ऐसे में सरकार के दावे ही खुद-ब-खुद इस योजना के क्रियान्वयन की पोल खोल रहे हैं। जानकार बताते हैं कि पंद्रह लाख कार्ड ही अगर गोरखपुर में मान लिया जाए तो सरकारी बाबूओं के आंकड़ों के अनुसार डेढ़ लाख से कुछ अधिक कार्ड बने हैं। इसको प्रतिशत में देखा जाए तो महज दस से बारह प्रतिशत ही कार्ड बन सके हैं। जब सूबे के सबसे अव्वल जिले में महज दस से बारह प्रतिशत कार्ड बने हैं तो अन्य जिलों की क्या स्थ्तिि होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। सूत्रों की मानें तो पूरे प्रदेश में दो से तीन प्रतिशत कार्ड ही लोगों का बन पाया है।
बहरहाल, पूरे प्रदेश में मुख्यमंत्री से लगायत मंत्री-विधायक और साहबान योजना के जन जन तक पहुंचने की गाथा बता रहे हैं। ऐसे में अदम गोंडवीं बरबस ही याद आ जाते हैं-‘तुम्हारे फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है। उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो, इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है।’