी उपाय नहीं किए जा सके हैं। किसान एक अदद कोल्ड स्टोरेज को परेशान रहता है। ऐसे में गन्ना के अतिरिक्त किसी अन्य विकल्प पर किसान की निर्भरता खुद को बर्बाद होने की दिशा में कदम उठाना ही हो सकता।
चीनी का कटोरा रहा है यह क्षेत्र
गोरखपुर मंडल कभी चीनी का कटोरा हुआ करता था और गन्ना यहां की लाइफलाइन। गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीनगर और आसपास के जिलों में प्रमुख नकदी फसल गन्ना ही था। लेकिन समय ने करवट ली और गन्ना किसानों के नकदी फसल से पहले वोटबैंक में तब्दील होेता गया। आलम यह कि पूर्वांचल में गन्ना किसानों की बदहाली दिखाकर वोट की फसल काटकर राजनीति तो चमकायी जाती रही लेकिन किसानों की किस्मत फूटती गई।
गन्ना न बोने की सलाह के बजाय अगर बकाया समय से दिलाते तो…

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गन्ना कम बोने की सलाह दे रहे हैं। अगर वह गन्ना किसानों का बकाया भुगतान समय से करा देते तो शायद चीनी का कटोरा कहा जाने वाला क्षेत्र बर्बादी की कहानी न सुना रहा होता। यह बात दीगर है कि सत्ता में आने के पहले बीजेपी को गन्ना किसानों का दर्द अपना दर्द लग रहा था लेकिन अब किसानों का दर्द बिसरा कर उनको गन्ने की खेती न करने की ही सलाह दी जा रही। अब आलम यह है कि गन्ना बकाया भुगतान पर ब्याज देना तो दूर उनका मूल तक वापस नहीं मिल रहा। सरकारी आंकड़े ही गवाही दे रहे कि सुगर लाॅबी के दबाव में गन्ना किसान बिसरा दिए गए। कई-कई महीने का भुगतान चीनी मिल दबाए हुए हैं।
आंकड़ों पर अगर गौर करें तो गोरखपुर परिक्षेत्र की पांच चीनी मिलें को कुल 131877.06 लाख रुपये में अभी भी 27071.18 लाख रुपया भुगतान देना है। गोरखपुर परिक्षेत्र में बस्ती की तीन चीनी मिलें और महराजगंज की दो चीनी मिलों ने किसानों का भुगतान अभी तक नहीं किया है।
कुशीनगर की पांच चीनी मिलों में केवल ढाढा चीनी मिल ऐसी है जिसने शत प्रतिशत किसानों का भुगतान कर दिया है। जबकि इसी जिले की खड्डा चीनी मिल पर 1751.74 लाख बकाया है। रामकोला पी. चीनी मिल पर 7121.18 लाख रुपया बकाया है। कप्तानगंज चीनी मिल 5575.26 लाख रुपये किसानों का दबाए रखे हैं। सेवरही चीनी मिल 6469.96 लाख रुपये दबाए हुए है। प्रतापपुर चीनी मिल 1357.54 लाख रुपये किसानों का भुगतान नहीं किया है। गडौरा चीनी मिल 3221.30 लाख रुपये का भुगतान किसानों का अभी तक नहीं किया है। वहीं सिसवा बाजार चीनी मिल द्वारा 1574.20 लाख रुपये किसानों का गन्ना भुगतान रोके हुए है।
बस्ती के बभनान चीनी मिल को अभी भी गन्ना किसानों का 8480.12 लाख रुपये भुगतान करना बाकी है। वाल्टरगंज चीनी मिल को 1993.87 लाख रुपये भुगतान देना है। रूधौली चीनी मिल भी 5864.51 लाख गन्ना किसानों का दबाए हुए है।
28 चीनी मिलों में 17 हो चुकी हैं बंद, एक नई चीनी मिल खुल सकी

प्रदेश के सबसे अधिक गन्ना उत्पादक क्षेत्र गोरखपुर-बस्ती परिक्षेत्र में 28 चीनी मिलें हुआ करती थी। लेकिन पिछले चार-पांच दशकों में कुशीनगर में एक निजी चीनी मिल के अतिरिक्त नई मिल कहीं भी स्थापित नहीं हो सकी। अलबत्ता विभिन्न सियासी पार्टियों के अलग-अलग राज में एक के बाद एक 17 चीनी मिल्स पर ताला जरूर लग गया। हालांकि, मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने अपने क्षेत्र की बंद चीनी मिलों में एक चीनी मिल चलवाने की कवायद की हैं। पूजन-अर्चन कराया जा चुका है, एकाध साल में यह गन्नेे की पेराई भी शुरू कर दे। इसी तरह बस्ती की मुंडेरवा चीनी मिल भी फिर से एकाध साल में चलाने के लिए काम कराया जा रहा।
फिलहाल, इस क्षेत्र में 11 चीनी मिलें चालू हालत में हैं। गोरखपुर में एक भी चीनी मिल चालू नहीं है। यहां की सरदारनगर, धुरियापार व पिपराइच चीनी मिलों पर ताला लटक रहा है। पिपराइच के दिन शायद आने वाले साल में बहुर जाए।
देवरिया की पांच मिलों में चार गौरीबाजार, बेतालपुर, देवरिया व भटनी मिलों पर ताला लटक रहे हैं। सिर्फ एक प्रतापपुर मिल संचालित है।
कुशीनगर जिले में 10 चीनी मिलें हुआ करती थीं। इनमें पांच मिलें रामकोला, खड्डा, सेवरही, कप्तानगंज व ढाढा बुजुर्ग चल रही हैं जबकि छितौनी, लक्ष्मीगंज, पडरौना, कठकुइयां व रामकोला खेतान बंद है। महराजगंज की चार मिलों में से सिसवा व गड़ौरा चल रही हैं जबकि फरेंदा व घुघली बंद हैं। बस्ती में पांच में से तीन बभनान, वाल्टरगंज व रुधौली मिलें चल रही हैं जबकि मुंडेरवा व बस्ती की मिलें बंद हैं। संतकबीरनगर की एक मात्र मिल बंद हो चुकी है। सिद्धार्थनगर में कोई चीनी मिल नहीं।
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